प्रयागराज। संगम के समीप देवरख गांव के सामने गंगा घाट का दृश्य इन दिनों बिल्कुल बदला हुआ है। पहले वहां दूर तक सिर्फ रेत ही रेत दिखती थी लेकिन इस समय रेत के छोटे-छोटे टीले और उसके ऊपर पड़ी लाल-पीले रंग की रामनामी नजर आ रही है। इन टीलों में शव दफन किए गए हैं। सही संख्या तो पता नहीं पर सौ से अधिक शव दफन किए जाने का अनुमान है। दृश्य ठीक वैसा ही है जैसा पिछले दिनों उन्नाव में दिखा था। आसपास के लोग भी इसे देखकर हैरान हैं।
उनका कहना है कि गंगा किनारे इस तरह का दृश्य पहले कभी नहीं दिखा। वहां इक्का-दुक्का शव दफन किए जाते हैं। एक जाति विशेष, 18 वर्ष से कम आयु, धर्म परिवर्तन करने वालों के साथ ही अंतिम संस्कार का खर्च वहन न कर पाने वाले वहां चोरी छिपे शव दफन कर देते हैं। इतनी बड़ी संख्या में दफन शव कोरोना काल में ही देखे जा रहे हैं। नए यमुना पुल के ऊपर से वहां शवों को दफन करने से बने छोटे-छोटे टीलों को देखा जा सकता है।
स्थानीय लोगों ने कई बार इसकी शिकायत पुलिस और प्रशासनिक अफसरों से कर शव दफन करने पर रोक लगाने की मांग की। कई बार पुलिस ने शिकायत करने वालों को डांट कर भगा दिया। संजय श्रीवास्तव, कुंवरजी तिवारी ने बताया कि जिस रास्ते लोग शव लेकर जाते हैं, वहां पुलिस मौजूद रहती है लेकिन रोका-टोका नहीं जाता है। यह स्थिति तब है जबकि उन्नाव का प्रकरण सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने अफसरों को सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं।
घाट के पास बिकने लगी लकड़ी नैनी के अरैल और देवरख गंगा घाट पर शव जलाए जाते हैं। शवों की संख्या कम होती है इसलिए कोई व्यवस्था नहीं थी। लोग लकड़ी घर से लेकर आते हैं नहीं तो पांच किलोमीटर दूर से लानी पड़ती है। कोरोना के वक्त शवों की संख्या बढ़ी है। देवरख घाट के पास उसी तरह से लकड़ी बिकने लगी है जैसे रसूलाबाद और दारागंज घाट पर बेची जाती है। अरैल के जयव्रत सिंह ने बताया कि पहले महीने में 20 से 30 शवों अंतिम संस्कार होता था, अब संख्या 100 से अधिक हो गई है।
संगम के किनारे बन गया कब्रिस्तान
