धारी देवी मंदिर: जब चलकर सुरक्षित स्थान पर पहुंच गयी मूर्ति

MaDhariDeviफीचर डेस्क। उत्तराखंड के श्रीनगर में प्र्राचीन एवं ऐतिहासिक धारी माता मंदिर स्थापित किए जाने के बाद से कहा जा रहा है कि मंदिर से जैसे ही धारी माता की मूर्ति हटाई गई थी, उसके तुरंत बाद ही इस पर्वतीय राज्य में प्र्रलय आ गया था। हालांकि विज्ञान के इस युग में इस तर्क से सहमत नहीं हुआ जा सकता फिर भी स्थानीय लोगों का मानना है कि धारी माता मंदिर विस्थापन की वजह से ही यह तबाही आई। परंपरागत रूप से माना जाता है कि धारी माता, चारों धाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं और उत्तराखंड की जनता की रक्षक माता हैं। नवरात्रि के दिनों में यहां अच्छी खासी रौनक रहती है और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मन्नत मांगने आते हैं। श्रीमद् भागवत गीता में बताया गया है कि 108 शक्ति पीठों में से एक मां धारी देवी का पवित्र मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे श्रीनगर-बद्रीनाथ राजमार्ग पर स्थित है। कहा जाता है कि मां धारी देवी की इस मूर्ति का रूप समय के साथ बदलता रहता है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक एक बार मंदिर में बाढ़ आ गई तो मूर्ति चल कर एक चट्टान पर आ गई और रोने लगी, जब ग्रामीणों ने मूर्ति का रोना सुना तो वे वहां पहुंचे तब दिव्य शक्ति ने उनसे उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने के लिए कहा। तभी से वह मूर्ति वहां स्थापित थी जिसे हाल ही में विस्थापित किया गया। हालांकि धारी देवी की मूर्ति हटाने का भारी विरोध हुआ लेकिन कथित रूप से बिजली संयंत्र माफिया के दबाव के आगे प्र्रशासन झुक गया जो मंदिर की जगह एक बड़ा ऊर्जा संयंत्र स्थापित करना चाहता था।
धारी देवी इस क्षेत्र की कुलदेवी भी हैं जिन्हें गांव के लोग सदियों से पूजते आए हैं। पौराणिक मान्यता है कि पिछले 800 सालों से धारी देवी अलकनंदा नदी के बीच बैठकर नदी की धारा को काबू में रखती थीं। 16 जून 2013 को स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद धारी देवी का मंदिर नदी के बीच से हटाकर ऊपर सुरक्षित जगह पर लाया गया और उसी शाम केदारनाथ में बादल फटा। कुछ संतों का भी कहना है कि धारी देवी की मूर्ति को हटाया गया था और इसी कारण जलप्र्रलय हुआ जो निश्चित रूप से धारी देवी का ही प्रकोप है। उनका यह भी कहना है कि धारी देवी के गुस्से से ही केदारनाथ और उत्तराखंड के अन्य इलाकों में तबाही मची। धारी देवी देश के नास्तिक लोगों को समझाना चाहती थीं कि हिमालय और यहां की नदियों को ना छुआ जाए। धारी देवी मंदिर को हटाने का विरोध इस तर्क के साथ भी हो रहा था कि मंदिर में मूर्ति की प्र्राण प्र्रतिष्ठा होती है, हिंदू धर्म में माना जाता है कि मूर्ति में प्र्राण है, ऐसे में शक्तिपीठों में शामिल मां धारी देवी मंदिर को हटाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है। साथ ही यह भी तर्क दिया जा रहा था कि यदि बांध बनेगा तो गंगा कहां बचेगी। गंगा की अविरलता से ही जीवन बचेगा। मां काली का रूप मानी जाने वालीं धारी देवी के इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि 1880 में भी धारी देवी को हटाने का प्र्रयास हुआ था, तब भी केदारनाथ में भयंकर बाढ़ आ गई थी। उसके पश्चात धारी देवी को फिर किसी ने हटाने का प्र्रयास नहीं किया। मान्यताओं के मुताबिक धारी देवी और केदारनाथ दोनों की स्थापना तंत्र-शास्त्र पर की गई है, जो पहाड़ों और नदियों की बाढ़ से इस क्षेत्र की रक्षा करती हैं।
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