ललित गर्ग। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक राष्ट्रीय यौद्धा का आक्रामक स्वरूप राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापन पर संसद में हुई चर्चा के दौरान देखने को मिला। अक्सर उनके इस तरह के आक्रामक एवं जोशीले स्वर चुनावी सभाओं में होने वाले भाषणों में सुनते और देखते मिलते रहे हैं, पहली बार उनका संसद के पटल पर ऐसा संवेदनशील एवं जीवंत स्वरूप देखने को मिला, जिसमें उन्होंने विपक्ष विशेषत: कांग्रेस के आरोपों का तथ्यपरक जबाव दिया। शायद यह भारत के संसदीय इतिहास का पहला अवसर है जब कांग्रेस को न…
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उपचुनावों की हार की दस्तक सुनें
ललित गर्ग। राजस्थान व पश्चिम बंगाल में हुए लोकसभा व विधानसभा उपचुनावों में देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की करारी हार से साफ हो गया है कि भाजपा से जनता का मोहभंग होना शुरु हो गया है और उसकी उल्टी गिनती की संभावनाएं भी व्यक्त कीक जाने लगी है। जनता अब समझदार हो चुकी है। आसपास घटने वाली हर घटना को वह गुण-दोष के आधार पर परखकर, समीक्षा कर, प्रतिक्रिया ज़ाहिर कर देती है। अधिकांशत: ये प्रतिक्रियाएं राष्ट्रभर में एक-सी होती हैं और यही उनके सही होने का माप…
Read Moreशिक्षा के मन्दिरों में बच्चे हिंसक क्यों बन रहे हैं?
ललित गर्ग। नये भारत के निर्माण की नींव में बैठा इंसान सिर्फ हिंसा की भाषा में सोचता है, उसी भाषा मेें बोलता है और उससे कैसे मानव जाति को नष्ट किया जा सके, इसका अन्वेषण करता है। बदलते परिवेश, बदलते मनुज-मन की वृत्तियों ने उसका यह विश्वास और अधिक मजबूत कर दिया कि हिंसा हमारी नियति है, क्योंकि हमने इसे चाहा है। इस चाह के तहत ही आज बड़े ही नहीं, बल्कि हमारे बच्चों का ऐसा व्यक्तित्व उभरकर सामने आया है कि कभी गुरुग्राम तो कभी हैदराबाद और कभी लखनऊ…
Read Moreमर्यादाओं का एक अनूठा पर्व
ललित गर्ग। आज धर्म एवं धर्मगुरु जिस तरह मर्यादाहीन होते जा रहे हैं, वह एक गंभीर स्थिति है। जबकि किसी भी धर्मगुरु, संगठन, संस्था या संघ की मजबूती का प्रमुख आधार है-मर्यादा। यह उसकी दीर्घजीविता एवं विश्वसनीयता का मूल रहस्य है। विश्व क्षितिज पर अनेक संघ, संप्रदाय, संस्थान उदय में आते हैं और काल की परतों तले दब जाते हैं। वही संगठन अपनी तेजस्विता निखार पाते हैं, जिनमें कुछ प्राणवत्ता हो, समाज के लिए कुछ कर पाने की क्षमता हो। बिना मर्यादा और अनुशासन के प्राणवत्ता टिक नहीं पाती, क्षमताएं…
Read Moreजिनका समग्र जीवन स्वयं एक प्रयोगशाला था
ललित गर्ग। काल के भाल पर कुंकुम उकेरने वाले सिद्धपुरुष का नाम है, स्वामी विवेकानन्द। नैतिक मूल्यों के विकास एवं युवा चेतना के जागरण हेतु कटिबद्ध, मानवीय मूल्यों के पुनरुत्थान के सजग प्रहरी, अध्यात्म दर्शन और संस्कृति को जीवंतता देने वाली संजीवनी बंूटी, भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता, युगीन समस्याओं के समाधायक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक, वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु हैं स्वामी विवेकानन्द। स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी,1863 में हुआ। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। दुर्गाचरण दत्ता, (नरेंद्र…
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