दुनिया भी जाने बलूचिस्तान का सच

Baluchistanपुष्परंजन। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) पर 9 अप्रैल 2006 को प्रतिबंध लगाया गया था। तभी से इसके नेता हिर्बयार मर्री लंदन में रह रहे हैं। स्वतंत्र बलूचिस्तान के लिए लड़ाई लडऩे वाले नवाबजादा हिर्बयार मर्री ने पांच दिन पहले बीबीसी को दिये एक साक्षात्कार में कहा कि भारत से न कभी मदद ली थी, न लेंगे। नवाबजादा हिर्बयार मर्री के ऐसा बयान देने की वजह नई दिल्ली में 4 अक्तूबर को हुआ प्रदर्शन था, जिसका आयोजन बीएलए की राजनीतिक शाखा बलूचिस्तान लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (बीएलओ) के प्रतिनिधि बलाच पारदिली ने किया था। उस प्रदर्शन में बलाच पारदिली ने कहा था कि नवाबजादा हिर्बयार मर्री दिल्ली आएंगे, जिसका इंतजाम हम करेंगे। संयुक्त राष्ट्र के दिल्ली स्थित कार्यालय के समक्ष इस प्रदर्शन का समर्थन भाजपा नेता आर.एस.एन. सिंह और भगत सिंह क्रांति सेना के नेता तेजेन्दर सिंह कर रहे थे। इस प्रदर्शन में ही इस पर फोकस किया गया कि बलूचिस्तान तीन देशों के बीच विभाजित है। ये तीन देश हैं, पाकिस्तान, बलूचिस्तान और ईरान। 2004 से इसे अलग देश बनाये जाने के लिए आंदोलन चल रहा है, जिसमें करीब 19 हजार लोग मारे गये हैं। पाकिस्तान, बलूचिस्तान इलाके में लगातार मानवाधिकार हनन कर रहा है, इसलिए भारत को चाहिए कि वह इसे उतना ही खुलकर समर्थन दे, जितना कि इस्लामाबाद जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को देता रहा है। पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम इलाके में स्थापित बलूचिस्तान, उसके चार प्रदेशों में से एक है। बलूचिस्तान में गैस इतनी है कि पूरे पाकिस्तान को बाहर से गैस मंगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। खनिज संपदा और पेट्रोलियम से भरपूर बलूचिस्तान की भू-सामरिक स्थिति इतनी महत्वपूर्ण है कि चीन ग्वादर बंदरगाह के बज़रिये मध्य एशिया से व्यापार कर रहा है।
चीन ने पाकिस्तान के ऊर्जा, अधोसंरचना, रोड, रेलवे, फाइबर ऑप्टिक वगैरह के क्षेत्र में 46 अरब डॉलर के निवेश की जो घोषणा की है, उसमें उसका बहुउद्देशीय स्वार्थ छिपा हुआ है। उसे पश्चिम एशिया और यूरोप के बाजार के लिए मलक्का जलडमरूमध्य को पार करना बहुत महंगा पड़ रहा है, उसका वैकल्पिक मार्ग चीन ने बलूचिस्तान प्रांत के ग्वादर बंदरगाह से ढूंढ़ निकाला। ताजि़किस्तान, किर्गिस्तान के मुहाने पर स्थित काशगर चीन का सीमाई शहर है, जो दो हजार साल पहले सिल्क रोड का हिस्सा हुआ करता था। काशगर को स्थानीय चीनी काशी भी बोलते हैं। काशगर से बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह, एक ऐसा छोटा रास्ता है, जिसके पूरी तरह से चालू होते ही चीन का व्यापार और तेज़ी से बढ़ेगा। जुलाई 2013 में चीन ने 45 अरब डॉलर की लागत से 3500 किलोमीटर काशगर-ग्वादर गलियारे की घोषणा में खास दिलचस्पी दिखाई थी।
इससे पहले मई 2008 में चीन ने पाक कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) में नीलम-झेलम 959 मेगावाट जल विद्युत परियोजना लगाने की घोषणा कर दी थी। पांच साल बाद, 2013 में चीनी प्रधानमंत्री ली खछियांग नई दिल्ली आये तो भारत ने अपनी चिंता से अवगत करा दिया था। यह विरोध नहीं, चिंता प्रकट करने की औपचारिकता थी। परिणामस्वरूप, नीलम-झेलम परियोजना पर काम रुका नहीं। 2016 में यह परियोजना पूरी हो जाएगी। 2010 में पीओके के कोहाला हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए 1.10 अरब डॉलर की राशि चीन ने मंजूर की थी। उस समय के चीनी प्रधानमंत्री वेन चियापाओ को यह बताया जा चुका था कि भारत इसे स्वीकार नहीं करता, लेकिन कोहाला हाइड्रो प्रोजेक्ट पर काम चलता रहा। बल्कि चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर में सात सौ किलोमीटर सड़कें बनानी शुरू कर दीं। यानी, भारत चिंता प्रकट करता रहे, चीन का काम पाकिस्तान में चलता रहेगा। संयुक्त राष्ट्र में इसके विरुद्ध जाने का मतलब है, ख़ुद-ब-ख़ुद पाकिस्तान के बिछाये जाल में फंसना।
