सपनों की उड़ान, डा.कलाम

A_P_J_Abdul_Kalam
फीचर डेस्क। एपीजे अब्दुल कलाम को जनता का राष्ट्रपति कहा गया। 329 एकड़ में फैला प्रेसीडेंट भवन आम आदमी के लिए एक तिलिस्म जैसा ही रहा है पर कलाम ने अपनी तरफ से इसका दरवाजा खोले रखने की कोशिश की और उसके माहौल को औपचारिकताओं से बोझिल नहीं रहने दिया। उनके कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन साधारण लोगों की आमदरफ्त और बच्चों की खिलखिलाहट से गूंजता रहा।
सबसे बड़ी बात यह कि इस लार्जर दैन लाइफ पद को उन्होंने अपने व्यक्तित्व पर कभी हावी नहीं होने दिया। बहरहाल, राष्ट्रपति के रूप में उनके पास मोटे तौर पर दो विकल्प थे। एक तो यह कि कार्यपालिका प्रमुख के रूप में वे सरकार के कामकाज को लेकर सचेत रहें और जहां भी उसे रास्ते से इधर-उधर होते देखें, वहां अपनी मर्यादा में रहते हुए उसकी गलतियों का एहसास कराएं।
दूसरा रास्ता राष्ट्रपति भवन को अकादमिक और वैचारिक विमर्श का केंद्र बनाने तथा एक दूरदर्शी अभिभावक के रूप में राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास का भविष्योन्मुख खाका खींचने का था। इसे उनकी शक्ति कहें या सीमा, लेकिन लाभ का पद संबंधी विधेयक को लौटाने के निर्णय को छोड़ दें, तो आम तौर पर उन्होंने पहले वाले रास्ते से कतरा कर निकलना ही बेहतर समझा। राष्ट्रपति के रूप में अपने सामने आई 21 दया याचिकाओं में से 20 के संबंध में कोई फैसला न करने को लेकर उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
23 मई 2005 को अपनी रूस यात्रा के दौरान उन्होंने मंत्रिमंडल की सलाह पर बिहार विधानसभा को भंग कर दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर प्रतिकूल टिप्पणी की थी। कलाम ने काफी दिनों बाद खुलासा किया कि इस टिप्पणी के बाद वे अपना पद छोड़ देना चाहते थे। कुल मिलाकर राजनीतिक फैसलों से बचकर चलने की उनकी प्रवृत्ति ही वह वजह बनी, जिसके चलते उनके बाद राष्ट्रपति का पद किसी राजनीतिक व्यक्ति को ही दिए जाने के विचार ने जोर पकड़ा। लेकिन राष्ट्रपति भवन से निकलने के बाद भी कलाम का व्यक्तित्व मुरझाया नहीं। एक अनुभवी बुजुर्ग की भूमिका में वापस आकर वे एक शिक्षक, जीवन-दर्शन के व्याख्याता और अराजनीतिक जननेता के रूप में लोकप्रिय हुए। इस मामले में उनकी तुलना केवल जवाहर लाल नेहरू से की जा सकती है।
रक्षा विज्ञान के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियों के अलावा वैज्ञानिकता के प्रसार में भी उनका काफी बड़ा योगदान रहा। अपने लेखन और भाषणों के जरिए वे जीवन में वैज्ञानिक दृष्टि अपनाने पर जोर देते रहे। उनका मानना था कि मनुष्य का विकास इसके बगैर संभव नहीं है। 2020 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का उनका स्वप्न एक आम भारतीय नागरिक की आकांक्षाओं की ही अभिव्यक्ति है। उन्होंने ठीक ही कहा कि सपने देखना कभी नहीं छोडऩा चाहिए। कलाम ने अपने आचरण से संदेश दिया कि मनुष्य की शक्ति उसके पद से नहीं, उसके भीतर मौजूद किसी और ही चीज से आती है, और यह भी कि एक श्रेष्ठ मनुष्य के निर्माण से ज्यादा बड़ा नैतिक और संवैधानिक दायित्व और कोई नहीं हो सकता।