पेटलावद हादसे से उपजे सवाल

petalwad
कृष्णमोहन झा।
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित पेटलावद कस्बे में गत सप्ताह हुए दो धमाकों के फलस्वरूप जो दर्दनाक हादसा हुआ है उसमें विकरालता को शब्दों में बयान कर पाना संभव नहीं है। 89 लोगों को काल के गाल में समा जाने एवं 100 से अधिक लोगों को जीवनभर के लिए असहनीय जख्म सहने के लिए विवश कर देने वाले इस हादसे ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इतना दुखी कर दिया है कि वे इसे अपने जीवन की सबसे दुखद घटना मान रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में इस समय जो सरकार काम कर रही है वह अलग तरह की सरकार है। हादसे का विश्लेषण व जांच होगी व अपराधी बख्शे नहीं जाएंगे। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि पेटलावद में लोगों के आक्रोश को देखते हुए उन्हें प्रशासन ने पेटलावद जाने से रोका भी था परंतु जान की परवाह किए बिना वे घटना स्थल पर गए और जमीन पर बैठकर आक्रोशित लोगों से बात की। मुख्यमंत्री ने पेटलावद को फिर से बसाने का संकल्प भी व्यक्त किया है लेकिन मुझे इस बात पर जरूर आश्चर्य हुआ कि शिवराज सिंह चौहान के लिए अगर पेटलावद का हादसा उनके जीवन की सर्वाधिक घटना है तो उन्होंने लाल परेड ग्राउंड पर चल रहे विश्व हिन्दी सम्मेलन के तीसरे दिन इस हादसे की सूचना मिलते ही तत्काल घटना स्थल के लिए रवाना होने की अपरिहार्य क्यों महसूस नहीं की। जनता की तकलीफों से द्रवित हो जाने वाले संवेदनशील हृदय ने आखिर उन्हें राजनाथ सिंह के समापन भाषण तक रुकने की अनुमति कैसे दी। विदेश मंत्रालय के अंतर्गत हो रहे विश्च हिन्दी सम्मेलन में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज जब अपनी अस्वस्थ बेटी को देखने के लिए सम्मेलन के बीच से ही भोपाल प्रवास का कार्यक्रम रद्द कर सकती हैं तो मुख्यमंत्री चौहान के लिए क्या यह उचित नहीं था कि वे किसी वरिष्ठ मंत्री को सम्म्ेलन में अपनी जिम्मेदारी सौंप कर पेटलावद रवाना हो जाते। और अगर सम्मेलन में उन्हें अपनी मौजूदगी इतनी ही जरूरी लगी तो पेटलावद में उनके विलंब से पहुंचने स्थानीय नगारिकों का आक्रोश से भर उठना तो स्वाभाविक ही था।
मध्यप्रदेश के संवदेनशील और सहृदय मुख्यमंत्री की सदाशयता पर संदेह व्यक्त करना तो उचित नहीं होगा परंतु इतना मैं अवश्य कहना चाहूंगा कि मुख्यमंत्री अगर इस हादसे को अपने जीवन की सबसे दुखद घटना मानते हैं तो उन्हें ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए आवश्यक सख्त कदम उठाने की इच्छाशक्ति भी प्रदर्शित करनी चाहिए। इस दर्दनाक हादसे के सारे आरोपियों को कानून के शिकंजे में कसकर उन्हें अदालत से कठोरतम सजा दिलाने की हर संभव कोशिश शिवराज सरकार को करनी होगी ताकि जनता में यह संदेश जा सके कि शिवराज सरकार हादसों से सबक न लेने की मानसिकता की पोषक नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से यह अपेक्षा भी गलत नहीं होगी कि पेटलावद में सैकड़ों लोगों को हताहत करने वाले व्यवसायिक प्रतिष्ठान की अवैध गतिविधियों को नजरअंदाज करने वाले उन सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के विरूद्ध भी ऐसी सख्त कार्यवाही की जाए जो अपनी विभागीय जिम्मेदारियों से मुंह मोडकऱ अपने कर्तव्यपालन में अक्षम्य लापरवाही बरती। यह भी बताया जाता है कि विस्फोटक विशेषज्ञ शरद सरवटे ने तीन माह पहले ही मध्यप्रदेश में विस्फोटकों के रखरखाव और इसकी पर्याप्त निगरानी की कमियों के बारे में मुख्य सचिव को आगाह किया था। मुख्य सचिव को यह जानकारी भी दे दी गई थी कि प्रदेश में अवैध खदानों तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में विस्फोट के लिए डेटोनेटर का अवैध तरीके से उपयोग हो रहा है। वैसे यह कोई नई बात नहीं है और राज्य सरकार को इसके लिए जब तब आलोचना का शिकार बनना पड़ा है कि प्रदेश में अवैध खनन उद्योग तेजी से फल फूल रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि पेटलावद वर्षों से बारूद के ढेर पर बैठा रहा और किसी प्रशासनिक अधिकारी को इसकी भनक तक नहीं लगी। पेटलावद हादसे ने जब लगभग 100 निरपराध लोगों की बलि ले ली और एक सैकड़ा से अधिक निर्दोष लोगों को जीवन भर के लिए असहनीय तकलीफ देने वाले घाव दे दिए तब जाकर