व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं

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कृष्णमोहन झा
मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार की चूलें हिला देने वाले व्यापमं घोटाले और इससे जुड़े कुछ लोगों की सिलसिलेवार मौतों की जांच सीबीआई द्वारा कराए जाने का रास्ता अब साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज इसके लिए हरी झंडी दे दी। राज्य सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि सरकार को इस पर कोई आपत्ति नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो दो दिन पूर्व ही यह घोषणा कर दी थी कि सरकार इस घोटाले और इस मामले से जुड़ी मौतों की सीबीआई जांच के लिए तैयार है। और सरकार इसके लिए हाईकोर्ट से अनुमति मांगेगी। हाईकोर्ट द्वारा सरकार की अर्जी पर सुनवाई से इंकार के बाद सुप्रीम कोर्ट में ही इस बात का फैसला होना था कि व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच होना चाहिए अथवा नहीं और अंतत: आज सुप्रीम कोर्ट ने इसके पक्ष में फैसला दे दिया। घोटाले की जांच वह अपनी निगरानी में कराए या नहीं इस बात का फैसला 24 जुलाई को सीबीआई का जवाब मिलने पर होने की उम्मीद है। अब इस बात की संभावना भी बढ़ गई है कि राज्यपाल रामनरेश यादव इस घोटाले में अपना नाम आने की वजह से जल्द ही पद छोडऩे का फैसला कर सकते हैं। उनको हटाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार, राज्यपाल और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है।
व्यापमं घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मांग पर राजी होना मुख्यमंत्री को किसी सराहना का हकदार नहीं कहा जा सकता। दरअसल मुख्यमंत्री चौहान ने व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का फैसला जिन परिस्थितियों में किया है उन परिस्थतियों में वे यह फैसला अधिक समय तक नहीं टाल सकते थे। पानी अब सरकार के गले से ऊपर पहुंचने लगा था। उन पर चौतरफा दबाव इस कदर बढ़ चुका था कि वे उनकी सरकार को कठघरे में खड़े करने वाले इस बहुचर्चित घोटाले की अगर सीबीआई जांच को अब भी गैर जरूरी बताते रहते तो प्रदेश में उनकी वह लोकप्रियता ही दांव पर लग सकती थी जिसके बल पर उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने का सौभाग्य मिला था। दरअसल मुख्यमंत्री को पिछले एक सप्ताह के दुर्भाग्यशाली घटनाक्रम ने अंदर तक इतना झकझोर कर रख दिया था कि वे इस घोटाले की सीबीआई जांच कराने की घोषणा करने के लिए विवश हो गए। उन्हें केवल विपक्षी कांग्रेस पार्टी के आक्रमण और तेज होने पर उतना डर नहीं था जितना प्रदेश की जनता का सरकार पर से भरोसा उठने का उन्हें डर सता रहा था। घोटाले की सीबीआई जांच के लिए सरकार की सहमति की घोषणा करते समय उन्होंने स्वयं ही यह स्वीकार किया कि वे जनमत के आगे शीश झुका रहे हैं। मुख्यमंत्री का यह कहना एकदम सही है कि लोकतंत्र में शासक को संदेह से परे होना चाहिए। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तो स्वयं मुख्यमंंत्री को देना होगा कि व्यापमं घोटाले में जिस तरह संदेह के बादल गहराते चले गए उसके लिए क्या उनकी सरकार और मुख्यमंत्री के रूप में उनकी खुद की भूमिका आखिर जिम्मेदारी से कैसे बच सकती है। मेरे विचार से तो मुख्यमंत्री अगर अपनी निष्कलंक छवि के प्रति जरा भी चिंतित होते तो वे इस सारे मामले में पानी गले तक पहुंचने का इंतजार ही नहीं करते और खुद ही आगे बढकऱ व्यापमं घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की पहल करते। दरअसल मुख्यमंत्री के अनिर्णय की स्थिति का शिकार होकर मध्यप्रदेश में बेजान हो चुकी विपक्षी कांग्रेस पार्टी को आक्रामक होने का अवसर प्रदान कर दिया। कांग्रेस अब यह दावा करने में तनिक भी भूल नहीं करेगी कि उसने व्यापमं घोटाले की भयावहता को उजागर करके सरकार को इसकी सीबीआई जांच के लिए मजबूर कर ही दिया। लेकिन कांग्रेस इस हकीकत से वाकिफ है कि घोटाले की सीबीआई जांच की घोषणा से मुख्यमंत्री को घेरने का एक मुद्दा उसके हाथ से छिन गया है। इसलिए अब उसका जोर इस बात पर होगा कि सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो।
