आजादी के बाद पहली बार मतदाता बने वनटंगी

tong tribeविशेष संवाददाता लखनऊ। पुराने बर्मा और अब म्यांमार से पिछले बीस दशक में जंगल बसाने के लिए टोंग जाति के लोगों को काफी लंबे इंतजार के बाद अब भारत में मतदान का अधिकार दे दिया गया है। भारत में ब्रिटेन के वायसराय लार्ड माउटबेटन ने पर्यावरण को बचाने की गरज से बर्मा से टोंग जाति के लोगों को भारत बुलाया था। अच्छे परिवहन और रेल लाइन बिछाने के लिए बड़ी संख्या में पेड़ो का कटान किया गया था। पर्यावरण सुरक्षित रहे इसलिए पेड़ों का लगाना अनिवार्य था। बर्मा के जंगलों में रहने वाले टोंग जाति के लोगों को यहां बुलाकर उनकों उनकी पसंद का काम पेड़ लगाना दिया गया था। उनका आवास भी घने जंगल बने। चूंकि यह जंगलों में रहते है इसलिए उन्हे यहां वनटंगिया कहा गया। जंगलों के फल पत्तियां और खाने की चीजे इनके जीविकोंपार्जन का माध्यम बने। लेकिन वन कानून में आए संशोधन से उनका यह अधिकार छीन लिया गया। देश को 1947 में आजादी मिल गई। लेकिन जंगलों में रहने वाले लगभग 50 हजार से ज्यादा वनटंगिया आजादी के बाद मिले भी अधिकार से वंचित रह गए। चूकि यह जंगलों में रहते थे इसलिए किसी राजनीतिक दल ने इनकी ओर ध्यान नहीं दिया। स्वयं सेवी संगठनों का भी इनकी ओर कोई ध्यान नहीं गया। पक्काघर, पीने का साफ पानी बिजली और शिक्षा तो इनके लिए किसी सपने जैसे थी। बीते दो दशकों में वनटंगियों के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे मनोज सिंह की माने तो आजादी के बाद से ही गोरखपुर तथा महाराजगंज के जंगलों में रहने वाले वनटंगिया की उपेक्षा हुई। अब जिला प्रशासन की पहल के बाद उनमें खासा बदलाव दिख रहा है। मतदान का अधिकार समेत अन्य मांग के लिए वनटंगियों ने गोरखपुर में जिलाधिकारी कार्यालय पर बड़ा प्रदर्शन किया था। जिला प्रशासन अब वनटंगियों के गांव को राजस्व गांव घोषित कर दिया है। जिससे धीरे-धीरे अब वह सभी सहूलियते मुहैया होने लगेगी जो आम लोगों को मिलती है। गोरखपुर तथा महाराजगंज के 22 वनगांवों को अब ग्राम पंचायत बना दिया गया है जिससे इस समुदाय के 22 हजार से ज्यादा लोगों को मतदान का अधिकार मिल गया है। अब वह होने वाले पंचायत चुनाव में पहली बार मतदान कर सकेंगे। इस समुदाय के विनय सांदा का कहना है कि मतदान का अधिकार मिल जाने से सभी लोगों में खासा उत्साह है। जिला प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि केन्द्र और राज्य सरकार की सभी विकास योजनाओं का काम भी उन गांवों में कराया जाएगा। देश में 1947 में आजादी मिल गई। लेकिन जंगलों में रहने वाले करीब 55 हजार से ज्यादा वनटंगिया आजादी के बाद मिले किसी भी अधिकार से वंचित रह गए। चूंकि यह जंगलों में रहते थे इसलिए किसी राजनीतिक दल ने भी इनकी सुधि नहीं ली। स्वयं सेवी संगठनों का भी इनकी ओर ध्यान नहीं गया। पक्का मकान,पीने का साफ पानी बिजली और शिक्षा तो इनके लिए किसी सपने की तरह था।