एके की इंट्री: हैरान-परेशान हैं यूपी सरकार के दोनों शर्मा

योगेश श्रीवास्तव, लखनऊ। गुजरात वाले शर्मा जी के आने बाद से लखनऊ और मथुरा वाले शर्मा जी दोनों हलकान है। अभी तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद सरकार में इन्हीं दोनों को सबसे प्रभावी हस्तक्षेप वाला मंत्रिमंडलीय सदस्य माना जाता था। मथुरा वाले पं.श्रीकांत शर्मा का प्रदेश की राजनीति में पदार्पण 2017 के विधानसभा चुनाव में हुआ था। वह स्काईलैब की तरह दिल्ली से भेजे गए और पहली बार विधानसभा चुनाव मैंदान में उतरे और चुनाव जीतकर ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण विभाग के कैबिनेट मंत्री बना दिए गए। श्रीकांत शर्मा के साथ ही दिल्ली की राजनीति से सिद्वार्थनाथ सिंह ने भी इंट्री ली थी लेकिन श्रीकांत शर्मा के आगे उन्हे इतनी तवज्जों उन्हे नहीं मिली। सरकार गठन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिन दो लोगों को अधिकृत सरकारी प्रवक्ता नियुक्त किया था उनमें श्रीकांत शर्मा और सिद्वार्थनाथ शामिल थे। मंत्रियों के विभागों के फेरबदल में सिद्वार्थनाथ का तो विभाग बदला गया लेकिन मथुरा वाले पं.श्रीकांत शर्मा का विभाग नहीं बदला। सीधे दिल्ली से यूपी की राजनीति करने पहुंचे इन दोनों नेताओं में श्रीकांत शर्मा का ही दबदबा बना रहा लेकिन अब गुजरात वाले शर्मा जी के आने के बाद से मथुरा और लखनऊ वाले शर्मा के कैंपों में छायी खामोंशी देखते बन रही है। लखनऊ वाले डा.दिनेश शर्मा भाजपा के जनाधारविहीन नेता माने जाते है। वे केवल भाजपा के नाम से दो बार मेयर का चुनाव जीतते आये है। ब्राम्हण चेहरे के नाम पर जिस उम्मीद से भाजपा ने उनपर दांव लगाया था उस कसौटी पर वह खरे नहीं उतरे। हालांकि शुरू में उनहे भाजपा का राष्टï्रीय उपाध्यक्ष बनाने के साथ ही गुजरात का प्रभारी बनाया गया था। लेकिन उनकों भाजपा का कददवर चेहरा बनाने की सारी कोशिशें काम नहीं आई। यूपी में गुजरात कैडर के आईएएस अरविंद कुमार शर्मा की इंट्री के मायने यह लगाए जा रहे है कि वे जहां सरकार और संगठन पर निगाह रखेगे वहीं ब्राम्हणों को भी पार्टी से जोडऩे ंमे ंनिर्णायक साबित होगे। राजनीतिक प्रेक्षकों की माने तो पीएम नरेन्द्री मोदी के करीबियों में अपना शुमार करा चुके अरविंद कुमार शर्मा पार्टी के कुछ मनबढ़ नेताओं पर भी लगाम लगाने का काम करेंगे। सरकार और संगठन में कुछेक नेताओं को यह गलतफहमी होने लगी कि यूपी में वहीं पार्टी का चेहरा मोहरा है लिहाजा चुनाव में हारजीत में वहीं निर्णायक भूमिका निभायेगे। अब जब यूपी में विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है तब पार्टी में 2017 के चुनाव नतीजे दोहराने के गरज से कुछ फैसले केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा ही लिए जाने है जिनकी शुरूआत अरविंद कुमार शर्मा की ज्वाइनिग और उन्हे विधानपरिषद का उम्मीदवार बनाये जाने से हो गयी है। राजनीतिक प्रेक्षकों की माने तो विधानपरिषद का सदस्य नियुक्त होते ही उन्हे सरकार में अति महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इस जिम्मेदारी का मतलब यह होगा कि सरकार में उनकी भूमिका सेकेंड नंबर की होगी। हालांकि एकेशर्मा की इंट्री से सरकार और संगठन दोनों में अन्र्तकलह शुरू हो गयी है लेकिन खुलकर सतह पर नहीं आ रही है। अनुशासनात्मक कार्रवाई के डर से लोग दबी जुबान से केन्द्रीय नेतृत्व के इस निर्णय को लेकर नाखुश है। पार्टी में वर्षो से जो लोग मूलकाडर से जुड़े है उनमें भी इस बात को लेकर खासा असंतोष है कि बाहरी लोगों को यहां थोपकर प्रदेश के लोगों की उपेक्षा की जा रही है। संगठन में पहले से एक प्रभावी हस्तक्षेप वाले पदाधिकारी के आगे पूरी प्रदेश कार्यकारिणी यसमैन की भूमिका में है अब सरकार पर भी अपना अकुंश बनाए रखने के लिए केन्द्रीय नेतृत्व ने एके शर्मा को भेज दिया है।