जीवन व्यस्त हो, अस्तव्यस्त नहीं

  ललित गर्ग। असन्तुलन एवं अस्तव्यस्तता ने जीवन को जटिल बना दिया है। बढ़ती प्रतियोगिता, आगे बढऩे की होड़ और अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा ने इंसान के जीवन से सुख, चैन व शांति को दूर कर दिया है। सब कुछ पा लेने की इस दौड़ में इंसान सबसे ज्यादा अनदेखा खुद को कर रहा है। बेहतर कल के सपनों को पूरा करने के चक्कर में अपने आज को नजरअंदाज कर रहा है। वह भूल रहा है कि बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता, इसलिए कुछ समय अपने…

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भाजपा को नया संकल्प-नया धरातल चाहिए

ललित गर्ग। नरेन्द्र मोदी चुनाव मैदान में पूरी तरह सक्रिय हो गये हैं। वर्ष 2019 के आम चुनाव में अद्भुत, आश्चर्यकारी जीत के लिये उनके पास सशक्त स्क्रिप्ट है तो उनकी साफ-सुथरी छवि का जादू भी सिर चढक़र बोल रहा है। चारों ओर से स्वर तो यही सुनाई दे रहा है कि यह चुनाव न तो मोदी बनाम राहुल है, और न ही मोदी बनाम मायावती, अखिलेश या ममता है। बल्कि यह चुनाव मोदी बनाम मोदी ही है। इसलिये भाजपा सरकार एवं मोदीजी के लिये यही वह समय है जिसका…

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आज शुरू हो रहा है क्रिकेट का महाकुंभ

खेल डेस्क। वनडे क्रिकेट का महाकुंभ आईसीसी वल्र्ड कप आज से शुरू हो रहा है। इस बार भारत और मेजबान इंग्लैंड को खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। भारत तीसरी बार और इंग्लैंड पहली बार यह प्रतिष्ठित खिताब हासिल करने की कोशिश करेगा। इंग्लैंड और वेल्स की संयुक्त मेजबानी में यह टूर्नमेंट 30 मई से 14 जुलाई तक होगा। इस प्रतिष्ठित टूर्नमेंट में मौजूदा चैंपियन ऑस्ट्रेलिया (1987, 1999, 2003, 2007 और 2015 का विजेता), भारत (1983 और 2011 का विजेता), वेस्ट इंडीज (1975 व 1979 का विजेता), पाकिस्तान…

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मातृ दिवस विशेष

माँ तू ही यशोदा ,कौशल्या भी मेरी, तुझ से मिलती है, सूरत भी मेरी। तुमसे ही तो मैं हूँ रची, बगिया में तेरे सुमन सी सजी। धूप में भी तुम छाया जैसी, शीत में मखमल धूप के जैसी। लफ्ज़ों में ना कह मैं पाऊँ, सुरम्य मूरत मैं कैसे बताऊँ? अधरों से हर पल मुस्काये, भीतर से तू नीर बहाए। स्नेह ममता का तू है सागर नेह बरसाती दया का सागर। दुख के बादल जो हम पर छायें, आँचल में तिरे सुकूँ हम पायें। अँधेरों में दीपक बन जाये, जब घनियारी…

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दागी उम्मीदवारों को नकारना होगा

ललित गर्ग। सत्रहवीं लोकसभा के महासंग्राम में दागी एवं आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को चुनाव लडऩे से रोकने की कोशिशें एक बार फिर नाकाम हो रही हैं, नतीजन इन चुनावों में बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं। सुप्रीम कोर्ट एवं चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं तक राजनीति के इस अपराधीकरण को रोक पाने में एक तरह से बेबस एवं लाचार साबित हुई हैं। यह त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण स्थिति अहसास कराती है कि आखिर लोकतंत्र के अस्तित्व एवं अस्मिता को संरक्षण देने के लिये इन स्थितियों को कब और कैसे…

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