नाग पंचमी: आखिर क्यों होती है नागों की पूजा

डेस्क। हमारे प्राचीन साहित्य उपनिषद, वेद,पुराणों में नर,वानर गिद्ध, ऋक्ष, पन्नग अर्थात सर्प संस्कृतियों का उल्लेख है। आदिकाल से ही मानव विश्व कल्याण के लिए प्रसिद्ध है। नाग वंश के वीर राजाओं की भी सैकड़ों कथाएं पुराणों एवंं इतिहास की पुस्तकों में लिखी पड़ी हैं। महाभारत काल में महारानी कुंती के नाना नाग लोक के ही निवासी थे। ऐसा वर्णन आता है कि नर और पन्नग (सर्प) में आपसी संबंध भी हुआ करते थे। जब बचपन में दुर्योधन द्वारा भीम को जहर देकर गंगा में में फेंक दिया गया था ताक गंगा में नाग जाति के रक्षक उन्हें नागलोक ले गए। वहां के राजा कुंती के नाना थे। जब उन्होंने भीम को जहर देने की बात सुनी तो उन्होंने भीम को अमृत पिलाकर दस हजार हाथियों का बल प्रदान कर दिया। भगवान कृष्ण ने बालपन में कालिया नाग अर्थात दुष्ट प्रवृत्ति के सर्पों का मर्दन किया था। अर्जुन ने भी वनवास के दौरान नाग कन्या चित्रांगदा से विवाह संबंध स्थापित किया था। यह सब बातें पुराणों और इतिहास में वर्णित हैं।
हमारी संस्कृति में प्राचीन काल से ही वानर,ऋक्ष और सर्प जातियों के साथ मधुर संबंध रहे हैं और यह सब जातियां मनुष्य की हितेषी हैं। सर्प किसान का हितैषी है। जंगल में चूहे आदि नुकसान पहुंचाने वाले जंतुओं को खाता है। वेदों में भी सर्प पूजन का विधान है। शास्त्रों में 12 प्रकार के नागों का वर्णन है जिनमें तक्षक कुलिक,अनंत, महापद्म, शंखपाल, पातक, वासुकी एवं शेषनाग प्रमुख हैं। किंतु आज के परिपेक्ष में इसका अर्थ बदल गया है। सांपों को दूध पिलाना एक मुहावरा बन गया है अर्थात विश्वासघातियों का पालन-पोषण करना। सांप को चाहे जितना दूध पिलाओ उससे उसका विष ही बढ़ता है और गलती होने से वह हमें डस भी सकता है किंतु यह सर्वथा सत्य नहीं है। आज के दोहरे चरित्र वालों के लिए यह सही तो बैठता है, किंतु सर्प जाति के लिए यह सही नहीं है।