भारत के आइंस्टीन: सत्येंद्र नाथ बोस जिनके सिद्धांतपर 7वैज्ञानिकों को नोबेल पुरुस्कार मिले

डॉक्टर रामानुज पाठक। बीसवीं सदी के सबसे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन जिनकी खोजों ने मानव कल्याण में असीमित योगदान दिया है। द्रव्य ऊर्जा समीकरण सहित कई महत्वपूर्ण खोजों के लिए आइंस्टीन को वैज्ञानिक बिरादरी में बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। वहीं भारत के महान वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस जिनके वैज्ञानिक सिद्धांतो के आधार पर एक दो नहीं बल्कि सात सात वैज्ञानिकों को सर्वाधिक प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला लेकिन दुर्भाग्य से नोबेल कमेटी द्वारा हमेसा भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस को उपेक्षित किया गया।सत्येंद्र नाथ बोस और अल्बर्ट आइंस्टीन का गहरा नाता था।इन दोनों महान वैज्ञानिकों के सम्मान में पदार्थ की पांचवीं अवस्था को बी ई सी (बोस आइंस्टीन कन्डेंस्ड फेज)कहा जाता है।नए साल के जश्न में हम यह भूल जाते हैं कि 1जनवरी को इस महान भौतिकिविद, गणितज्ञ, सांखिकीविद,वैज्ञानिक का जन्म दिवस भी होता है ,इस बीती एक जनवरी को सत्येंद्र नाथ बोस की 127वी जयंती थी।
सत्येंद्र नाथ बोस का विज्ञान में अतुलनीय योगदान दिया, लेकिन उनका कार्य को सीधी पहचान नहीं मिली। विज्ञान जगत में उनके सिद्धांतों पर चलते रहे प्रमुख कार्यों के कारण जरूर उन्हें सम्मान देने का प्रयास किया। लेकिन बोस को वह सम्मान कभी नहीं मिला जिसके वे हकदार थे. अल्बर्ट आइंस्टीन ने उनके कार्यों को यथोचित महत्व जरूर दिलाया।
एक जनवरी को हर बार हम नए साल का स्वागत करते हैं. इस जश्न में हम यह भूल जाते हैं कि भारत के विज्ञान के लिए यह एक बहुत महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन है भारत के महान वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस का जन्मदिवस भी है।सत्येंद्र नाथ बोस वे भारतीय वैज्ञानिक हैं जिनका नाम हमेशा ही दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिक माने जाने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ लिया जाता है। सत्येंद्र नाथ बोस को भारत का आइंस्टीन तक कहा जाता है। बोस एक भौतिकविद और गणितज्ञ थे जिन्हें क्वांटम भौतिकी के लिए किए गए कार्य के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।
सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता सुरेंद्रनाथ बोस ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी के इंजीनियरिंग विभाग में काम करते थे।परिवार में सत्येंद्र नाथ छह छोटी बहनों के इकलौते भाई थे।सत्येंद्र नाथ की शुरुआती पढ़ाई नदिया जिले के बाड़ा जगुलिया गांव में हुई थी। कोलकाता के प्रेजिडेंसी कॉलेज से इंटर किया था जहां जगदीश चंद्र बोस और प्रफुल्ल चंद्र रे जैसे महान वैज्ञानिकों व विद्वानों ने उन्हें पढ़ाया था।
सत्येंद्र नाथ बोस सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा।उनकी प्रतिभा देखकर कहा जाता था कि वे एक दिन पियरे साइमन, लेप्लास और आगस्टीन लुई काउथी जैसे गणितज्ञ बनेंगे। उस दौर के ये सभी महान वैज्ञानिक व गणितज्ञ गिने जाते रहे थे। उन्होंने पढ़ाने का भी काम किया और आइंस्टीन के मूल जर्मन शोधकार्यों के आधार पर अंग्रेजी की एक किताब के सहलेखक भी बने।