प्रशासन को सारी खामियों का पता चला। आनन फानन में पेटलावद के एसडीओपी और एसडीएम को हटाने के निर्देश दे दिए गए। थाने का पूरा स्टाफ बदलने की बात भी जोर शोर से सुनने को मिली परंतु यह सब तब हुआ जब बहुत देर हो चुकी थी। पेटलावद हादसे के बाद राज्य सरकार जिस तरह हरकत में आ गई है उसका तो निश्चित रूप से स्वागत किया जाना चाहिए परंतु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राज्य की जनता को यह भरोसा भी दिलाना होगा कि सरकार की यह चुस्ती फूर्ती और सजगता अब एक सतत प्रक्रिया का रूप लेगी इसमें कभी ढील नहीं आने दी जाएगी यदि मुख्यमंत्री ऐसी सख्ती दिखाने में सफल हुए तभी यह माना जा सकेगा कि उनकी सरकार एक अलग सरकार है।
एक बात और जब मुख्यमंत्री यह कहते है कि इस तरह के हादसों के लिए जो भी दोषी पाया जाएगा उसके विरूद्ध सख्त कार्रवाई होगी तो उसका अर्थ यही निकाला जा सकता है कि अपने कत्र्तव्यपालन में लापरवाही बरतने के दोषी सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को सरकार दंडित करेगी परंतु अगर अतीत में हुए हादसों की जांच के नतीजों पर नजर डाले तो यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सारी कार्रवाई केवल कागजों तक ही सीमित होकर रह गई। पेटलावद हादसे के बाद भी एसआईटी का गठन कर दिया है, न्यायिक जांच की घोषणा में कोई देरी नहीं की गई। और प्रदेश भर में विस्फोटकों का अवैध कारोबार करने वालों पर अंकुश लगाने के लिए छापों की कार्रवाई भी शुरू हो चुकी है परंतु सवाल यह उठता है कि क्या पेटलावद हादसे की न्यायिक जांच के बाद क्या दोषियों को सचमुच ऐसा कोई दंड दिया जाएगा जिससे जनता को यह महसूस हो सके कि सरकार किसी को भी परोक्ष संरक्षण प्रदान नहीं करेगी। दतिया जिले की सीमा में स्थित रतनगढ़ मंदिर में ऐसे दो हादसे हो चुके है जिनमें भगदड़ में लगभग पौने दो सौ श्रद्धालुओं की असमय मृत्यु हो गई थी इसकी भी न्यायिक जांच कराई गई थी रिपोर्ट में कलेक्टर व एसपी को जिम्मेदार भी ठहराया गया परंतु प्रदेश की जनता को यह नहीं मालूम कि आखिर सरकार ने उनके विरूद्ध कौन सी कार्रवाई की। पेटलावद हादसे के बाद राज्य के मुख्य सचिव ने घोषणा कर दी है कि पेटलावद जैसी घटना की पुनरावृत्ति भविष्य में होने पर सीधे तौर पर कलेक्टर और एसपी जिम्मेदार होंगे। राज्य सरकार ने पेटलावद में फिलहाल एसडीओपी और एसडीएम को ही जिम्मेदार मानकर उन पर तत्काल कार्रवाई की है और कलेक्टर, एसपी को न्यायीक जांच की रिपोर्ट आने तक राहत की सांस लेने का अवसर प्रदान कर दिया है। देखना यह है कि भविष्य में सरकार क्या अपनी घोषणा पर सचमुच अमल कर पाएगी।
पेटलावद में घटित दर्दनाक हादसे के कारणों की प्रारंभिक जांच से यह हकीकत उभरकर सामने आई है कि यह हादसा महज एक दुर्घटना नहीं वरण प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर विगत कई वर्षों से बरती जा रही अक्षम्य लापरवाही का नतीजा थी। और निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि अगर राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारियों के प्रति समय रहते सजगता दिखाई होती तो लगभग एक सैकड़ा निर्दोष लोगों को इस हादसे में अपनी जानें नहीं गवानी पड़ती और न ही बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों को ऐसे गंभीर जख्मों का शिकार होना पड़ता जो जिंदगी भर नहीं भर सकते। परंतु यही कि प्रशासनिक अधिकारी तो शायद यह सोचकर निश्चिंत बैठे थे कि जब प्रदेश में घटित दूसरे हादसों के लिए जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को बड़ी आसानी से येनकेन प्रकारेण क्षमादान का पात्र मान लेने से सरकार ने कोई परहेज नहीं तो पेटलावद में भी कोई हादसा घटित होने पर उन पर कोई आंच नहीं आएगी। पेटलावद के हादसे ने प्रशासन के प्रति स्थानीय नागरिकों को इतना अधिक आक्रोशित कर दिया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद ही घटना स्थल पर दो-दो बार जाकर पीडि़तों को यह सांत्वना देना पड़ी कि दोषियों को किसी भी हालत में नहीं बख्शा जाएगा। मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा की राशि दो से बढ़ाकर पांच लाख रुपए करने की घोषणा की और घायलों के इलाज का सारा खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन किए जाने का भरोसा दिया।
