नेताजी की डेथ मिस्ट्री: ममता आज खोलेंगी राज

netaji and mamta
कोलकाता। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर जो रहस्य बना हुआ है उससे आज पर्दा उठ सकता है। 18 सितंबर यानी आज पश्चिम बंगाल सरकार 64 फाइलें सार्वजनिक करेगी, जिससे कई रहस्यों से पर्दा उठ सकता है। इन फाइलों से यदि कांग्रेस पर किसी तरह से आक्षेप हुआ, तो निश्चित तौर पर राजनीतिक माहौल भी गर्म होगा, जैसा ब्रिटेन द्वारा सार्वजनिक की गयी फाइलों पर हुआ था। दस्तावेजों में कहा गया था कि पंडित नेहरू ने आजादी के बाद लंबे अरसे तक नेताजी और उनके परिवार की जासूसी करायी थी।
बहरहाल, देश भर के लोग और बुद्धिजीवी नेताजी से जुड़े कई रहस्यों के उजागर होने का इंतजार कर रहे हैं। कहा जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को जापान जा रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फोरमोसा (अब ताईवान) में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गयी। तोक्यो रेडियो ने 22 अगस्त, 1945 को इसकी घोषणा की। लेकिन, नेताजी के अनुयायी और आजाद हिंद फौज के जीवित सेनानियों का दावा है कि आजादी के बाद वह गुमनामी बाबा के रूप में उत्तर प्रदेश के अयोध्या और देश के अन्य भागों में रहे। किसी ने उनके पेरिस में होने की बात कही, तो किसी ने कहा कि सोवियत संघ में उन्हें श्रमिक शिविर में बंद कर दिया गया।
चूंकि, कभी उनका मृत शरीर नहीं मिला, उनकी मृत्यु इतिहास का बड़ा रहस्य बना हुआ है। क्या हैं सवाल ताईवान में हुए विमान दुर्घटना में हो गयी थी नेताजी की मौत? रेनकोजी मंदिर में रखी राख नेताजी के हैं? मुखर्जी कमीशन ने जिस आधार पर नेताजी की मौत को खारिज किया है, उसकी फिर से जांच होगी? या लोगों के हाथ लगेगी निराशा? सिर्फ 1937 से आजादी के पहले तक के दस्तावेज ही जारी होंगे? नेताजी के अनुयायियों के दावे 1946 में आजाद हिंद फौज की झांसी रेजिमेंट की अध्यक्ष लक्ष्मी सहगल ने कहा कि उन्होंने सोचा कि बोस चीन में थे। प्रेसिडेंट अगेंस्ट द राज के लेखक जयंत चौधरी ने कहा कि उन्होंने नेताजी को 1960 में उत्तरी पश्चिम बंगाल में देखा था। नेताजी के पुराने सहयोगियों द्वारा गठित संगठन सुभाषवादी जनता ने कहा कि नेताजी एक आश्रम में साधु श्रद्धानंद के रूप में रह रहे थे। गुमनामी बाबा ही थे नेताजी! जिस तरह बहुत से लोग नेताजी की मौत पर यकीन नहीं करते, उसी तरह बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो फैजाबाद के गुमनामी बाबा के नेताजी होने के दावे पर विश्वास नहीं करते।
गुमनामी बाबा की कहानी इतनी उलझी हुई है कि कोई यकीन के साथ न तो उन्हें नेताजी स्वीकार करता है, न दावे को सिरे से खारिज करता है। 18 सितंबर, 1985 को गुमनामी बाबा के निधन के बाद फैजाबाद में सरयू किनारे गुप्तार घाट में उनकी समाधि बनी। यहां उनकी जन्मतिथि 23 जनवरी, 1897 दर्ज है। यही नेताजी का भी जन्मदिन है। गुमनामी बाबा के बारे में कहा जाता है कि 1982 से फैजाबाद के राम भवन आये और यहीं रह गये। उन्हें करीब से देखनेवाले कहते हैं कि उनकी बहुत-सी बातें नेताजी से मिलती-जुलती थीं। ऊंचाई भी। धाराप्रवाह जर्मन, संस्कृत और बंगाली बोलनेवाले गुमनामी बाबा की मौत के बाद राम भवन से उनका चश्मा, कई दस्तावेज, खत भी मिले, जो उनके नेताजी होने के शक को पुख्ता करते हैं। साथ ही सवाल खड़े करता है कि अंगरेजों के सामने कभी न झुकनेवाले नेताजी अपने ही देश में गुमनामी में क्यों रहेंगे? तीन जांच आयोग भारत सरकार ने नेताजी की सच्चाई का पता लगाने के लिए तीन जांच आयोगों का गठन किया। 1956 में गठित शाह नवाज समिति और 1970 में गठित खोसला समिति की जांच में विमान दुर्घटना को सही माना गया। फिर कहा गया कि 1964 में जवाहरलाल नेहरू की अंत्येष्टि में नेताजी शामिल हुए थे। इसके बाद विवाद और गहरा गया। 1999 में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एमके मुखर्जी ने नेताजी के लापता होने की अफवाहों के संदर्भ में लंबी जांच शुरू की। छह साल बाद जस्टिस मुखर्जी आयोग के एक सदस्य साक्षी चौधरी ने दावा किया कि जांच से मिले सबूत बताते हैं कि 1945 में ताइपे में की विमान दुर्घटना में निधन की खबर आने के बाद भी नेताजी रूस, चीन, वियतनाम और अन्य देशों में सक्रिय थे।