गरुण पुराण: मृत शरीर में भी पड़ सकती है जान

garud_puranधर्म डेस्क। देश की युवा पीढ़ी रामायण और महाभारत के बाद और भी कई पुराण हैं इसके बारे में बहुत कम जानते हैं। भारत पूरी दुनिया का आध्यात्मिक गुरू रहा है और वही परम्परा आज भी चली आ रही है। देश ही नहीं दुनिया भर के लोग इसी वजह से भारत की ओर खिंचे चले आते हैं। आज हम बता रहे हैं गरुण पुराण के बारे में। गरुण पुराण एक ऐसा पुराण है जिसमें इतनी शक्ति है कि मृत शरीर में भी प्राण का संचार कर सकती है। इसे संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता है। यह विद्या बहुत चमत्कारी होने के साथ साथ उस समय के लिए भी बहुत चमत्कारिक उपाय है जिस वक्त आदमी मर रहा हो और उसे इस विद्या के मंत्रों को पढ़कर बचाया जा सकता है।
आध्यात्मिक गुरू और ज्योतिषाचार्य पंडित संजय पांडे के अनुसार गरुण पुराण में बताया गया है कि मनुष्य को, अंतिम समय में क्या करना चाहिये? इसमें भगवान ने कहा है कि मृत्यु के समय, देह-माया से, आसक्ति कम करनी चाहिये। किसी पवित्र तीर्थ में स्नान करना चाहिये। अगर शरीर साथ दे तो किसी तीर्थ में आसन लगाकर, गायत्री मंत्र जपना चाहिये। अंतिम समय में, ओम के जाप से मोक्ष और मुक्ति मिलती है। गरुण पुराण में संजीवनी विद्या का वर्णन है। इसमें ऐसे ऐसे मंत्र बताये गये हैं, जिससे मृत व्यक्ति भी जीवित हो सकता है। अगर इस मंत्र को सिद्ध करके, मृत व्यक्ति के कान में फूंका जाये, तो वह तुरंत उठ खड़ा होगा। लेकिन मंत्र सिद्धि के बाद, दशांश हवन, और ब्राह्मण भोजन कराना जरूरी है।
संजीवनी मंत्र: यक्षि ओम उं स्वाहा
गरुण पुराण में सिर्फ श्राद्ध और तर्पण के बारे में ही नहीं लिखा है। बल्कि इसमें लक्ष्मी प्राप्ति के भी अचूक उपाय बताये गये हैं। अगर किसी के जीवन में दरिद्रा लक्ष्मी, डेरा डाले, काफी लंबे समय से बैठी हों, तो इसमें गरीबी दूर करने का अचूक मंत्र बताया गया है। दावा है कि इस मंत्र के जाप से, एक महीने में ही जन्म जन्म की गरीबी दूर हो जाती है।
कैसे करें तर्पण?
गरुण पुराण में श्राद्ध और तर्पण के भी नियम बताये गये हैं। तर्पण के लिये, जल में दूध और तिल मिलायें। फिर पितृ गायत्री मंत्र पढ़ते हुये, दक्षिण की ओर मुख कर, बांया घुटना जमीन पर लगाकर, जनेऊ,गमक्षा दांयें कंधे पर रख कर तर्पण करना चाहिये। जल के तर्पण के लिये चांदी, तांबे या फिर पीतल के बर्तन प्रयोग करें। लेकिन चांदी के बर्तन से तर्पण करने से, पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है। स्टील के बर्तन से तर्पण न करें।
कैसे पहुंचता है श्राद्ध का भोजन?

विश्वदेव ,अग्निश्रवा दोनों दिव्य पितृ हैं। यह दोनों ही नाम गोत्र के सहारे, हव्य कव्य को पितरों तक पहुंचाते हैं। पितृ, देव योनि में हों तो श्राद्ध का भोजन अमृत रूप में, मनुष्य योनि में हो तो अन्न रूप में, पशु योनि में घास के रूप में, नाग योनि में वायु रूप में, यक्ष योनि में हों तो पान रूप में मिलता है। गरुड़ पुराण में, भगवान विष्णु कहते हैं कि मृत्यु के बाद, आत्मा को तुरंत शरीर मिल जाता है। लेकिन कर्मों की गति के आधार पर, कभी कभी देर से भी शरीर मिलता है। मृत्यु के बाद, आत्मा वायु शरीर धारण करती है। उसके बाद पिंडदान से आत्मा, शरीर में बंध जाती है। इसीलिये मृत्यु के बाद, पिंडदान करने से, आत्मा को भटकन से मुक्ति मिल जाती है।