डॉ. वंदना सेन। भारत उत्सव प्रधान देश है। लोक चेतना के भाव से अनुप्राणित हमारे त्यौहार वास्तव में हमारे जीवंत संस्कारों की ऐसी धरोहर है, जिसकी मिसाल विश्व के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलती, लेकिन जहां इन त्यौहारों की झलक प्रादुर्भित होती है, वहां किसी न किसी रूप में भारत के संस्कारों का प्रभाव है। आज दुनिया के कई देशों में भारतीय त्यौहार भी धूमधाम और परंपरा के साथ मनाए जाते हैं। जो निश्चित ही यह बोध कराता है कि हमारी संस्कृति सर्वग्राही है, सर्वव्यापक है। लेकिन मुख्य सवाल यह है कि हम भारतीय जन अपने त्यौहारों की व्यापकता को विस्मृत करते जा रहे है। उनका स्वरूप बदल दिया है। इसीलिए ही हमारे देश की नई पीढ़ी अपने भारत से दूर होती दिखाई देने लगी है। यह दृष्टिकोण जहां मानसिक विचारों में संकुचन का भाव पैदा कर रहा है, वहीं अपनी संस्कृति से दूर होने का अहसास भी करा रहा है।
भारत के मुख्य त्यौहारों में शामिल होली का त्यौहार विविधता को एक रूप में स्थापित करते हुए सामाजिक एकता का बोध कराने वाला है। जिस प्रकार अनेक रंग मिलकर एक नया रंग बनाते हैं, उसी प्रकार भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले जन भी एक ही भाव से होली का त्यौहार मनाते हैं। यहां क्षेत्रीयता के आधार पर विभाजन करने वाली दीवारें धराशायी हो जाती हैं। पूरे भारत में होली का उल्लास ही दिखाई देता है। सब एक ही रंग में रंगे हुए दिखाई देते हैं। इसलिए होली को भारत की एकता का त्यौहार निरूपित किया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
होली को कुछ लोग हुड़दंग का त्यौहार बताते हैं, जबकि सत्य यह है कि यह हुड़दंग ही होली की मस्ती है, यह मस्ती होली का उल्लास है। हमने फि़ल्म शोले का एक गाना अवश्य ही सुना होगा। होली के दिन दिल खिल जाते हैं, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। वास्तव में यह गाना भले ही काल्पनिक चित्रांकन का हिस्सा है, लेकिन इस गीत में होली के वास्तविक स्वरुप से परिचय कराया गया है। यह गाना हमारे जीवन का हिस्सा है। इसलिए कहा जा सकता है कि होली के रंग प्यार और अपनत्व की भाव धारा को ही प्रस्फुटित करते हैं, जिसमें शत्रुता के भावों का स्वत: ही शमन हो जाता है। होली का त्यौहार हिल मिलकर जीने का संदेश देता है। इसमें जो रंग उड़ते दिखाई देते हैं वे प्यार के रंग हैं, तकरार के नहीं। होली दुश्मन को भी दोस्त बनाने वाला त्यौहार है। हम होली के वास्तविक स्वरूप को समझेंगे तो स्वाभाविक रूप से हमें होली का संदेश भी समझ में आएगा और समाज में कोई दुश्मन भी नहीं रहेगा।
भारत में होली की प्रचलित धारणाओं के बारे में यही कहा जाता कि होली का वास्तविक स्वरूप देखना हो तो ब्रज की होली को साक्षात देखिए। वहां दोस्त ही नहीं दुश्मनों के साथ भी होली खेलने का आनंद दिखाई देता है। ब्रज की लठ्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए कई देशों के लोग ब्रजभूमि में आते हैं और होली खेलने वाले लोगों को फटी आंख से देखते रहते हैं। विदेशी लोगों के लिए भारत की होली का यह स्वरूप एक अजूबा जैसा ही होता है। ब्रज भूमि में होली को देखकर यह सहज में ही पता चल जाता है कि होली का त्यौहार संस्कृति और धर्म से गहरा नाता स्थापित किए हुए है। इतना ही नहीं होली का त्यौहार प्रकृति के साथ सामंजस्य भी स्थापित करता है। हम जानते कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। होली के अवसर पर किसान अपनी फसल को देखकर प्रसन्न होता है। खेत में खड़ी फसल उत्पादन का पहला हिस्सा अग्नि को समर्पित करता है। उसके बार उसे घर लाने की तैयारी होने लगती है। कुल मिलाकर किसान अत्यंत ही प्रसन्न रहता है, जो एक उल्लास के रूप में प्रकट होता है। इसके साथ ही होली के अवसर प्रकृति का मनोहारी रूप भी दिखाई देता है यानी प्रकृति भी उल्लासमय है। यह बातें होली के त्यौहार को प्रकृति से जुड़ा होने का प्रमाण हैं।
हिंदी महीने के फागुन मास में मनाए जाने वाले इस त्यौहार में बुराई पर अच्छाई का संदेश भी छिपा हुआ है। हिरण्यकश्यप नाम का राक्षस अपने आपको भगवान के। समतुल्य मानने की भूल कर बैठा था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान की भक्ति में लीन रहता था। हिरणकश्यप को अपने पुत्र की यह भक्ति नागवार गुजरती थी। इसी के चलते हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद की जान लेने चाही और आग में न जलने का वरदान प्राप्त कर चुकी अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठा दिया। होलिका जल गई और भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गया। इसलिए यह कहना तर्कसंगत ही होगा कि जिस पर भगवान की कृपा होती है, उससे मृत्यु भी दूर हो जाती है।
होली वास्तव में एक ऐसा सतरंगी त्यौहार है, जिसे सभी भारत वासी पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सुसज्जित यह त्यौहार संप्रदाय और जाति के बंधनों को खोल देता है, सभी भाई चारे के साथ होली के त्यौहार को मनाते हैं। होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिस हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व जाति और संप्रदाय के बंधनों से मुक्त होकर होली मनाने की प्रेरणा देता है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं और एक दूजे को गुलाल लगाते हैं। बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं। वर्तमान में हम सभी को यह भी ध्यान रखना है कि आजकल बाजार में जो रंग मिलते हैं, उसमें कई प्रकार के हानिकारक रसायन मिलाए जाते हैं जो हमारे जीवन के रंग में भंग का काम कर सकता है। इससे त्वचा को भारी नुकसान भी हो सकता है। इस मनभावन त्यौहार पर रासायनिक रंग व नशे आदि से दूर रहना चाहिए। इसलिए मिलजुलकर पूरे उल्लास के साथ होली मनाएं, यही होली की सार्थकता है।
(लेखिका स्वतंत्र स्तंभकार है)