उम्मीद और आशंकाओं के बीच मानसून

rainfallशंभूनाथ शुक्ल। पिछले दो वर्षों से लगातार कम और बेमौसम की बारिश ने पूरे देश का मिजाज बिगाड़ रखा था। इसलिए जब इस वर्ष अच्छी वर्षा की संभावना जताई गई तो खुशी की लहर दौड़ गई थी। मगर अब अच्छी बारिश की मेजबानी आशंकाएं भी बढ़ा रही है और सभी राज्यों का प्रशासन परेशान दिख रहा है। आशंका की वजह है बारिश का पानी न समेट पाने की कार्यनीति। मौसम विज्ञान विभाग ने सामान्य से ज्यादा वर्षा की उम्मीद जताई है और जिस तरह से केरल में मानसून दाखिल हुआ, उसका आगाज इस उम्मीद को बल प्रदान कर रहा था।
एक तरफ जब ग्लोबल वार्मिंग के चलते वर्षा कम होने लगी हो और पूरे विश्व में जल संकट एक अभूतपूर्व समस्या बनता जा रहा हो तब वर्षा के जल का उपयोग ही इस निपटने का अकेला रास्ता है। भूमिगत जलस्तर हर वर्ष नीचे चला जाता है और दूसरी तरफ जल का दोहन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में एक ही रास्ता बचता है कि वर्षा जल का संचयन किया जाए। वरना देश के किसी भी क्षेत्र को लातूर और बुंदेलखंड बनने से रोकना असंभव है।
हम अगर बुंदेलखंड पर नजर डालें तो पता चलता है कि मध्य युग में चंदेल राजाओं ने वहां पर असंख्य तालाबों और जोहड़ों के जरिए वर्षा जल को रोकने की सफल कोशिश की थी। वरना उस बुंदेलखंड में किले और खजुराहो के मंदिर बनाना असंभव था जहां पानी की घोर कमी थी। बारिश के पानी को आगे के आठ महीनों तक रोक कर हम नहीं रख पाएंगे। यह बात सर्वाधिक बेहाल सिर्फ बुंदेलखंड पर ही नहीं, सभी प्रदेशों पर लागू होती है। सौ साल की औसत वर्षा के अनुसार, देश में चार हजार घन किलोलीटर पानी बरसता है। पिछले साल देश में 86 प्रतिशत बारिश हुई थी और इस साल 109 प्रतिशत बारिश का अनुमान है। इस आंकड़े में मौसम विभाग के अनुमान की वैज्ञानिक प्रणाली की चार फीसद गलती भी जोड़ लीजिए। यानी बारिश 113 प्रतिशत भी हो सकती है। तब हमें औसत से 520 घन किलोलीटर ज्यादा पानी का संकट झेलना पड़ेगा, जो देश में बाढ़ से अभूतपूर्व तबाही की चेतावनी है।
आजादी के शुरुआती दशकों में बने बड़े-मझोले बांधों की हालत आज ठीक नहीं है। ज्यादातर बांध निर्धारित जीवन काल पूरा करने के कगार पर हैं। कई बांधों के डैड स्टोरेज में पानी की जगह मिट्टी भर गई है। देश में कुल जल उपलब्धता का हिसाब लगाएं तो उपलब्ध कुल 4000 हजार घन किलोलीटर पानी में से सिर्फ आठ सौ घन किलोलीटर पानी ही उपयोग के लिए है। इसमें से भी सिर्फ 200 घन किलोलीटर पानी संचयन करने का प्रबंध है। जबकि पिछले दो साल का अनुभव बता रहा है कि लगभग इतने ही और पानी को बारिश के दौरान रोककर रखने का इंतजाम करने की जरूरत है।
पिछले दो साल में देश की आबादी चार करोड़ बढ़ी है। आज आबादी 130 करोड़ हो गई है। अफसर, इंजीनियर देश की आबादी 125 करोड़ बताते पाए जाते हैं, जबकि यह आंकड़ा दो साल पहले का है। जनसंख्या के अनुमान में पांच करोड़ लोगों को छोड़कर चलेंगे तो योजनाएं और विश्वसनीय कार्यक्रम कैसे बनेंगे? केंद्र सरकार ने तीस साल पहले ही 2025 के लिए विजन डॉक्यूमेंट बनाया था। तीस साल पहले ही आज के जल संकट का अनुमान लगाया गया था। 1990 के दशक तक जल प्रबंधन की सरकारी चिंता दिखती भी थी। उसके बाद राजनीतिक कारणों से बांधों का विरोध ज्यादा बढ़ गया। देश के 15 लाख पुराने तालाबों के जीर्णोद्धार की कोई ठोस योजना नहीं बनी। सरकार अभी भी चेतती नहीं दिख रही है।
कंक्रीट की इमारतों ने वर्षा जल के जमीन के अंदर जाने का रास्ता रोक दिया है, जिसके कारण सारा वर्षा जल नालियों के जरिये फिजूल में बह जाता है। अब यह मनुष्य के सोचने की बात है कि वह किस तरह इस वर्षा जल का उपयोग कर पाता है। मानव सभ्यता को बचाए रखने के लिए जल और जंगल दोनों का बड़ा महत्व है। अगर इन्हें बचाए रखने के इंतजाम नहीं किए गए तो सृष्टि को बर्बाद होने से भला कौन रोक सकता है। जल को बचाए रखना उसके इस्तेमाल से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। बांध बनाने से लेकर तालाबों व जोहड़ों की साफ-सफाई इसके नायाब नमूने हैं। बुंदेलखंड और आंध्र के तटवर्ती इलाके इसके उदाहरण हैं। स्वयं ओडीसा में असंख्य तालाब और कृत्रिम झीलें विकसित की गईं ताकि जल संकट से निजात पायी जा सके।
कितनी विचित्र बात है कि 21 वीं सदी में प्रशासन व शासन इस जल संकट की आसन्न स्थिति से बेखबर है। अगर हमने वर्षा जल को बचाया तो यकीन मानिए सूखे में भी हम निश्चिंत रह सकेंगे और तब प्रकृति की आशंका से हम मुक्त हो सकेंगे।