इस सारे घटनाक्रम में मुख्यमंत्री को उनकी ही सरकार के मंत्रियों तथा पार्टी नेताओं ने भी मुश्किल में डालने में कही कोई कसर नहीं रख छोड़ी। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि व्यापमं घोटाले और उससे जुड़ी मौतों के मामाले में सरकार का बचाव करने वाले ये मंत्री और पार्टी के रसूखदार नेता मानों अपने बयानों से मुख्यमंत्री की मुश्किलें बढ़ाने में अधिक रूचि ले रहे थे। इन मंत्रियों के संवेदनहीन बयानों ने तो सरकार को इतनी रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया कि उसे अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए सीबीआई जांच की मांग माननी ही पड़ी। व्यापमं घोटाले के सारे देश में चर्चित होने का प्रमुख कारण ही यह रहा कि इससे जुड़े 44 लोगों की संदेहास्पद स्थितियों में मौत हो गई। सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इन मौतों पर होने वाली बयानबाजी से जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा उसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। सरकार के कतिपय वरिष्ठ मंत्रियों के ये बयान मीडिया में तो सुर्खियों का विषय बनना ही थे लेकिन उन बयानों को भाजपा हाईकमान ने भी गंभीरता से लिया और व्यापमं घोटाले में सिलसिलेवार मौतें घोटाले की सीबीआई जांच का फैसला लेने की मुख्य वजह बन गई। मोदी सरकार के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जब स्वयं यह कहा था कि सरकार को सीबीआई जांच पर आपत्ति नहीं है तभी यह संकेत मिल गए थे कि सरकार के पास कोई विकल्प नहीं बचा है।
सवाल यह भी उठता है कि गृहमंत्री बाबूूलाल गौर और स्वायत्त शासन मंत्री व नवनियुक्त मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के आपत्तिजनक बयानों का मुख्यमंत्री ने स्वत: संज्ञान क्यों नहीं लिया। वे सारी स्थिति को मूकदर्शक बन कर क्यों सहन करते रहे। मुख्यमंत्री तो दरअसल शायद स्वयं भी ऐसे पशोपेश का शिकार हो चुके थे जिससे बाहर निकलने का कोई रास्ता उन्हें नहीं सूझ रहा था। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में उनकी सरकार यह साबित करने में नाकाम रही कि सारी मौतों को व्यापमं घोटाले से जोडकऱ देखना गलत होगा। सरकार ने सारी मौतों पर ऐसा बयान जारी तो किया परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी और उस समय तक यह आम धारणा भी बन चुकी थी कि इन मौतों और व्यापमं घोटाले में कही कोई संबंध जरूर है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच के लिए हरी झंडी दे दिए जाने के बाद निश्चित रूप से शिवराज सरकार को यह राहत महसूस हो रही है कि आगामी विधानसभा सत्र में सरकार पर आक्रमण का एक बड़ा मुद्दा विपक्षी कांग्रेस पार्टी के हाथ से छिन चुका है। लोकसभा के मानसून सत्र में भी यह मुद्दा जोरशोर से उठाने के लिए विपक्ष कमर चुका था। विपक्षी कांग्रेस पार्टी यह मान सकती है कि उसने व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच के लिए सरकार को विवश कर दिया। अब उसका पूरा जोर इस मांग पर होगा कि सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो सरकार को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि देश भर में चर्चित हो चुके जिस घोटाले ने पिछले कई माहों से उसका सुख चैन छिन रखा है उसकी सीबीआई जांच में किसी स्तर पर शिथिलता न आए। आखिर इस घोटाले के कारण न केवल सरकार कि प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकि है बल्कि लाखों होनहार युवक और प्रतिभाशाली छात्र यह सोचकर मजबू हो गए है कि क्या उनकी योग्यता और मेहनत का सही मूल्यांकन राज्य में होगा अब संभव नहीं है। निश्चित रूप से सरकार की विश्वसीनयता पर ही इस महाघोटाले ने प्रश्र चिन्ह लगा दिया है। ऐसे में सरकार से यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वह घोटाले की निष्पक्ष और त्वरित जांच को परिणिति के बिंदु तक ले जाने के लिए पूरा सहयोग करे ताकि कोई भी आरोपी चाह वह कितना ही रसूखदार क्यों न हो, कानून के शिकंजे में आने से न बच सके।