अंकित कुमार मिश्र। होली एक त्योहार मात्र नहीं है बल्कि यह समाज को सांप्रदायिकता के जहर से निकालकर बंधुत्व और भाईचारे के सौहार्दपूर्ण वातावरण से जोडऩे का एक बेहतरीन अवसर भी है। जैसे वसंत, प्रकृति में यौवन, उल्लास और आनंद का प्रतीक है, मस्ती भरी होली उसी उल्लास और आनंद की चरम सीमा है। यह उत्सव औपचारिकता के तमाम जटिल बंधनों को ध्वस्त करते हुए भारत की गंगा जमुनी तहजीब को चरितार्थ करता है। होली में उड़े रंग लोगों को ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जात- पात, धर्म-संप्रदाय के इंसानी लकीरों को मिटाकर एकजुटता का संदेश देती है। आधुनिक भारत के निर्माण के साथ जिस रफ्तार से भारतीय सिनेमा का वर्चस्व पूरी दुनिया में कायम हुआ और जिस अंदाज से इसकी बेहतरीन प्रस्तुतियों ने पूरे विश्व को भारतीय परंपरा व संस्कृति की ओर आकृष्ट किया इसका बखूबी लाभ भारतीय त्योहारों को उसके प्रचार प्रसार के तौर पर प्राप्त हुआ। वैश्वीकरण के इस दौर में भारतीय सिनेमा का ही कमाल है कि होली जैसा भारतीय त्योहार नीदरलैंड, मारीशस, त्रिनिदाद, गयाना, केनिया, वेनेजुएला, सेंटलुसया जैसे विश्व के कई अन्य देशों को अपने रंग में रंग कर वसुधैव कुटुंबकम् की वकालत करता नजर आता है। यूं तो संगीत की उपस्थिति भारतीय समाज में हमेशा से रही है। होली को भी इस पर आधारित गीत संगीत से अलग होकर नहीं देखा जा सकता। भारतीय गीत संगीत का जो नाता होली से है वह शायद किसी अन्य पर्व से नहीं है। सिनेमा और होली की संगत होली के रंगों को और भी गहरा और अमिट बनाया है। भारतीय सिनेमा और होली पर्व के बीच आपस में गहरी अनुरक्ती रही है और शायद इसलिए ही भारतीय फिल्मों में किसी त्योहार का सबसे ज्यादा और सबसे गहरा रंग दिखा तो वह होली ही है। एक तरफ जहां सिनेमा ने दर्शकों के बीच होली की मस्ती, शरारत, छेड़छाड़, प्यार, दोस्ती के अलावा विरह वेदना के कई रंगों को प्रदर्शित कर इसे और भी रंगीन और अमिट बनाने का काम किया। वहीं दूसरी ओर सिनेमा में फिल्माए गए होली के दृश्यों ने फिल्मों तथा गीतों को ऐतिहासिक व अविस्मरणीय बनाने के साथ साथ कलाकारों को भी काफी नामचीन और लोकप्रिय बनाया है। सन 1940 में आई महमूद द्वारा निर्देशित ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म ‘औरत’ का गीत ” जमुना तट श्याम खेले होली” में पहली बार स्त्री पुरुष एक दूसरे पर रंग उड़ेलते दिखाई दिए जो समाज में स्त्री पुरुषों के बीच व्याप्त संकीर्ण मानसिक रूढिय़ों को तोड़ती नजर आई। हालांकि इस फिल्म में होली का असली रंग नहीं दिख सका क्योंकि फिल्म के ब्लैक एंड व्हाइट होने की वजह से इसमें सारे रंग, अबीर, गुलाल, नायक- नायिका और रंग बिरंगे कपड़े सिर्फ काला और सफेद दिखाई दे रहे हैं। होली का एक और सफेद श्यामल रंग 1950 में आई दिलीप कुमार अभिनीत केदार शर्मा की फिल्म ‘जोगन ‘ में मीरा के भजन पर आधारित गीता दत्त की सुरीली आवाज वाली ‘डारो रे रंग डारो रै रसिया’ गीत में दिखाई दिया। इससे पहले 1944 में अमिया चक्रवर्ती निर्देशित दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ ज्वार भाटा ‘ में फिल्माया गया होली का काला और सफेद सिनेक्स भी दर्शकों के लिए मील का पत्थर साबित हुई। फिल्मों ने होली का पहला रंगीन रूप 1952 में महबूब के निर्देशन में आई फिल्म “आन” के ‘खेलो रंग हमारे संग” गीत में दिखा। इसके बाद तो मानों होली