ऐसे संस्थानों की निगरानी के लिए जिम्मेदार विभागों के संबंधित सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को लापरवाही या हादसे के कथित दोषियों को परोक्ष संरक्षण की जितनी भत्र्सना की जाए वह कम है। परंतु संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उन सहयोगी मंत्रियों के बारे में आप क्या कहेंगे जिनके लिए पेटलावद का हादसा इतना भयावह नहीं था कि उस पर सरकार को तत्काल हरकत में आने की जरूरत महसूस हो। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित तीन दिवसीय विश्व हिन्दी सम्मेलन के आखिरी दिन मुख्यमंत्री को जब कार्यक्रम स्थल पर ही पेटलावद के हादसे की सूचना मिली तो उन्होंने अपने एक मंत्री अंतर सिंह आर्य को तत्काल घटनास्थल पर पहुंकर राहत कार्यों की निगरानी का निर्देश दिया परंतु मंत्री जी इसलिए पांच घंटें के विलंब से पहुंचे क्योंकि उन्हें हेलीकॉपटर से यात्रा करना थी। राज्य के गृहमंत्री बाबूलाल गौर तो इस हृदय विदारक हादसे में भी पीडि़तों को मुस्कराने की नसीहत देते रहे। अपने बेतुके बयानों के जरिए अपनी एक अलग पहिचान बना चुके गृहमंत्री गौर की संवदेन शून्यता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि उनको हादसों पर इसलिए दुख मनाने की जरूरत महसूस नहीं होती क्योंकि हादसों से ही खामियों का पता चलता है। विशेषकर गौर करने लायक बात यह है कि राज्य सरकार में सबसे वयोवृद्ध और अनुभवी मंत्री होने के बावजूद बाबूलाल गौर का यह पहला विवादास्पद बयान नहीं था परंतु मुख्यमंत्री चौहान ने जाने किस संकोच में अभी तक उनके ऐसे बयानों पर मौन साध रखा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंत्रिपद के लिए 75 वर्ष की जो अधिकतम आयु सीमा निर्धारित कर रखी है उस सीमा को गौर काफी पहले ही पार कर चुके है। पिछले काफी दिनों से यह चर्चाएं जोरों पर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने का मन बना चुके हैं। यह विस्तार कब होगा इसके बारे में तो कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता परंतु जब भी वे अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करें तो उनसे यह अपेक्षा अवश्य रहेगी कि अपने पुनर्गठित मंत्रिमंडल के सदस्यों को वे यह परामर्श देंगे कि प्रदेश की जनता की तकलीफों के प्रति संवेदनशीलता को वे हमेशा सर्वोपरि मानेंगे। यही परामर्श सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों को दिया जाना चाहिए।
जैसा कि भारतीय राजनीति का यह चरित्र रहा है कि हमारे देश में दर्दनाक हादसों पर भी तत्काल राजनीति शुरू हो जाती है, पेटलावद के भयावह हादसे के बाद भी यही हुआ। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच पेटलावद हादसे के मुख्य आरोपी राजेन्द्र कांसवा की राजनीतिक निष्ठा को लेकर जुबानी जंग छिड़ी हुई है। प्रदेश में अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही विपक्षी कांग्रेस पार्टी को केवल इस बात की चिंता है कि किसी भी तरह राजेन्द्र कांसवा को आरएसएस का स्वयं सेवक सिद्ध कर दिया जाए। जाहिर सी बात है कि आरएसएस ने इस निराधार आरोप को लेकर अपना तीखा विरोध दर्ज कराया है। आरएसएस इस संबंध में जो स्पष्टीकरण जारी किया है उस पर संदेह व्यक्त करने का मुझे तो काई कारण नजर नहीं आता। कांग्रेस से क्या यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि दुख की इस घड़ी में वह आरएसएस एवं भाजपा पर आरोप लगाने में अपनी शक्ति जाया करने के बजाय पेटलावद में घायलों को अधिकतम मदद पहुंचाने में सरकार के साथ सहयोग करे। अगर कांग्रेस अपने राजनीतिक हित साधने के लिए यह सब कर रही है तो उसे राज्य विधानसभा के शीत सत्र की प्रतीक्षा करनी चाहिए। मेरे विचार से सरकार को घेरने के लिए विधानसभा से बेहतर कोई मंच नहीं हो सकता। भाजपा एवं कांग्रेस के नेताओं से पेटलावद की जनता इस समय यह अपेक्षा कतई नहीं कर रही कि वे मुख्य आरोपी राजेन्द्र कांसवा की राजनीतिक निष्ठा की जांच पड़ताल में अपना पसीना बहाएं बल्कि इस समय सर्वोच्च प्राथमिकता तो इस हादसे के निर्दोष मृतकों एवं घायलों को राहत पहुंचाने के काम को दी जाना चाहिए। सवाल यह उठता है कि हादसे को राजनीतिक नफा नुकसान की दृष्टि से देखने की मानसिकता पर कभी विराम लगेगा की भी नहीं।