खत्म नहीं हो रही शमशान में लाशों की कतारें

डेस्क। घाट दर घाट स्थिति भयावह नजर आती है। शहर के तमाम मोहल्लों में कोलाहल है। पिछले कुछ दिनों से असामयिक मौतों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ जो थमने का नाम नहीं ले रहा। लाशें इतनी कि श्मशान घाटों पर कतार लगी है। अपनों की अंत्येष्टि कराने के लिए लोगों को टोकन लेना पड़ रहा। एडवांस बुकिंग करानी पड़ रही। मंजर ऐसा कि दिल दहल जाए।
पिछले दो दिनों से टोकन के जरिए हो रहे अंतिम संस्कारों ने घाटों पर हाहाकार की स्थिति पैदा कर दी है। सनातन धर्म में मान्यता है कि सूर्यास्त के पहले तक अंतिम संस्कार बेहतर रहता है मगर यहां रात के आठ-नौ बजे तक लकडिय़ां धधक रही हैं। मंगलवार को शहर के सबसे बड़े भैरो घाट श्मशान घाट का मंजर देख सैकड़ों आंखें रो पड़ीं। यहां तडक़े ही दस लाशें पहुंच चुकी थीं ताकि बाद में कतार में लगने की नौबत न झेलनी पड़े।
पुरोहित पुत्तन मिश्रा कहते हैं कि शवों के साथ आए लोग चाहते थे कि जल्दी से अंतिम संस्कार हो जाए ताकि बाद में आने वाली भीड़ से भी वह बच सकें। उनका कहना था कि पिछले दस दिनों में जितनी लाशें यहां एक साथ देखीं हैं उतनी 40-45 दिन मिलाकर नहीं देखी। सोमवार को 70 शवों का संस्कार यहां हुआ था। मंगलवार की दोपहर तक 55 अंत्येष्टि की जा चुकी थी। भगवतदास घाट की सह संचालिका प्रियंका द्विवेदी कहती हैं कि लाशों के साथ आए लोगों की वेदना दिल में बेधने वाली है। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि लाशों के आने का तांता लगा हो। यहां हर आधे घंटे पर दो-तीन शव पहुंच रहे हैं। सोमवार को यहां 41 शवों की अंत्येष्टि हुई। इसी तरह बिठूर घाट के ठेकेदार अमिताभ बाजपेई कहते हैं कि भैरो घाट में जब टोकन सिस्टम चालू हुआ तो लोग बिठूर की तरफ रुख करने लगे। सोमवार से शवों की संख्या में और इजाफा हो गया है। हमें अलग से लकडिय़ों का इंतजाम करना पड़ा है। सोमवार को 45 अंतिम संस्कार हुए थे।