जीडीए अभियंताओं का कारनामा: कृष्णा वाटिका सुदामापुरी को बनाया नोएडा जैसी दूसरी सावेरी

दिनेश जमदग्नि, गाजियाबाद। गाजियाबाद में अवैध निर्माणों का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अभियंता अपने विभाग को जमकर राजस्व का चूना लगा रहे हैं। कितनी सरकारें आई चली गई,कितने अधिकारी आए चले गए लेकिन अभियंताओं का भ्रष्टाचार व अनियमितताएं कोई रोक नहीं पाया। दरअसल में गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को श्री डीके मित्तल,श्री एसपी सिंह जैसे उपाध्यक्ष चाहिए जो यहां के कर्मियों के भ्रष्टाचार की कारगुजारियों पर लगाम लगा सके। लेकिन दुख भरा पहलू यह भी है कि ऐसे ईमानदार व कर्मठ,अनुभवी अधिकारियों को लखनऊ में बैठे शासक भी पसंद नहीं करते क्योंकि इन जैसे अधिकारियों के सामने उनकी भी दाल नहीं गल पाती है।गाजियाबाद के व्यवसतम रोड एनएच 24 पर व नोएडा के समीप होने के कारण बेशकीमती हुई जमीन पर बिल्डर माफिया की निगाह पड़ ही गई तथा वहां पर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अभियंताओं व सुपरवाइजरो से मिलकर कृष्णा वाटिका सुदामापुरी नामक एक गगनचुंबी नगरी ही बसा दी गई। अब जब सर्वत्र गाजियाबाद से लेकर लखनऊ तक गाजियाबाद के मुरादनगर क्षेत्र के उखलारसी गांव में श्मशान घाट के लेंटर गिरने का मामला गूंज रहा है तो आनन-फानन में जीडीए के अधिकारियों ने कृष्णा वाटिका सुदामापुरी में मात्र एक अवैध व अनधिकृत निर्मित बिल्डिंग को ध्वस्त करके मामले को दफन करने का षड्यंत्र करके वाहवाही लूटने का प्रयास किया जा रहा है। आपको बताते चलें कि भगवान श्री कृष्ण जी के सखा श्री सुदामा जी के नाम पर सुदामा पुरी कहने मात्र को ही गरीब सुदामा की सुदामा पूरी है लेकिन यहां पर गंगनचुंबी इमारतें अपने ऐश्वर्या व अमीरी का बखान करती नजर आ जाएंगी। इस सुदामापुरी ने न जाने कितने जीडीए अधिकारियों,बिल्डर माफिया व अभियंताओं को मालामाल किया है। इस सुदामापुरी में न जाने कितनी गगनचुंबी इमारतें हैं लेकिन क्या कारण है कि एक ही बिल्डिंग को ध्वस्त किया गया है बाकी को आशीर्वाद क्यों प्राप्त है यह एक यक्ष प्रश्न हमेशा अपना मुंह बाए खड़ा रहेगा। क्या कारण है कि अन्य बिल्डिंगों पर कोई कार्रवाई नहीं मात्र एक बिल्डिंग को ही ध्वस्त करके जीडीए के अधिकारियों व अभियंताओं ने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई है। लगता है कि उक्त बिल्डिंग का मालिक गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को “संतुष्ट” नहीं कर पाया होगा। दरअसल में असली समस्या यह है कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में कोई पूर्णकालिक अधिकारी नहीं तैनात होता। अल्पकालिक समय के लिए अधिकारी आते हैं और अपना काम कर व अपनी अदूरदर्शी नीतियों के चलते जीडीए को खोखला करके चले जाते हैं तथा जीडीए को खोखला करने में लखनऊ में बैठे शासक भी कम दोषी नहीं है वह भी ऐसे अधिकारियों को यहां तैनाती करते हैं जो कि उनके इशारों पर चलकर उन्हें संतुष्ट करें। बहरहाल गाजियाबाद से लेकर लखनऊ व देश-विदेश के जागरूक व बुद्धिजीवी वर्ग,मीडिया आदि व पक्ष- विपक्ष के राजनीतिक गलियारे में यह मामला तो हमेशा गूंजता तथा मुंह बाए खड़ा रहेगा कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को लखनऊ में बैठे हुए व गाजियाबाद में बैठे आकाओं में किसका आशीर्वाद प्राप्त है कि मात्र एक बिल्डिंग को ही ध्वस्त किया गया तथा अन्य को आशीर्वाद दिया गया। अब बस एक ही रास्ता रह गया है जीडीए के अभियंताओं के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए जाने का। अभी हाल में ही गाजियाबाद नगर निगम के एक जागरूक,ईमानदार,निरंतर सक्रिय, कर्मठ,अनुभवी व निडर पार्षद श्री राजेंद्र त्यागी ने एक प्रस्ताव मीडिया के माध्यम से दिया था कि जितने भी अवैध निर्माण हुए हैं तथा जब उन्हें डिमोलिश कराया जाता है तो उस डिमोलिशन का खर्चा प्राधिकरण के अधिकारियों व अभियंताओं से वसूला जाना चाहिए तभी भविष्य में अवैध निर्माण करने वाले तथा उन्हें प्रोत्साहन देने वाले बिल्डर/अभियंता माफिया वर्ग पर अंकुश लग सकेगा। देखते हैं कितना इस प्रस्ताव पर लखनऊ में बैठे हुए व गाजियाबाद में बैठे आका ध्यान दे पाते हैं।