पदार्थ की अवस्थाओं को लेकर सत्येंद्र नाथ बोस ने 1924 में ‘प्लांक्स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम’ नाम से एक लेख लिखा। उन्हें लगता था कि ठोस से द्रव और गैस के बनने के बीच में भी पदार्थ की कोई ऐसी अवस्था तो होती होगी, जिससे वह गुजरता होगा, या ऐसी अवस्था जो इन तीनों के अलावा भी हो सकती है।लेकिन बोस के इस लेख को किसी पत्रिका ने जगह नहीं दी।
इसके बाद सत्येंद्र नाथ बोस ने अपने लेख को सीधे आइंस्टीन को भेज दिया।उन्होंने इसका अनुवाद जर्मन में किया और प्रकाशित करा दिया।सत्येंद्र नाथ बोस दुनिया भर की नजर में आ गए। उनके विचारों ने उस दौर के भौतिकी के सिद्धांतों में हलचल मचा दी। इसी का नतीजा था कि बोस यूरोपीय एक्स-रे और क्रिस्टलोग्राफी प्रयोगशालाओं में दो साल तक काम कर सके, जिस दौरान उन्होंने लुई डी ब्रोगली , मैरी क्यूरी और आइंस्टीन के साथ काम किया।
गैस के अणुओं की गति के गणित के लिए मैक्सवेल और बोल्ट्समैन ने एक खास सांख्यिकी ईजाद की थी जो परमाणुओं के स्तर तक अच्छे से काम करती थी।लेकिन परमाणु के भीतर उपपरमाणु कणों की जानकारी के बाद उन पर यह सांख्यिकी नाकाम हो गई।इनके लिए सत्येंद्र नाथ बोस ने नई सांख्यिकी की खोज की जिसे,आज,बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी कहा जाता है।
वैज्ञानिकों ने उपपरमाणु-कणों का गहन अध्ययन किया और पाया कि ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं।इनमें से एक का नामकरण सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया और दूसरे का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मिऑन’।यहां तक कि जब 2012 में गॉड पार्टिकल की खोज की तब उन्होंने बोस के नाम पर ही उसे ‘हिग्स-बोसोन कण’ नाम दिया गया था।फर्मियान,बोसॉन यानि फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसॉन (फोटोन, प्रकाश की मूल इकाई) और फर्मियान यानि क्वार्क और लेप्टॉन एवं संयोजित कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन ( चार्ज की मूल इकाई)यह वर्तमान भौतिकी का आधार हैं।जिस वैज्ञानिक की मेहनत का लोहा स्वयं आइंस्टीन ने माना हो, जिसके साथ स्वयं आइंस्टीन का नाम जुड़ा हो, जिसने सांख्यकी भौतिकी को नए सिरे से परिभाषित किया हो, जिसके नाम का आधार लेकर एक सूक्ष्म कण का नाम ‘बोसॉन’ रखा गया हो, उस व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार न मिलना अपने आप मे कई प्रश्न खड़े करता हैं।वर्तमान में अधिकांश वैज्ञानिकों का मत है की बोस- आइंस्टीन सांख्यकी सिद्धांत का जितना प्रभाव क्वांटम फिजिक्स में है उतना तो शायद “हिंग्स बोसॉन “का भी नहीं होगा।माँ भारती के यह वीर सपूत जिसने भारत की मेधा का पूरे विश्व मे लोहा मनवाया था अंतत: 80 वर्ष की अवस्था में4 फऱवरी 1974 को पंचतत्वों में विलीन हो गया।उन्हें,भारत के द्वितीय सर्वश्रेष्ट सम्मान ‘पद्मविभूषण‘से सम्मानित किया गया था।बोस – आइंस्टीन सांख्यकी सिद्धांत,इनके नाम पर एक सूक्ष्म परमाणु कण का नाम “बोसॉन” रखा हैं।बोस-आइंस्टीन कंडनसेट फेज (बी ई सी) का नाम भी इन दोनो महान वैज्ञानिकों अल्बर्ट आइंस्टीन और सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर किया गया था। बोस के सिद्धांतों के आधार अब तक 7 वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं, लेकिन बोस को कभी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला।

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