यूपी विधानसभा में लोकायुक्त संशोधन विधेयक पास

vidhansabha
विशेष संवाददाता
लखनऊ। लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर आज विधानसभा मे भी सरकार और विपक्ष में टकराव साफ दिखा। सरकार ने इस मुद्दे पर लोकायुक्त संशोधन विधेयक को प्रवर समिति सुपुर्द किए जाने की मांग को खारिज करते हुए सर्वसम्मति से इसे पास कर लिया। इसके विरोध में जहां बसपा ने वॉकआउट किया वहीं सर्वसम्मति से पारित होने के बाद भी संसदीय कार्यमंत्री मो. आजम खां ने यह भी आशंका व्यक्त इस विधेयक को राजभवन में बाकी विधेयकों की तरह रोक दिया जाएगा। लोकायुक्त संशोधन विधेयक के मुद्दे पर एक बार फिर संसदीय कार्यमंत्री मो. आजम खां ने राजभवन पर हमला बोला कहा कि राजभवन की सीमाएं तय होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राजभवन को 1947 से पहले के राजभवन की तरह काम नहीं करना चाहिए। राज्यपाल को इतनी नसीहते देने के बाद मो.आजम खां ने राजभवन से पहले से लंबित विधेयको को पारित न किए पर भी उनकी कार्यशैली की आलोचना की। इससे पूर्व पेश किए गए लोकायुक्त संशोधन विधेयक में यह व्यवस्था की गई कि समिति में, अध्यक्ष, नेता सदन और नेता विपक्ष की संस्तुति पर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायमूर्ति का चयन करेंगे। इसके बाद यह समिति लोकायुक्त के नाम का चयन करेंगे। संशोधन विधेयक का विरोध करते हुए नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि इस संशोधन विेधेयक में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में बनने वाली चयन समिति में विधानसभा अध्यक्ष का सदस्य के रूप में रहना अपमानजनक है। यह विधायिका का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि यदि समिति अध्यक्ष की अध्यक्षता मे बनती तो वह स्वागत योग्य था किंतु इस विधेयक में विधानसभा अध्यक्ष की गरिमा गिरायी गयी है। इसलिए इसे प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिये। भाजपा नेता सुरेश खन्ना ने कहा कि सरकार ने लेाकायुक्त अधिनियम को खराब दिशा मे भेजने की कोशिश की गयी है। उन्होंने कहा कि सरकार अपने पसंद के लोकायुक्त को बनाना चाह रही है। लोकायुक्त की नियुक्ति से अनेक सवाल उठने लगे हैं। इससे सरकार की नियति ठीक नही लगती है। कांग्रेस के प्रदीप माथुर ने कहा कि सरकार लोकायुक्त को अपनी मुठ्ठी में करना चाहती है। इसलिए इसे प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिये। विपक्ष की इन आशंकाओं को निराधार बताते हुए संसदीय कार्य मंत्री मो. आजम खां ने कहा कि सरकार को यह अधिकार है कि वह जन हित में निर्णय ले। सरकार की ताकत दूसरे के हवाले नहीं किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि राजनैतिक निर्णय कमजोरी से नही लिये जा सकते। उन्होंने कहा कि अपनी ताकत और काम करने का अधिकार किसी दूसरे को नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि विधायिका और न्यायपलिका में टकराव से दोनों का नुकसान होगा। इस मुददे पर राजभवन को लेकर आक्रामक संसदीय कार्यमंत्री मो आजम खां ने याद दिलाया कि जब सरकार ने विधान परिषदों के सदस्यों के चयन के लिए नाम भेजेे गए उसे राजभवन ने रोक लिया और कुछ नामों पर ही सहमति दी। इसी तरह लोकायुक्त संशोधन विधेयक भी रोक लिया गया। आजम खां ने कहा कि न्यायपालिका के एक सदस्य ने ही अपने सहयोगी पर सवालिया निशान लगाए कि उसने नौकरी में रहते हुए सही निर्णय नहीं लिये। इसका मतलब पूरी न्यायपालिका को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति का नाम नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष ने कई बार की बैठक में तय किया उसके खिलाफ दुष्प्रचार किया गया और खिलाफ माहौल बनाया गया। संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि एक न एक दिन सरकार के फैसले पर निर्णय होकर रहेगा। उन्होंने कहा कि राजभवन सरकार के हर लोकतांत्रिक निर्णयों को रोके रखा।इस पर भाजपा नेता सुरेश खन्ना ने आरोप लगाया कि यह राजभवन पर सीधे हमला किया जा रहा है। न्यायालय पर भी आक्षेप किये जा रहे हैं यह नियमों और परंपरा के हिसाब से नहीं किया जाना चाहिये। इसके बाद भाजपा नेता और संसदीय कार्य मंत्री के खिलाफ काफी नोकझोंक हुई और भाजपा सदस्य विरोध में वाक आउट कर गए। इसके बाद बसपा और कांग्रेस सदस्य भी वॉकआउट कर गए और यह विधेयक सदन में पारित हो गया