एक कर्मयोगी ऐसा भी

गाजियाबाद। आपने आश्रमों मठों तथा मंदिरों आदि में अनेकों संत महात्मा देखे होंगे जिन्होंने गृहस्थ जीवन की मोह माया त्याग कर सन्यास अपना लिया। पर समाज में रहकर तथा समाज के हित में समर्पित होकर अपना जीवन व्यतीत करने वाले लोग बहुत कम देखे होंगे । गाजियाबाद सुल्लामल रामलीला कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष वीरेंद्र गोयल, जो वीरू बाबा के नाम से स्थानीय लोगों में लोकप्रिय हैं, एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है जिनका जीवन सामाजिक कार्यों से विरक्त ना होते हुए भी आध्यात्म से परिपूर्ण है । 75 वर्षीय यह युवा अपनी अनुशासित जीवन शैली कर्तव्य परायणता तथा अध्यात्म प्रेम के कारण आज की युवा पीढ़ी के लिए अवश्य ही एक आदर्श स्वरूप है । पूर्ण रूप से शाकाहारी होने के साथ-साथ वीरू बाबा ब्रह्मचारी भी है । परंतु स्वयं अविवाहित होते हुए भी वे विवाह को एक सामाजिक बंधन नहीं अपितु एक सामाजिक जिम्मेदारी मानते हैं । वीरू बाबा का जीवन उनका प्रत्येक दिन स्थानीय गरीबों, पीडि़तों, असहाय एवं वंचितों की समस्याओं के समाधान मैं व्यतीत होता है । वे अक्सर कहते हैं कि सारा शहर ही उनका परिवार है और यहां के निवासी उनके परिवार जन इसलिए उनमें अलग से अपना घर बसाने की प्रवृत्ति कभी नहीं रही । सन 1975 में जब देश कठिन दौर से गुजर रहा था, भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री द्वारा देश की जनता से एक समय के भोजन का त्याग करने की अपील को सुनकर वीरू बाबा का हृदय ऐसा आंदोलित हुआ कि उन्होंने जीवन भर के लिए न केवल समस्त व्यसन अपितु अनाज भी जीवन भर के लिए त्याग कर दिया। वे केवल फल एवं सब्जियों के सहारे ही अपना जीवन यापन करते हैं। वीरू बाबा का जीवन मंत्र अनुशासन, आत्म संयम , सामाजिक ,कर्तव्य परायणता तथा राष्ट्रप्रेम है । वीरू बाबा का समस्त जीवन समाज को अर्पित है जोकि वास्तव में समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए अनुकरणीय है ।