भारतीय रेल में हो रहे कई क्रांतिकारी बदलाव

प्रहलाद सबनानी। पूरे विश्व में ही यात्रा एवं माल ढोने के लिए रेल्वे एक कुशल साधन माना जाता है। कई देशों के आर्थिक विकास को गति देने का श्रेय वहां विकसित की गई दक्ष रेल्वे लाइनों के योगदान को भी दिया जाता है। विश्व के कई विकसित देशों, जैसे जापान, फ्ऱान्स, कनाडा, सिंगापुर, चीन, अमेरिका आदि, के महानगरों में भीड़ की आवाजाही को नियंत्रित करने में वहां विकसित की गई मेट्रो रेल का भी बहुत बड़ा योगदान है। यूरोप के कई देश तो विकसित देशों की श्रेणी में ही इसीलिए आ गए हैं क्योंकि वहां रेल तंत्र को बहुत ही व्यवस्थित तरीक़े से विकसित किया गया है। इसी क्रम में भारत में भी पिछले 6 वर्षों से लगातार प्रयास किया जा रहा है कि देश में न केवल रेल्वे लाइनों का जाल बिछाया जाय बल्कि मेट्रो रेल को भी देश के महानगरों में विस्तार दिया जाय। भारत में पहली यात्री गाड़ी की शुरुआत 15 अगस्त 1854 को कोलकता में हावड़ा एवं हुगली की बीच 24 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए हुई थी। भारत में 166 साल के रेल्वे के इस सफऱ को यातायात के मामले में एक लाइफ़ लाइन की तरह देखा जाता है। देश में ब्रिटिश राज के समय रेल्वे को विकसित करने हेतु कुछ बुनियादी काम हुए और उन्होंने रेल्वे को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से देश के विभिन्न भागों में विकसित करने का काम किया। रेल्वे के विकास की रफ़्तार न केवल ब्रिटिश राज के समय बल्कि आज़ादी के बाद भी काफ़ी धीमी रही। चीन और भारत 1950 में रेल्वे सेवाओं की उपलब्धता के मामले में लगभग समान स्थिति में थे, परंतु चीन आज भारत से लगभग तीन गुना आगे है। इसी प्रकार मेट्रो रेल के मामले में भी भारत में वर्ष 2014 तक विकास की कहानी बहुत ही धीमे रही है। भारत में मेट्रो रेल की शुरुआत कोलकता में वर्ष 1976 में हुई, इसके 26 वर्ष बाद जाकर वर्ष 2002 में दिल्ली में मेट्रो रेल प्रारम्भ हो सकी एवं वर्ष 2014 तक मेट्रो रेल देश के केवल 5 नगरों में ही प्रारम्भ हो सकी थी। परंतु, इसके बाद मेट्रो रेल के विस्तार हेतु देश में तेज़ी से काम प्रारम्भ हुआ और आज मेट्रो रेल देश के 18 नगरों में प्रारम्भ हो चुकी है। वर्ष 2025 तक देश के 25 नगरों में मेट्रो रेल की शुरुआत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है एवं 20 और अन्य नए मार्गों का सर्वे भी सम्पन्न कर लिया गया है। एक बार तो हम केवल सोच ही सकते हैं कि मेट्रो रेल के अभाव में दिल्ली में यातायात व्यवस्था की आज क्या हालत होती? शुरुआती दौर में भारत में रेल्वे क्षेत्र में हुई धीमी प्रगति के बाद अब पिछले 6 वर्षों के दौरान प्रगति को तेज़ गति प्रदान की गई है एवं आज भारतीय रेल दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक बन गया है। आज भारत में 123,238 किलोमीटर का रेल्वे ट्रैक उपलब्ध हो गया है। इस रेल्वे ट्रैक पर आज 13,500 से ज़्यादा यात्री ट्रेन एवं 9000 से ज़्यादा मालगाडिय़ां दौड़ रही हैं। कुल मिलाकर 2 करोड़ 30 लाख यात्री प्रतिदिन यात्री ट्रेनों से सफऱ करते हैं एवं मालगाडिय़ों द्वारा 30 लाख टन सामान रोज़ाना ढोया जाता है। देश में आज 7349 रेल्वे स्टेशन भी स्थापित कर लिए गए हैं। पिछले कुछ समय से भारतीय रेल्वे में हम तेज़ी से हो रहे बदलाव के दौर से गुजऱ रहे हैं। पिछले 6 वर्षों के दौरान देश में 6000 किलोमीटर का नया रेल्वे ट्रैक प्रारम्भ हुआ है। मौजूदा दौर में नई तकनीक के साथ भारतीय रेल को आगे बढ़ाया जा रहा है। अभी हाल ही में नई दिल्ली मेट्रो रेल के सफर में एक नई सौगात जोड़ी गई है। देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने देश की पहली ड्राइवरलेस मेट्रो रेल की सेवा प्रारम्भ की। चालक रहित मेट्रो रेल पूरी तरह स्वचालित होंगी, जिनमें मानवीय भूल की गुंजाइश नहीं होगी। दुनिया में बहुत कम ऐसे देश हैं, जहां पर ड्राइवरलेस मेट्रो रेल चलती है। अब भारत भी ऐसे देशों की सूची में शामिल हो गया है। ड्राइवरलेस मेट्रो रेल के प्रारम्भ होने के बाद इन रेल्वे ट्रैक पर दुर्घटनाएं लगभग समाप्त हो जाएंगी। यह यातायात का एक होशियार सिस्टम है जिसके अंतर्गत किसी भी प्रकार का अवरोध होने पर मेट्रो रेल ब्रेक लगाकर अपने को रोक लेती है। ड्राइवरलेस