फीचर डेस्क। सम्पूर्ण धरती पर हर कहीं शिवजी का पूजन किया जाता है। मगर कुछ शिवलिंग और कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं जहां का स्मरण मात्र ही असीम सुख और अलौकिक अनुभूति देता है। ऐसा ही एक क्षेत्र है प्राचीन अवंतिका अर्थात् मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर के श्री महाकाल वन का। यहां का क्षेत्र बहुत ही विशाल है और कहा जाता है कि धरती पर माता पार्वती के साथ निवास करने और तपस्या करने के लिए भगवान शिव ने ही इस स्थान का सृजन किया था। यह महाकाल वन अत्यंत सुंदर कहा जाता है। इसी वन के चारों कोनों में द्वारपाल स्वरूप 84 महादेव प्रतिष्ठापित हैं। जब पूरी नगरी को देखते हैं तो महाकाल वन से महाकालेश्वर का शिवलिंग केंद्र में नजर आता है। अर्थात 84 महादेव की यात्रा करने से स्वत: ही महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग की परिक्रमा भी हो जाती है। इन 84 महादेव मंदिर में सबसे पहला मंदिर अगस्तेश्वर बहुत ही जागृत शिव मंदिर है। 84 महादेव की यह अर्चना यहीं से प्रारंभ होती है। इस मंदिर को लेकर एक कथा प्रचलित है कि जब देवता और दानवों में शक्ति प्रदर्शन हुआ तो देवता हारने लगे,दानवों ने उन्हें स्वर्ग से धरती पर फैंक दिया या नीचे गिरा दिया। इसके बाद देवता पीडि़त होकर महर्षि अगस्त्य के पास पहुंचे। महर्षि का अभिवादन करने के बाद उन्होंने अपनी पीड़ा उन्हें सुनाई। महर्षि अगस्त्य को क्रोध आया और उनके क्रोध से एक ज्वाला प्रकट हुई जिसके प्रभाव से दानव जलकर नीचे गिरने लगे। ऐसे में ऋषी और दानव पाताल लोक को भागने लगे। कुछ समय बाद महर्षि अगस्त्य को अपने किए का भान हुआ। तब उन्होंने यह माना कि यह हिंसा है और हिंसा से बड़ा महापाप कोई नहीं। इसलिए उन्होंने पाप का प्रायश्चित करने का निश्चय किया और वे ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्माजी ने उन्हें महाकाल वन में उत्तर की ओर बट याक्षिणी के पास प्रतिष्ठापित शिवलिंग की आराधना और पूजन करने को कहा। जब उन्होंने यहां साधना की तो भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन पर लगा हत्या का दोष समाप्त हुआ। उन्होंने भगवान शिव से अपनी तपस्या में कोई विघ्न न आने और सदा शिव के यहां वास करने का वरदान मांगा। तब भगवान शिव ने कहा कि यह शिवलिंग अगस्तेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाएगा। साथ ही यहां आकर दर्शन करने वाले इस शिवलिंग की स्तुति करने वाले रूद्र लोक को प्राप्त करेंगे। इस शिवलिंग के पूजन करने वाले के सभी दोष और पाप समाप्त होंगे और उनकी मनोकामना पूर्ण होगी।