कमाल के थे कमाल साहब

अमृतांशु मिश्र। एनडीटीवी के वरिष्ठï पत्रकार कमाल खान साहब के इस तरह से असमय चले जाना वास्तव में बहुत ही दुखदायी रहा। जब कोई इस तरह से अपने बीच का चला जाता है तो उसकी यादें ही जीवन भर साथ रहती हैं। ऐसी ही याद मुझसे भी जुड़ी है। वैसे तो कमाल खान से मेरा कोई ज्यादा वास्ता नहीं रहा उनके साथ मैने काम भी नहीं किया मगर उसके बाद भी जब भी जहां मुलाकात होती उनका मुस्कुराते हुए नमस्कार का जवाब देना नहीं भूलता। कमाल खान से जुड़ी याद यह है कि 2012-13 के यूपी मान्यता समिति चुनाव में मैं भी कार्यकारिणी सदस्य के रूप में खड़ा था। फोन पर सबसे वोट मांगने का क्रम जारी था। इसी क्रम में मैने भी कमाल साहब को फोन किया। उन्होंने फोन उठाया तो मैने निवेदन उनके सामने रखा। कमाल साहब ने मुझसे कहा कि हां मैने आपका नाम सुन रखा है आप युवा हैं और युवाओं को मौका मिलना चाहिए। उन्होंने मेरा निवेदन स्वीकार करते हुए कहा कि आप जरूर विजयी होंगे। खैर चुनाव में विजय भी मिली। मैने फिर उनको फोन किया और धन्यवाद दिया तो उन्होंने कहा कि आप लोग पत्रकारिता को और आगे ले जायेंगे ये मेरा विश्वास है। आज सुबह जब मैने उनके इंतकाल की दुखद खबर सुनी तो सहसा विश्वास नहीं हुआ मगर फिर दिल को तसल्ली देने के लिए कई मित्रों को फोन किया तो पता लगा यह बात सही है। मन बहुत ही दुखी है मगर होनी को कौन टाल सकता है। कमाल साहब हमेशा यादों में जिंदा रहेंगे।