अभिषेक मिश्रा ‘अर्जुन’ । जैसे-जैसे बंगाल चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे वहां पर सुगबुगाहट भी बढ़ती जा रही है । इस बार बंगाल की मौजूदा टी एम सी सरकार पर अपनी साख बचने की चुनौती है । लगातार सभी राजनीतिक दल बंगाल के अखाड़े में अपने अपने दांव पेंच आज़मा रहे हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा सीटों के फासले को कम करने की होगी । पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को बंगाल में महज़ तीन सीटे ही मिली थी और इसलिए यह पर लड़ाई में भाजपा कमज़ोर दिख रही है । मज़बूत पक्ष के साथ साथ कमज़ोर पक्ष को भी देखते हुए यह समझना आसान होता जा रहा है कि बंगाल में लड़ाई किसके किसके बीच है । एक तरफ जहां कांग्रेस अपनी साठ – गांठ वामपंथी दलों के साथ करने में जुटी है , वही भाजपा भी हर बार की तरह अकेले मैदान में है । अगर पिछले चुनावों में दीदी की पार्टी की बात की जाए तो उनकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी को कुल 294 विधानसभा सीटों में से 211 में जीत मिली थी और इन आंकड़ों से साफ पता चल रहा है कि ममता बैनर्जी की सरकार को चुनौती देना मुश्किल नजऱ आ रहा है । सभी राजनीतिक दल एड़ी चोटी का जोर लगा कर कुछ नया करने की तलाश में है। अगले महीने की 27 तारीख से बंगाल सहित पांच राज्यो के चुनावी संग्राम की शुरूआत होने वाली है , बता दे कि बंगाल में आठ चरणों मे चुनाव होंगे । गौरतलब है उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य जहाँ चार सौ से अधिक विधानसभा सीटें हैं वहां सात चरणों मे चुनाव हुए जबकि बंगाल में 294 सीटों के लिए आठ चरणों मे चुनाव कराया जाएगा । खैर बात भाजपा की करें तो सभी बड़े नेता बंगाल की ओर अन्य राज्यों से अधिक ध्यान देते हुए चुनाव की तैयारियों में लगे हैं । उधर देश के बड़े चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी दावा कर रहे बंगाल में दीदी की वापसी तय है , न केवल तृणमूल कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी बल्कि भाजपा को एक सौ सीटों के अंदर रोकने में कामयाब होगी । सभी राजनीतिक दल अपनी जान झोंकते हुए रैलियों में लाखों की भीड़ भी होने का दावा कर रहे हैं लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि सत्ता की चाभी किसके हाथों में जाती है । चुनावो की तारीखों के एलान के बाद हम सभी को अब दो मई के इंतज़ार रहेगा कि बंगाल की जनता ने किसपर भरोसा दिखाया ।