डेस्क। शीतला माता का व्रत चैत्र कृष्ण की अष्टमी को मनाया जाता है। व्रत का संकल्प चैत्र कृष्णा सप्तमी को लिया जाता है जो अष्टमी को पूरा होता है। शीतला माता की व्रत को बसोड़ा भी कहते हैं। बसोड़े का मतलब होता है बासी भोजन करने का व्रत। शीतला माता के व्रत करने के लिए चैत्र कृष्ण सप्तमी जो शनिवार यानी तीन अप्रैल को हो है, उस दिन घर में सुख-शांति और संपन्नता के लिए इस व्रत का संकल्प लेकर शाम को समय खाद्य पदार्थ बनाएं। इसमें सूखी मेवा, भात, मिष्ठान और मीठे पुए शामिल हैं। अगले दिन यानि रविवार को चैत्र कृष्ण अष्टमी को यह भोजन किया जाएगा। जो भोजन सप्तमी की रात को तैयार किया गया था वही अष्टमी को पूरे दिन प्रयुक्त किया जाता है। अष्टमी को चूल्हा नहीं जलाया जाता। ज्योतिषीय विधान में तो घर में इस दिन झाड़ू लगाना भी वर्जित है। इस दिन झाड़ू एवं सूप का प्रयोग नहीं किया जाता। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला गदर्भ पर सवार होकर हाथ में झाड़ू और गले में नीम के पत्तों की माला पहनकर आती हैं। इसका तात्पर्य है शीतला माता को शीतलता,स्वच्छता, शांति और सौहार्द बहुत प्रिय है। यह व्रत करने से मां शीतला संतान की आयु एवं सुख के साथ-साथ घर में धन बरसाती हैं। अष्टमी के दिन शीतला माता का कहानी सुनी जाती है। ओम शीतला मातायै नम:का जाप करें।