गणेश चर्तुथी पर विशेष: जानें कैसे हुआ गणेश का जन्म

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फीचर डेस्क। हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में पार्वती जी को श्रद्धा और शंकर जी को विश्वास का रूप माना है। दोनों ही किसी भी कार्य की सफलता के लिए परम आवश्यक हैं और यह दोनों लक्षण उनके पुत्र गणेश जी में हैं। गणेश जी की दो पत्नियां रिद्धि, सिद्वि और दो पुत्र शुभ और लाभ हैं। मुद्रल पुराण में इनके आठ अवतारों- वक्रतुण्ड, एकदंत, महोदर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज और धूम्रवर्ण का वर्णन है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का जन्म हुआ है। इनके जन्म से संबंध में कई कथाएं पुराणों में मिलती हैं। शिवमहापुराण की रुद्रसंहिता में वर्णन है कि कुमारिका खंड में माता पार्वती जी ने अपने उबटन से एक पुतला बनाया। इस पर अपना रक्त छिड़क कर उसे जीवित कर दिया। कथा में आगे बताया गया कि माता पार्वती गणेश को द्वार पर पहरा देने का आदेश देकर स्नान करने चली गईं। इसी दौरान भगवान शिव वहां आते हैं, तो गणेश उन्हें अंदर जाने से रोक देते हैं। क्रोधित शिवजी गणेश जी का सिर काट देते हैं। जब इस घटना का पता माता पार्वती को चलता है, तो वह भोलेनाथ पर क्रोधित हो उठती हैं। माता पुत्र वियोग को सह नहीं पाती हैं और शिवजी से गणेश को पुर्नजीवित करने के लिए कहती हैं। तब शिवजी अपने गणों को धरती पर भेजते हैं और कहते हैं कि जो मां अपने बच्चे से उलट मुख किए हो, उसका सिर काट लाएं। गणों को ऐसी कोई मां नहीं मिलती, जो अपने बच्चे से मुंह मोड़े हो। ऐसे में उन्हें एक हथनी मिलती है, जो बच्चे की ओर मुंह नहीं किए होती है। गण हाथी के बच्चे का शीश काटकर ले जाते हैं और इस प्रकार गणेश जी को गजानन का शीश लगाकर पुर्नजीवत किया जाता है। इसीलिए उनका नाम गजानन पड़ा। कहते हैं जो भक्त भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन करता है, उसे चोरी आदि का आरोप झेलना होता है। श्रीकृष्ण से एक बार यह गलती हो गई थी, तब उन पर स्यमंतक मणि चुराने का आरोप लगा था। अगर कोई गलती से इस दिन इस चंद्रमा के दर्शन कर लेता है तो उसका पाप स्यमंतक मणि कथा पढ़ कर समाप्त हो जाता है। पुराणों में एक और कथा का वर्णन मिलता है कि जिसके अनुसार गणेश और उनके भाई कार्तिकेय माता पार्वती और शिव के पास पहुंचे। गणेशजी बुद्धि और कार्तिकेय बल में किसी से कम नहीं थे। ऐसे में सर्वश्रेष्ठ कौन है, इसका पता करने के लिए भगवान शिव ने एक परीक्षा ली। उन्होंने कहा कि जो सात बार धरती की परिक्रमा करके लौटेगा वह सर्वश्रेष्ठ और सर्वपूज्य होगा। परीक्षा शुरू होते ही देवताओं के सेनापति व मंगल ग्रह के स्वामी कार्तिकेय अपने वाहन मोर को लेकर शीघ्रता से चले गए, लेकिन गणेश जी परेशान हो गए। उन्होंने अपने वाहन चूहा को देखा तो सोचा कि ऐसे तो मैं हार जाऊंगा। तभी उन्हें ध्यान आया कि माता धरती से बड़ी और पिता आकाश से भी ऊंचा होता है। बस तत्काल उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा शुरू कर दी। इस तरह बुद्धि के स्वामी और ज्योतिष शास्त्र के प्रणेता गणेशजी ने यह बाजी जीत ली। अगर कोई व्यक्ति सुबह बिस्तर से उठने से पहले गणेश के 12 नाम- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन आदि नाम लेकर दायां पैर धरती पर रखता है, तो उसे हर प्रकार के विघ्नों से मुक्ति मिलेगी। गजानन के इन नामों को जपने से संकट तत्काल भाग खड़ा होता है। गण का अर्थ है वर्ग, समूह और समुदाय तथा ईश का अर्थ है स्वामी। शिवगणों और गण देवों के स्वामी होने के कारण इन्हें गणेश कहा जाता है। आठ वसु, ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य ही गणदेवता कहलाते हैं।