धार्मिक पुस्तकों की क्रांति का जनक गीता प्रेस बंद

geeta press
लखनऊ। धार्मिक पुस्तकों के लिए देश ही नहीं विदेशों में पहचान बनाने वाला ऐतिहासिक गीता प्रेस आखिरकार प्रबंधन की अक्षमता के कारण बंद हो गया है। गीता प्रेस की बात करें तो इसका इतिहास काफी पुराना है और करोड़ों हिंदुओं की आस्था भी इस प्रेस में रही है। एक तरह से कहा जा सकता है कि गीता प्रेस ने अपनी कृतियों के जरिये हर घर में अपनी जगह बनायी है। रामायण हो या फिर भागवत गीता, हनुमान चालीसा के जरिये लम्बे समय से धर्म का झंडा बुलंद किया है। सबसे अहम पहलू यह है कि गीता प्रेस ने कभी सरकारी कागज की मदद नहीं ली जबकि एक समय में सरकारी कागज के लिए लोग सारे तरह के हथकंडे अपनाते थे।
मालूम हो कि गीता प्रेस ने प्रकाशन का काम 1923 में शुरू किया था और शुरू में वहां गीता छपा करती थी लेकिन बाद में रामायण, भागवत, दुर्गा सप्तशती, पुराण, उपनिषद वगैरह छपने लगे. प्रेस इनकी 37 करोड़ प्रतियां छाप चुकी है. हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी के अलावा सात अन्य भाषाओं में भी यहां प्रकाशन होता रहा है.आज भी अगर आप देश के किसी भी कोने में क्यों ना हो लेकिन जब भी किसी हिंदू धार्मिक ग्रंथ को खरीदने की जरूरत आपको महसूस होती है तो आंख बंद करके गीता प्रेस गोरखपुर की किताबें खरीद लेते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक गीता प्रेस प्रकाशन की अब तक 58.25 करोड़ पुस्तकें बिक चुकी हैं मालूम हो कि गीता प्रेस, गोविंद भवन कार्यालय की एक इकाई है, जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है। तब से आज तक गीता प्रेस 37 करोड़ गीता, रामायण, भागवत, दुर्गा सप्तशती, पुराण, उपनिषद, भक्त गाथा तथा अन्य चरित्र निर्माण संबंधित पुस्तकें संस्कृत, हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, बांग्ला, उडिय़ा, तेलुगू, कन्नड़ तथा अन्य क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में बेहद कम कीमत पर बेची जा चुकी हैं। गीता प्रेस प्रकाशन की अब तक 58.25 करोड़ पुस्तकें बिक चुकी हैं। गीता प्रेस बंद होने से निश्चित रूप से यह हिंदी साहित्य और साहित्य मार्केट का बहुत बड़ा नुकसान है।