नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने संसद की कार्यवाही निर्बाध चलाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने संबंधी एक याचिका यह कहते हुए गुरुवार को खारिज कर दी कि ऐसा करना विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप होगा। मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू एवं न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की खंडपीठ ने फाउंडेशन फॉर रिस्टोरेशन ऑफ नेशनल वैल्यूज की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि वह संसद में सदस्यों के व्यवहार की निगरानी नहीं कर सकती।
न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि सदन में सांसदों के व्यवहार पर नजर रखना लक्ष्मण रेखा लांघने के समान होगा। अदालत विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। खंडपीठ का कहना था कि सांसदों के व्यवहार अथवा सदन को निर्बाध चलाने के लिए न्यायपालिका द्वारा दिशानिर्देश जारी करने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। जब सांसदों ने न्यायपालिका के कामकाज के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं जारी किया है तो न्यायालय को दूसरे के अधिकार क्षेत्र में कूदने का क्या हक है? याचिकाकर्ता की दलील थी कि विभिन्न दलों के सदस्य संसद का कामकाज ठप कराते रहते हैं और इस पर रोक का कोई सशक्त उपाय भी नहीं किया गया है। संसद की कार्यवाही बाधित करके सदस्य करदाताओं से इक_ा राशि का दुरुपयोग करते हैं। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह इसके लिए लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति एवं उपसभापति के समक्ष जाएं, क्योंकि सदन को चलाने की जिम्मेदारी इन्हीं पर है। (वार्ता)