शरद पूर्णिमा आज: बरसेगा अमृत

फीचर डेस्क। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस व्रत को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। कहते हैं कि इस दिन मां महालक्ष्मी का जन्म हुआ। मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर पृथ्वी लोक पर भ्रमण के लिए आती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। इस दिन प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती हैं। कहते हैं कि इस रात को देखने देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। शरद पूर्णिमा पर मां महालक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी अमृत समान होती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में बैठने से शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। श्वांस संबंधी बीमारी दूर होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र दर्शन करने से नेत्र संबंधी रोग दूर हो जाते हैं। इस रात्रि खीर का भोग लगाकर आसमान के नीचे रखी जाती है। मां लक्ष्मी का पूजन करने के बाद चंद्र दर्शन किया जाता है। शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात्रि में जागरण करने और मां लक्ष्मी की उपासना से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान उन्हें गुलाबी रंग के फूल और इत्र, सुंगध अर्पित करें। श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ चंद्रदेव की विशेष पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी को सफेद मिठाई अर्पित करें। शाम को श्रीराधा-कृष्ण की पूजा करें। उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। मध्य रात्रि में चंद्रमा को अघ्र्य दें। शरद पूर्णिमा पर सात्विक भोजन करें। शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।