पीओके में अभी पाकिस्तान और चीन, भारत को उकसाने वाली ऐसी कई परियोजनाओं को लेकर आएंगे। इसका इलाज बलूचिस्तान है, जिसके लिए भारत को ईरान को भरोसे में लेना होगा। कश्मीर जैसी स्थिति ईरान-बलूचिस्तान सीमा पर भी है। ईरानी सीमा पर जिस तरह की खुराफात आईएसआई कराती रही है, उससे तेहरान चिढ़ा रहता है। पाकिस्तान दरअसल, कश्मीर और बलूचिस्तान के मोर्चे पर एक ऐसे दोस्त की मदद चाहता है, जिस पर वह भरोसा कर सके। पाकिस्तानी संसद को संबोधित करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी कबीलाई क्षेत्र फाटा (फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया) में विकास कार्य का संकल्प ले चुके हैं। इसे सुनकर यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि चीन फाटा और बलूचिस्तान में आतंकवाद के विरुद्ध कोई मोर्चा खोलने जा रहा है। शिनचियांग में उईगुर अतिवादियों और तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी से परेशान चीन, तालिबान अतिवादियों से किस प्रकार तालमेल बैठाने लगा, इसे लेकर जर्मन खुफिया बीएनडी और नाटो के कमांडर तक हैरत में थे।
इस समय पाकिस्तान की विभिन्न परियोजनाओं में 8112 चीनी वर्कर काम कर रहे हैं। उनकी हिफाजत के लिए पहले से ही पाकिस्तान अपने सुरक्षा बल और सैन्य टुकडिय़ों को लगा रखा है। लेकिन पहली बार पाकिस्तान को चीनियों की सुरक्षा के लिए विशेष सैन्य बल की घोषणा करनी पड़ रही है। यह ऐतिहासिक है। इसे पाक सेना पर चीनी असर की दृष्टि से भी देख सकते हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि हमारे देश में घुसकर जो हरकतें पाकिस्तानी डिप्लोमेट कर रहे हैं, उसे लेकर हम कब तक रक्षात्मक बने रहेंगे? यदि पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित को हुर्रियत नेताओं से संवाद में शर्म नहीं है तो हमारे कूटनीतिक बलूच नेता जमील अकबर बुगती को समर्थन देने में किस वास्ते लिहाज कर रहे हैं? इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायुक्त को चाहिए कि बलूचिस्तान में आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं से खुलकर बातचीत करें।
पाकिस्तान बराबर आरोप लगाता रहा है कि भारत, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) को गुपचुप मदद करता रहा है। लेकिन अब तक पाकिस्तान इस बारे में सुबूत पेश नहीं कर सका है। अफगानिस्तान-पाकिस्तान में अमेरिकी दूत रहे रिचर्ड होलब्रुक ने 2011 में बयान दिया कि वाशिंगटन में लगातार पाकिस्तान इसकी शिकायत करता रहा कि भारत बीएलए को पैसे देता है, लेकिन पाक अधिकारी कोई प्रमाण नहीं पेश कर सके। सितंबर 2014 में बलूच रिपब्लिकन पार्टी के नेता डॉ. बशीर अजीम ने सवाल किया कि जब स्कॉटलैंड में जनमत संग्रह हो सकता है, तो बलूचिस्तान में क्यों नहीं? ग़ौर से देखिए कि पाकिस्तान जब कश्मीर में जनमत संग्रह की बात करता है, तो हम चुप हो जाते हैं। अब समय आ गया है कि भारत, बलूचिस्तान में जनमत संग्रह कराये जाने की आवाज दुनिया भर में उठाये। आजकल ट्विटर पर यह लोकप्रिय हो रहा है, ऐसी वाणी बोलिये, जमकर झगड़ा होय, उससे फिर ना बोलिये, जो आपसे तगड़ा होय! कुछ इसी भाषा में इस्लामाबाद को जवाब देना जरूरी है।