प्रशासन जप रहा स्वच्छ भारत की माला: हिंडन फिर भी बन रही नाला

दिनेश जमदग्नि, गाजियाबाद। यह गाजियाबाद का सौभाग्य कहें कि गाजियाबाद के गौरवशाली इतिहास में एक प्राचीन प्रतीक हिडिम्बा नदी है जिसके बारे में बताते हैं कि हिडिम्बा के नाम का स्वरूप स्थानीय बोलचाल की भाषा में बदलकर हिंडन हो गया। कहते हैं द्वापर युग में पांडव पुत्र भीम की पत्नी हिडिम्बा के नाम पर यह नदी प्रचलित थी। आज इस धार्मिक आस्था का प्रतीक इस नदी की दुर्दशा पर जितना यहां का प्रशासन दोषी है उतने कसूरवार यहां के बाशिंदे भी हैं। अधिकारियों को दोषी ठहराना इसलिए भी जरूरी है कि उनकी तैनाती गाजियाबाद के रखरखाव, देखभाल व हितों की सुरक्षा के लिए होती है लेकिन उनकी उच्च शिक्षा व अखबारों में छपास का रोग उन्हीं को मुंह चिढ़ाती नजर आती है क्योंकि गाजियाबाद की मातृ स्वरूपा हिडिम्बा नदी का संरक्षण का ख्याल ना रखते हुए ऐसा अनजाने में पाप कर जाते हैं जो उनकी आने वाली पीढिय़ों को बेकसूर होने पर भी भुगतने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। यहां यह चर्चा भी जरूरी है कि जितने प्रशासनिक अधिकारी दोषी हैं उससे ज्यादा यहां निवास करने वाले नागरिक भी हैं जो अपनी मातृ स्वरूपा जल देवी हिडिम्बा की देखभाल ना करके उपेक्षा व पाप के भागीदार बन रहे हैं। हिडिम्बा नदी पर कई कथित समाजसेवी मात्र अपनी राजनीति व नाम चमकाने हेतु कभी अपना नाम जलपुरुष या कुछ और कहलवाना पसंद करते हैं। यक्ष प्रश्न यह है कि नदी के सौंदर्यीकरण के नाम पर असीमित रुपया पैसा व्यय किया गया लेकिन नदी का बिगाड़ा हुआ स्वरूप आज भी वैसा ही है बल्कि नदी की देखभाल करने वालों का नाम थोड़ा बहुत ही सही चमका जरूर है। यह हिडिम्बा का अभिशाप समझो जो इसके शोषण करने वालों को भुगतना जरूर पड़ता है।
सबसे ज्यादा दोषी तो वह है जो यहां की मिट्टी में खेल कूदकर व नदी के पानी में नहा कर बड़े हुए हैं। जब उन्हें ही अपनी मां का ख्याल नहीं तो बाहर से आकर बसे परदेसियों को क्यों होगा। यह भी सत्य है कि जब तक गाजियाबाद छोटा था यहां के बाशिंदों का दिल बड़ा था लेकिन जैसे-जैसे गाजियाबाद की आबादी बढ़ती गई यहां के लोगों का दिल व सोच छोटी होती चली गई। स्वार्थपरता ज्यादा आ गई। यूं तो व्हाइट कॉलर चमकाने वाले व बड़ी-बड़ी गाडिय़ों से पैर उतारते शहर में अनगिनत तथाकथित समाजसेवी मिल जाएंगे लेकिन हिडिम्बा का ख्याल रखने की फुर्सत शायद इन्हें भी नहीं है। अब एक वरिष्ठ समाजसेवी व ईमानदार, जुझारू व्यक्तित्व के धनी पुरुष ने हिडिम्बा के रख-रखाव के अभियान का बीड़ा उठाने का संकल्प शिरोधार्य किया है। हिडिम्बा नदी से प्रेम रखने वाले लोगों में आशा की किरण जगी है कि राजनगर से 5 बार के पार्षद राजेंद्र त्यागी जोकि गाजियाबाद से इतर हापुड में जन्मे लेकिन यहां की माटी में खेल कूद कर बड़े हुए हैं, उनके द्वारा यहां का निवासी होने की जिम्मेदारी कहे या हिडिम्बा के प्रति सम्मान या फिर आने वाली पीढ़ी के बचाने की कवायद कहे, राजेंद्र त्यागी ने मुहिम छेड़ी है तो लोगों को भी सौ प्रतिशत विश्वास हो चला है कि अब तो कुछ होगा ही। ऐसे भी राजेंद्र त्यागी जिस काम को हाथ में ले लेते हैं उसे पार उतारते ही हैं। हिडिम्बा नदी के संरक्षण हेतु जब उसके बेटे आगे आए हैं तो जय होगी ही।
हिडिम्बा नदी के स्थाई संरक्षण हेतु इसमें गिरने वाली गंदगी चाहे वह इसके तटों की तरफ से लोगों द्वारा प्रवाहित की जाने वाली पूजा सामग्री हो या उस में गिरने वाले नालों की हो या जलकुंभी के सूखे मलबे से। इसका स्थाई प्रबंध करना ही होगा साथ ही इसे टूरिस्ट पैलेस के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसके आसपास खुली जगह पर 1857 की जंग के इतिहास को उकेरता हुआ प्रदर्शनी स्थल जिसे क्रांति स्थल के रूप में निर्मित कर पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित किया जा सकता है। नदी में वोटिंग, लाइटनिंग कर इसके ऐतिहासिक महत्व को मूर्त रूप दिया जाना चाहिए। इस पुनीत कार्य में आवास विकास परिषद, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण,नगर निगम, वन विभाग यूपीएसआईडीसी, नहर व सिंचाई विभाग आदि विभागों को बढ़-चढक़र अपना बजटीय योगदान करना चाहिए। सभी विभागों की बैठक आहूत कर जल्द से जल्द योजना सिरे चढ़ाने का प्रयास हो तो गाजियाबाद से होकर गुजरने वाले यात्री व यहां के बाशिंदों व उनकी आने वाली पीढ़ी के लिए यह एक खुशनुमा सौगात से कम ना होगी।