ललित गर्ग। गुजरात विधानसभा के चुनाव घोषित होते ही देश में उसके संभावित परिणामों को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है। वैसे तो सभी चुनाव चुनौतीपूर्ण होते हैं, परंतु गुजरात चुनावों को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्सुकता है, क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहराज्य है। इस बार के वहां के चुनाव परिणाम देश की भावी राजनीति की दिशा भी तय करेगा। न केवल भावी राजनीति की बल्कि मोदी की भी दिशा तय होने वाली है। इसलिये विभिन्न राजनीति दल पूरी जोर आजमाइश कर रहे हैं। नेता न सिर्फ एक खेमे…
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मितव्ययिता है भारतीय संस्कृति का प्रमुख आदर्श
ललित गर्ग। प्रत्येक वर्ष 30 अक्टूबर को पूरी दुनिया में विश्व मितव्ययिता दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1924 में इटली के मिलान में पहला अंतर्राष्ट्रीय मितव्ययिता सम्मेलन आयोजित किया गया था और उसी में एकमत से एक प्रस्ताव पारित कर विश्व मितव्ययिता दिवस मनाये जाने का निर्णय लिया गया। तभी से यह दिन दुनिया भर में बचत करने को प्रोत्साहन देने के लिए मनाया जाता है। मितव्ययिता दिवस केवल बचत का ही दृष्टिकोण नहीं देता है बल्कि यह जीवन में सादगी, संयम, अनावश्यक खर्चों पर नियंत्रण, त्याग एवं आडम्बर-दिखावामुक्त…
Read Moreअतिथि देवो भव: की परम्परा पर दाग लगना
ललित गर्ग। अतिथि देवो भव: तो हम सदियों से कहते आए हैं लेकिन अतिथि के साथ हम क्या -क्या करते हैं, किस तरह हम इस आदर्श परम्परा को धुंधलाते हैं, किस तरह हम अपनी संस्कृति को शर्मसार करते हैं, इसकी एक ताजा बानगी स्विट्जरलैंड से आए एक युगल के साथ हुई मारपीट एवं अभद्र घटना से सामने आयी है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि पर्यटन पर्व के दौरान फतेहपुर सीकरी में इस युगल को पीट-पीटकर अधमरा किया गया और लोग मदद करने के बजाय उनकी फोटो खींचते रहे।…
Read Moreप्रदूषण की खतरनाक अनदेखी क्यों?
ललित गर्ग। पिछले कुछ सालों के दौरान दिवाली में पटाखों की वजह से होने वाले भयावह प्रदूषण के चलते इस बार सर्वोच्च न्यायालय ने एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों की खरीद-बिक्री पर पाबंदी लगा दी थी। भले ही पटाखों का धुआं कम हुआ हो लेकिन न्यायालय के आदेश का धुआं खूब जमकर उड़ा। पिछले साल की तुलना में इस बार प्रदूषण का स्तर कम दर्ज किया गया, दिल्ली में पटाखे बेचने पर बैन की वजह से दिल्ली की जनता को थोड़ी राहत की जरूर मिली, लेकिन दिल्ली, नोएडा,…
Read Moreनौकरशाहों पर नकेल कसना भी जरूरी है
ललित गर्ग। इन दिनों नौकरशाहों की कार्यशैली पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की टिप्पणियां सामने आ रही है, नौकरशाही पर इस तरह की टिप्पणियां कोई नई बात नहीं है, अधिकांश राजनीतिज्ञ उन पर टिप्पणियां करते आए हैं। प्रश्न राजनेताओं की टिप्पणियों का नहीं है, बल्कि प्रश्न नौकरशाहों के चरित्र का है, प्रश्न नैतिकता का है, प्रश्न सुप्रशासन का है, प्रश्न जबावदेही का है। लेकिन आज जिस तरह से हमारा नौकरशाह का जीवन और सोच विकृत हुए हैं, उनका व्यवहार झूठा हुआ है, उन्होंने चेहरों से ज्यादा नकाबें ओढ़ रखी…
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