रेल तकनीक का एक विलक्षण प्रयोग है जो भारत में भी किया गया है। यह प्रयोग भारत को रेल्वे के विकास में काफ़ी आगे ले जाता है। इसी प्रकार अभी हाल ही में देश में 100वीं किसान रेल चलाई गई है। देश के हर क्षेत्र को किसान रेल से जोड़े जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह व्यवस्था देश के किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है। रेल्वे सम्बंधी अन्य कई क्षेत्रों में भी तेज़ी से काम हुआ है, जैसे, देश में रेल्वे लाइन का विस्तार हुआ है, रेल्वे मार्ग का बिजलीकरण किया गया है, रेल्वे कोच को भी बदला गया है ताकि इसे और अधिक सुविधापूर्वक बनाया जा सके एवं यह रेल की बढ़ी हुई रफ़्तार के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके। देश में 80 प्रतिशत कोच में आज बायो टोयलेट प्रयोग किए जा रहे हैं। उत्तरी पूर्वी क्षेत्र में रेल का जाल तेज़ी से बिछाया जा रहा है यह क्षेत्र अभी तक रेल्वे ट्रैक से वंचित था। भारतीय रेल द्वारा उपयोग की जा रही विकसित तकनीक के कारण देश में पिछले दो वर्षों के दौरान कोई बड़ी रेल दुर्घटना नहीं हुई है एवं रेल्वे की समयनिष्ठा में भी बहुत सुधार द्रष्टिगोचर है। रेल्वे प्लेट्फ़ोर्म पर टिकट के लिए अब लम्बी लाइने नहीं दिखाई देती हैं क्योंकि ऑनलाइन टिकट बुकिंग की सुविधा अब देश में लोकप्रिय हो गई है। भारतीय रेल अब कुछ रेल्वे ट्रैक पर तेज़ रफ़्तार अर्थात 160 किलोमीटर प्रति घंटे से दौड़ रही हैं और इस रफ़्तार को 200 किलोमीटर प्रति घंटे तक ले जाने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु अभी भी रेल्वे को ट्रैक पर दौड़ाने की रफ़्तार के मामले में भारत विश्व के कई अन्य देशों यथा जापान, चीन, आदि से बहुत पीछे हैं। फ्ऱान्स, कनाडा, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, आदि देशों में ड्राइवरलेस मेट्रो का बहुत बड़ा नेटवर्क स्थापित किया जा चुका है जबकि भारत में अभी केवल इसकी शुरुआत ही हो सकी है। आर्थिक दृष्टि से देश की विकास यात्रा में भारतीय रेल एक इंजन के तौर पर कार्य कर रहा है, साथ ही, देश में मोबिलिटी को विस्तार देने के मामले में भी रेल्वे की मुख्य भूमिका रहती आई है। पिछले 6 वर्षों के दौरान देश में रेल्वे के लिए आधारिक संरचना विकसित करने के उद्देश्य से 645,000 करोड़ रुपए की राशि ख़र्च की गई है। इतनी बड़ी राशि बीते हुए पिछले लगभग 60 वर्षों के दौरान भी ख़र्च नहीं की जा सकी थी। रेल्वे विभाग में कार्य कर रहे स्टाफ़ के कौशल विकास के लिए नैशनल रेल्वे ट्रांसपोर्ट यूनिवर्सिटी स्थापित की गई है। यहां रेल्वे स्टाफ़ को प्रबंधन की सीख दी जा रही है। ज़ोनल ट्रेनिंग इंस्टिटयूट में भी कर्मचारियों को नई तकनीक के सम्बंध में ट्रेनिंग प्रदान की जाती है। इस प्रकार रेल्वे विभाग में तकनीक का भारतीयकरण किया जा रहा है एवं रेल्वे स्टाफ़ को दक्षता प्रदान की जा रही है। पिछले कुछ वर्षों तक देश में रेल्वे कोच का आयात हो रहा था परंतु अब देश में ही रेल्वे कोच का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है। चूंकि मेट्रो रेल का विस्तार अब 25 शहरों तक किया जा रहा है अत: रेल्वे कोच की आवश्यकता भी बढऩे वाली है। आत्म निर्भर भारत योजना के अंतर्गत अब देश में ही इन कोच का उत्पादन सुनिश्चित किया जा रहा है। अब तो भारत को एक स्तर आगे जाकर रेल्वे तकनीक एवं कोच आदि के निर्यात के बारे में सोचना चाहिए। देश के रेल्वे क्षेत्र में कार्य कर रहे विशेषज्ञ इंजीनियर को विदेशों, विशेष रूप से पड़ौसी देशों में, रेल्वे के विस्तार में अपनी मदद प्रदान करनी चाहिए। चीन रेल्वे के क्षेत्र में अपनी तकनीक को अन्य देशों को प्रदान कर रहा है। भारत भी इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को बढ़ा सकता है। भारतीय रेल देश में सबसे बड़ा नियोक्ता भी है। भारतीय रेल देश में जलवायु परिवर्तन एवं कार्बन एमिशन सम्बंधी समस्यायों को हल करने में भी अपना योगदान दे रहा है, क्योंकि वर्ष 2024 तक देश में सम्पूर्ण ट्रैक का 100 फ़ीसदी विद्युतीकरण का कार्य पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इससे अंतत: जलवायु परिवर्तन एवं कार्बन एमिशन से जुड़ी समस्याएं हल होंगी। इलेक्ट्रिक इंजन पर्यावरण को बहुत कम स्तर पर प्रदूषित करता है।