पर आधारित एक से बढक़र एक कई फिल्मों और गीतों का तांता लग गया। सन 1958 में महबूब खान के निर्देशन में भारत की बेहद चर्चित, लोकप्रिय और मशहूर फिल्म आई ‘मदर इंडिया’। इस फिल्म के निर्देशक महबूब खान को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। नौशाद के संगीत और शमशाद बेगम की आवाज में शकील बदायूंनी का लिखा इस फिल्म का गीत ” होली आई रे कन्हाई रंग बरसे” दशकों बाद आज भी होली के दिन काफी सुना और बजाया जाता है। रफी, आशा और मन्ना डे के मिश्रित स्वर में रंगों को खुशहाली का प्रतीक बनाता इसी फिल्म का एक और गीत ‘ दुख के दिन बीते रे भैया/ सुख के दिन आयो रे/ रंग नया जीवन लायो रे, देश के आम जनजीवन में आज भी काफी अन्दर तक रचा बसा है। इसके अगले ही साल यानी 1959 में महिपाल और संध्या अभिनीत फिल्म ‘ नवरंग ‘ में होली के दिन नायक और नायिका के बीच होने वाले स्नेहिल मुहब्बत भरे नोकझोंक को होली के गीत “अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मेरा घूँघट पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे” में बखूबी प्रदर्शित गया। साठ के दशक में भी भारतीय सिनेमा के पर्दे पर होली का रंग बदस्तूर जारी रहा। सन् 1960 में आई दिलीप कुमार और मीना कुमारी की फिल्म “कोहिनूर” में होली पर आधारित गीत ‘तन रंग लो, जी मन रंग लो ‘ लोगों को खूब भाया। इस फिल्म के लिए दिलीप कुमार और मूशा मंसूर को क्रमश: बेस्ट एक्टिंग और बेस्ट एडिटिंग के लिए फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। सन् 1970 में आई फिल्म ‘कटी पतंग’ के गीत ‘आज न छोड़ेंगे हम हमझोली खेलेंगे हम होली ‘ गीत में कमल की भूमिका में सुपर स्टार राजेश खन्ना विधवा माधुरी के किरदार में आशा पारेख को रंगों से सराबोर कर देते हैं। यह दृश्य भारतीय समाज की उस कुप्रथा को तोड़ता मालूम पड़ता है जिसमें एक विधवा नारी को जिंदगी के तमाम रंगों से बेरंग कर दिया जाता है। कई फिल्मों में होली के दृश्यों का प्रयोग फिल्म की जटिलता को बोधगम्य दृश्य में परिणित करने के लिए किया गया है। सन् 1981 आई ऐसी ही एक फिल्म थी ‘सिलसिला’। अमिताभ, रेखा, संजीव कुमार और जया बच्चन पर फिल्माए गए इस फिल्म में चारों किरदारों को प्रेम, दांपत्य और अविश्वास की अनसुलझी पहेली से बाहर निकलने का रास्ता खोलने वाली अमिताभ बच्चन के गजब अंदाज में गाए गए हरिवंशराय बच्चन का गीत ‘रंग बरसे भींगे चुनर वाली…’ होली पर्व की जान बन गई जो आज भी अन्य होली गीतों की तुलना में लोकप्रियता के मामले में कई गुणा आगे है। होली के मौके पर यह गीत मौजों के सारे रंगों पर भारी पड़ता दिखाई देता है। हालांकि अमिताभ की ही आवाज में सन 2003 में आई ‘ बागबान ‘ फिल्म की एक और होली गीत “होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीरा…” होली के दिन लोगों को खूब मोहित करता है। सन् 1993 में यश चोपड़ा के कुशल निर्देशन में आई जूही चावला और शाहरूख खान के अभिनय वाली ऐसी ही एक और फिल्म है ‘डर ‘ जिसमें एक तरफ़ जहां होली गीत “अंग से अंग लगाना..” राहुल (शाहरूख) किरण ( जूही चावला) को प्रेम और भय के बेहद सघन तनावों के बीच छूने का मौका देकर फिल्म की गुत्थी को सुलझाती नजर आती है वहीं निर्देशक को अपनी कहानी को अंजाम तक पहुंचाने का भी रास्ता दिखलाती है। यश चोपड़ा के निर्देशन में ही सन 1984 में आई फिल्म ‘ मशाल ‘ और सन 2000 में आई फिल्म ‘मोहब्बतें ‘ का क्रमश: दो गाना “होली आई होली आई….” और “सोनी सोनी अखियों वाली दिल दे जा या दे जा तू गाली….” ने बॉलीवुड के बड़े पर्दे पर खूब रंग बिखेरा। ऐसा नहीं है कि फिल्मों में होली के गीतों व दृश्यों को मजह उलझे कहानी को सुलझाने के लिए प्रयोग किया गया हो बल्कि फिल्म को आगे बढ़ाने में भी इसका बखूबी इस्तमाल हुआ है। ऐसे ही कुछ फिल्म और गीतें हैं 1982 में आई ‘ कामचोर ‘ और 1985 में आई राजेश खन्ना तथा स्मिता पाटिल अभिनीत फिल्म ‘ आखिर क्यों ‘ का क्रमश: दो गाना ” मल दे गुलाल मोहे…. “और ” मस्त रंग में खेल रही है दिलवालों की टोली रे…”। सुपर स्टार राजेश खन्ना 1973 में आई एक और फिल्म फिल्म ‘ नमक हराम ‘ का गीत “नदिया से दरिया, दरिया से सागर…” व 1981 में आई फिल्म ‘ धनवान ‘ के “मारो भर भर पिचकारी…” जैसे अन्य गीत भी होली के रंग में सराबोर नजर आए। सिनेमा में टर्निंग प्वाइंट के लिए भी होली के सीनेक्स को कई बार फिल्माया गया है। लोकप्रियता, कामयाबी और मशहूरियत के शिखर को छूने वाली सन 1973 में आई फिल्म ‘ शोले ‘ में गब्बर सिंह के गर्वीले सवालिया अंदाज में रूमानी ज्जबात से भरा डायलॉग “होली कब है? कब है रे होली” सुनकर आज भी लोगों का मन उमंग और उल्लास से भर उठता है। धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, अमिताभ बच्चन और जया बच्चन अभिनीत इसी फिल्म का एक गीत जो होली के रंग का मूल संदेश देती है “होली के दिन दिल मिल जाते हैं… दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं” होली के गीत की पहचान बन गई। धर्मेंद्र और हेमनामालिनी की जोड़ी फिल्म ,’राजपूत ‘ के गीत “भागी रे भागी रे भागी ब्रजबाला, कान्हा ने पकड़ा रंग डाला” गीत में भी एक साथ होली के रंग में रंगते नजर आई। हालांकि धर्मेंद्र 1973 में आई एक फिल्म ‘फागुन ‘ के एक गीत “फागुन आयो रे…” में वहीदा रहमान को भी रंगते नजर आए। प्यार के इकरार व मिलन के अलावा प्रेम की विरह वेदना को भी निर्देशकों ने फिल्मों में होली के माध्यम से बखूबी दर्शाया गया है। होली गीत नहीं होते हुए भी ‘गाइड ‘ फिल्म में वहीदा रहमान पर फिल्माया गया गीत “आई होली आई, सब रंग लाई, तेरे बिन होली भी न भायी” में प्रेमी युगल के तड़प और भावुकता को बड़ी कुशलता से व्यक्त किया गया है।
समय के साथ साथ भारतीय सिनेमा का रंग भी काफी तेजी से बदला। होली का सिनेक्स भी इससे अछूता न रहा। फिल्मों में भी होली की आधुनिकता और शहरीकरण का रंग गहराता चला गया। सन 2005 में आई फिल्म ” वक़्त द रेस अगेंस्ट टाइम” के गीत “डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली”, सन 2013 में आई दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर की फिल्म ‘यह जवानी है दीवानी’ का गीत बलम “पिचकारी जो तूने मुझे मारी” और फिर 2017 में आई वरुण धवन और आलिया भट्ट की फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ का गीत “बद्री की दुल्हनिया…” और फिर अभी हाल ही में सलीम सुलेमान के संगीत निर्देशन में डॉ सागर का लिखा गीत “बबूनी तेरे रंग” भारतीय सिनेमा व गीतों में होली के दृश्यों पर आधुनिकता के गहराते रंगों के कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं। जिस तरह से होली के दृश्यांकन ने भारतीय फिल्म और संगीत को पहचान दिलाई उसी तरह फिल्मों और फिल्म संगीतों ने भी होली को पूरे विश्व में काफी लोकप्रिय बनाया।