सफल तो हो ही चुका है प्रियंका का ‘प्रयोग’

रईस अहमद लाली। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर जारी सरगर्मियों के बीच एक चीज़ है जो लगातार सुखिऱ्यों में है और वह है कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी की सकारात्मक राजनीति को लेकर शुरू की गई पहल. इस पहल का ही नतीजा है कि विरोधी कांग्रेस पर हमला तक करने में असहज महसूस कर रहे हैं. वह चाहे मुद्दों को लेकर कांग्रेस पर तंज कसना हो, उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि पर सवाल उठाना हो या फिर नेतृत्व की अकर्मण्यता पर उसकी खिंचाई, कांग्रेस ने विरोधियों को कोई स्पेस नहीं दिया है. तभी गड़े मुर्दे उखाडक़र ही कांग्रेस से मिल रही चुनौतियों का सामना करने की कोशिश हो रही है। हकीकत तो यह है कि उत्तर प्रदेश में महासचिव प्रियंका गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस जनता की समस्याओं को लेकर हमेशा सडक़ों पर संघर्षरत्त रही है. महिलाएं प्रियंका की प्राथमिकता में ज़रूर शामिल हैं लेकिन समाज के अन्य वर्गों की भी उन्होंने खूब खोज खबर ली है. किसानों, नवजवानों, मध्यमवर्ग के दु:ख-तकलीफों की कांग्रेस ने परवाह की. किसान आंदोलन के वक़्त अगर कोई राजनितिक पार्टी खुलकर किसानों के पक्ष में सडक़ पर नजऱ आई, तो वह कांग्रेस ही थी. महंगाई, भ्रष्टाचार, मजलूमों पर अत्याचार पर भी कांग्रेस लगातार अपनी आवाज़ बुलंद करती रही और जब चुनाव मैदान में उतरने की बारी आई तो यहाँ भी कांग्रेस ने सबसे अलग एक लकीर खींचने की कोशिश की. जिस वर्ग को आधी आबादी का दर्जा दिया जाता है, उसे सियासत में भी तव्वजो देकर। प्रियंका गांधी की यह पहल उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देर-सबेर देश की सियासत में भी मील का पत्थर साबित होगी। उम्मीदवारों की घोषणा में प्रियंका ने जो वादा किया उसे निभाया। उन्होंने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की बात की थी, उसे पूरा किया. पहली सूची में पार्टी ने 125 में 50 तो दूसरी लिस्ट में 41 में 16 उम्मीदवार महिलाओं को बनाया. इतना ही नहीं, चंदेक अपवादों को छोड़ दें तो उसके उम्मीदवार भी बेहतर हैं दूसरे दलों के मुकाबले. सियासत की पिच पर वे भले ही उस रूप में मौजूद न रहे हों, जैसे आज की राजनीती का चरित्र है मगर वे साफ़-सुथरे चरित्र के हैं, जुझारू हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की मुहिम में जुटे हुए हैं. इन उम्मीदवारों की अपनी एक पहचान है, संघर्ष का उनका एक तजुर्बा है.
हालांकि उत्तर प्रदेश की सत्ता से तीन दशक से ज्यादा समय से दूर रही कांग्रेस प्रयोगों के सहारे अपने सुनहरे अतीत के गलियारे में दाखिल होने के लिए पहले से ही प्रयासरत है। पिछले विधानसभा चुनाव से ही उसका यह प्रयोग जारी हो चुका था. अब उसमें और धार दी जा रही है. यह प्रयोग प्रदेश कांग्रेस संगठन में फेरबदल के स्तर पर भी हुए और अब मतदाताओं को लुभाने के लिए भी हो रहे हैं। फरवरी 2019 में पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रभारी के तौर पर प्रदेश कांग्रेस की बागडोर थामी और उसके बाद फिर नए प्रयोगों का सिलसिला चला। पार्टी के विधान मंडल दल नेता अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसी के साथ संगठन सृजन का दौर शुरू हुआ और प्रदेश से लेकर गांव और बूथ स्तर तक सांगठनिक ढांचा खड़ा करने की कवायद अंजाम दी गई। और अब राजनीति को जाति-धर्म की बेडिय़ों से मुक्ति दिलाने के लिए इस बार चुनावी संग्राम में ‘लडक़ी हूं लड़ सकती हूं’ का युद्धघोष किया गया। भारतीय राजनीति के इतिहास में अभिनव प्रयोग करते हुए कांग्रेस ने अठारहवीं विधान सभा चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने की घोषणा की और 125 प्रत्याशियों की पहली सूची में अपने वादे को निभाया भी। इससे भी आगे जाकर महिलाओं के लिए ‘शक्ति विधान’ नामक अलग घोषणा पत्र जारी किया। युवा महिलाओं में पैठ बनाने के लिए मेरठ, झांसी, लखनऊ, बरेली और मुरादाबाद में ‘लडक़ी हूं लड़ सकती हूं’ मैराथन आयोजित की। प्रदेश की आधी आबादी से रूबरू होने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने महिलाओं से संवाद किया। महिलाओं के साथ युवाओं और किसानों से की गईं अपनी प्रतिज्ञाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए प्रतिज्ञा यात्राएं निकालीं। हालांकि अभी यह देखना बाकी है कि चुनावी नुस्खों की यह आजमाइश सियासत के लिए सूबे में शुरू हुई मैराथन में कांग्रेस को तमगा दिलाती है या नहीं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि लोकतंत्र की गरिमा के अनुकूल आचरण कर आगे बढऩे की कोशिश कर रही कांग्रेस ने एक बाजी तो जीत ही ली है. प्रियंका का प्रयोग कामयाब हो चूका है लोकतंत्र के धरातल पर. चुनावी धरातल पर उसकी परीक्षा होनी बाकी है. वैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट का दावा है कि चुनाव के मैदान में भी पार्टी को यह सफलता मिलेगी और नतीजे चौंकाने वाले आएँगे।