पहचान को मोहताज हैं मुगलों के खिलाफ लडऩे वाले बागडिय़े

bagadiyaनजीबाबाद। आधुनिक युग में गडिय़ा लोहारों (बागडिय़ा) का परम्परागत धंधे से मोह भंग होता जा रहा है इनके पूर्वजों ने मुगलों के अधीन जीवन जीने से अच्छा घुमाकड़ जीवन जीना बेहतर समझकर चितौड़ की आजादी तक बेघर रहने का प्रण किया था इसका प्रण आज भी इनको चलते रहने की प्रेरणा दे रहा है। बागडिय़ा मुकेश ने बताया कि महाराणा प्रताप का राजतिलक गोगुन्दा उदयपुर में हुआ था महाराणा ने अपने राज्य की एकता और अखंडता को बनाये रखने के लिए हकीम खां राण पूजा एवं बादशाह के सहयोग से मुगलों के साथ युद्ध लड़ा जिसका गवाह उदयपुर का घोलिया पहाड़ एवं मायरा की गुफा आज भी मौजूद है। इस रण क्षेत्र के कण कण में राणा के वीर सैनिकों को लहू समाया हुआ है। इस माटी का तिलक लागने से जीवन धन्य हो जाता है। आज सम्पूर्ण देश जो आजादी की खुली हवा मं सांस ले रहा है। वह इन गडिय़ा लोहारों के पूर्वजों की ही देन है। इसके बावजूद आज तक अधिकांश परिवार राशन कार्ड एवं पहचान पत्र से महरूम हैं चितौड़ की आजादी तक बेघर रहने वाले प्रताप के वीर सैनिक गाडिय़ा लोहारों को भूख शांत करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती हैं इनको आज भी अपने पूर्वजों को महाराणा प्रताप सामने किया गया प्रण याद है जिसको सादियों तक भुला पाना मुश्किल है इनके जीवन में सर्दी, गर्मी बरसात में खुले आसमान के नीचे दो जून की रोटी के लिए गर्म लोहे को पीट पीट कर औजार बनाने में काफी मश्क्कत करनी पड़ती है। समय के बदलाव व बदलते जीवन मूल्यों ने इनको परिर्वतन के रास्ते पर धकेल दिया है।