बोले बिरला: विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका सीमाओं में रहकर बेहतर कार्य करना चाहिए

नयी दिल्ली। संवैधानिक लोकतंत्र के महत्व को रेखांकित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बृहस्पतिवार को कहा कि विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर बेहतर ढंग से और समन्वय के साथ काम करना चाहिए ताकि देश की जनता और समाज का कल्याण सुनिश्चित किया जा सके। उन्होंने कहा कि छात्रों एवं युवाओं को कानून बनाने की प्रक्रिया के दौरान सरकार एवं जन प्रतिनिधियों को सुझाव एवं राय देनी चाहिए । संसद के केंद्रीय कक्ष में “संविधान में निहित शक्तियों का पृथक्करण” विषय पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि भारत का संविधान हमारे लिये एक ऐसा मार्गदर्शक ग्रंथ है जो पिछले सात दशकों की यात्रा में सामाजिक, आर्थिक विकास सहित सभी कार्यो में राह दिखा रहा है तथा लोकतंत्र को मजबूती प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान ऐसा अद्भुत मिश्रण है जहां संसदीय प्रणाली को चलाने के लिये विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं को अलग-अलग कार्य एवं अधिकार दिये हैं। बिरला ने कहा कि विधायिका देश के लोगों की चिंताओं का ध्यान रखती है और उसके अनुरूप कानून बनाती है । कार्यपालिका सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू करने का काम करती है तथा न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या एवं न्याय देने का काम करती है। उन्होंने कहा, ‘‘ ऐसे में इन तीनों अंगों को अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर किस तरीके से काम करना है, इसका ध्यान देना होगा। इन तीनों अंगों में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं हो और ये आपस में मिलकर समन्वय के साथ ऐसी कार्य योजना बनाए जिससे समाज एवं जनता का अधिकतम कल्याण सुनिश्चित हो। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति युवाओं की अधिक जिम्मेदारी है । उन्होंने कहा, ‘‘ लम्बे समय तक हमने अधिकारों की बात की । आज समाज के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। ’’