डेस्क। होली 29 मार्च दिन सोमवार को हस्त नक्षत्र तथा ध्रुव एवं जयद योग के युग्म संयोग में मनाई जाएगी। होली का पर्व हिन्दू धर्म में काफी पवित्र माना गया है। यह पर्व भारतीय सनातन संस्कृति में अनुपम और अद्वितीय है। यह पर्व प्रेम तथा सौहाद्र्र का संचार करता है। होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा की जाती है। सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ संतान के उज्ज्वल भविष्य की कामना की जाती है। इस दिन से नए संवत्सर की शुरुआत होती है।
पंडित संजय पांडे के अनुसार होलिका दहन के दिन प्रात: 05:55 बजे से दोपहर 1:33 बजे तक भद्रा हैढ्ढ इसीलिए होलिका दहन भद्रा के बाद किया जाता है । उन्होंने कहा कि भद्रा को विघ्नकारक माना गया है । भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 28 मार्च को उत्तरफाल्गुन नक्षत्र में रविवार को सूर्यास्त से लेकर निशामुख रात्रि 12. 40 बजे तक जलाई जाएगी। शाम 6. 15 बजे से शाम 7.40 बजे तक होलिकादहन का विशेष मूहूर्त है। रात्रि 2 बजकर 38 मिनट तक पूर्णिमा तिथि है। 28 मार्च को ही पूर्णिमा स्नान और दान का महत्व है। होलिका दहन के धुएं से प्रकृति में होने वाली समस्त शुभाशुभ फल की जानकारी प्राप्त करने के सूत्र भी वैज्ञानिक ऋषियों द्वारा प्रदत्त है। पहले समाज मे लोग वर्ष में होने वाले प्राकृतिक आपदा विपदा और शुभता की जानकारी होलिकादहन की रात धुएं से प्राप्त करते थे जो आज भी प्रासंगिक है ।