सुरेश हिन्दुस्थानी। लम्बे समय से हासिए की ओर जा रही कांग्रेस पार्टी गुजरात चुनाव के लिए गठबंधन की तलाश करती हुई दिखाई दे रही है। यह सब राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमताओं पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है। ऐसे में सवाल उठता है कि वर्तमान में कांग्रेस क्या इतनी कमजोर हो चुकी है कि उसे तिनके का सहारा ढूढऩा पड़ रहा है। राज्य स्तरीय छोटे राजनीतिक दलों की ओर कांग्रेस का इस प्रकार का झुकाव निश्चित ही कांग्रेस की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को दर्शा रहा है। कुछ दिनों…
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प्लास्टिक कचरे से मुक्ति कब तक
सुरेश हिन्दुस्थानी। वर्तमान में प्लास्टिक कचरा बढऩे से जिस प्रकार से प्राकृतिक हवाओं में प्रदूषण बढ़ रहा है, वह मानव जीवन के लिए तो अहितकर है ही, साथ ही हमारे स्वच्छ पर्यावरण के लिए भी विपरीत स्थितियां पैदा कर रहा है। हालांकि इसके लिए समय-समय पर सरकारी सहयोग लेकर गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जागरण अभियान भी चलाए जा रहे हैं, परंतु परिणाम उस गति से मिलता दिखाई नहीं देता। ऐसे में प्रश्न यह आता है कि गैर सरकारी संस्थाओं के यह अभियान अपेक्षित परणिाम क्यों नहीं दे पा रहे हैं।…
Read Moreअब एक नयी सम्पूर्ण क्रांति हो
ललित गर्ग। आजादी के आंदोलन से हमें ऐसे बहुत से नेता मिले जिनके प्रयासों के कारण ही यह देश आज तक टिका हुआ है और उसकी समस्त उपलब्धियां उन्हीं नेताओं की दूरदृष्टि और त्याग का नतीजा है। ऐसे ही नेताओं में जीवनभर संघर्ष करने वाले और इसी संघर्ष की आग में तपकर कुंदन की तरह दमकते हुए समाज के सामने आदर्श बन जाने वाले पे्ररणास्रोत थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण। जो अपने त्यागमय जीवन के कारण मृत्यु से पहले ही प्रात: स्मरणीय बन गये थे। अपने जीवन में संतों जैसा प्रभामंडल…
Read Moreअब रेलवे में वीआईपी संस्कृति पर अंकुश
ललित गर्ग। रेल मंत्री ने रेलवे में वीआईपी संस्कृति को खत्म करने के लिए जो आदेश जारी किया वे सराहनीय एवं स्वागत योग्य है, देश में वीवीआईपी कल्चर को खत्म करने के नरेंद्र मोदी के संकल्प की क्रियान्विति की दिशा में यह एक उल्लेखनीय कदम है। इस निर्णय से रेल्वे प्रशासन की एक बड़ी विसंगति को न केवल दूर किया जा सकेगा, बल्कि ईमानदारी एवं प्रभावी तरीके से यह निर्णय लागू किया गया तो समाज में व्याप्त वीआइपी संस्कृति के आतंक से भी जनता को राहत मिलेगी। अभी देश में…
Read Moreअमेरिका में क्यों है इतनी हिंसक मानसिकता?
ललित गर्ग। आधुनिक सभ्यता की सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि यहां हिंसा इतनी सहज बन गयी है कि हर बात का जवाब सिर्फ हिंसा की भाषा में ही दिया जाता है। देश एवं दुनिया में हिंसा का परिवेश इतना मजबूत हो गया है कि आज अपने ही घर में हम इतने असुरक्षित हो गए हैं कि हर आहट पर किसी आतंकवादी हमले या फिर किसी सिरफिरे व्यक्ति की सनक से किसी बड़ी अनहोनी का अंदेशा होता है। आस्थाएं एवं निष्ठाएं इतनी जख्मी हो गयी कि विश्वास जैसा सुरक्षा-कवच मनुष्य-मनुष्य…
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