महिला विमर्श: संस्कृति या सत्ता

aarti rani

आरती रानी प्रजापति। अक्सर लोग संस्कृति के नाम का सहारा लेते हैं। भारतीय संस्कृति ऐसी है, वैसी है आदि-आदि। पर क्या वो सच में संस्कृति की बात करते हैं? जिस संस्कृति की वह बात करते हैं देखना चाहिए वह है क्या?
समाज पहले आदिम युग में था मतलब न कोई बंधन न रोक-टोक महिलायें वहां स्वतन्त्र रूप से जीती थी अपने मन की करती थी। यहां तक की उन्हें शारीरिक संबंधों में भी पूरी आजादी थी। धीरे-धीरे समाज निजी संपत्ति के कारण विभिन्न संस्कृतियों में बंट गया जिसमें लड़कियों के लिए कई नियम-कानून तय किये गए। स्त्री समाज को घर में बन किया गया ताकि वह आदिम समय की तरह जब चाहे जिससे चाहे सम्बन्ध न बनाये यदि वह ऐसा करती है तो पुरुष की निजी संपत्ति उसके बेटे को नहीं जाएगी उसका हकदार कोई और होगा। और ये घर में बंद रहना ही हमारी संस्कृति बना दिया गया।
भारत जैसे देश में विभिन्न संस्कृतियां देखने को मिलती हैं। पर कहीं भी औरत पूरी तरह स्वतन्त्र नहीं दिखाई देती। उनके आने-जाने पर रोक-टोक हमेशा ही लगाई जाती है। ऐसी व्यवस्था में आप यह कहे कि आपकी संस्कृति है महिलाओं को रात को बाहर नहीं जाना चाहिए तो आप सही कह रहे हैं जी संस्कृति ये आपकी ही है आपने ही बनाई है। सभी कुछ आपने ही बनाया है आदिम समाज से कृषि युग और फिर आज का समाज अब तक सब आपका ही बनाया गया है। तो यह संस्कृति भी आपकी है और इसको हम बिगाड़ रही हैं वक्त-बेकत बाहर आ-जाकर पर आपकी महान संस्कृति हम जैसी महिलाओं से कैसे खराब हो रही है। हम जिसे आज तक आपने बोलने, हंसने, खाने-पीने, यहाँ तक की बच्चे पैदा करने की स्वतंत्रता नहीं दी जिसकी आप हमें मशीन समझते थे हम आपकी संस्कृति को कैसे खराब कर सकती है? जरा सोचिये क्या हम आपकी संस्कृति को खराब कर सकती हैं? क्या आपकी संस्कृति में पर्याप्त गुण ही हैं? आप जिस महान सभ्यता की बात कर रहे हैं उसमें हम औरतों पर जुल्म किए गए हैं। नहीं, आप तो उससे अत्याचार मानते ही नहीं हैं न, वो तो आपकी संस्कृति है। रावण ने सीता का अपहरण किया वो गलत था पर राम ने सीता को वन भेजा वो तो ठीक था? आपकी ही संस्कृति की महिला जिसने कुछ नहीं किया किसी संदेह के तहत गर्भवती करके वन में भटकने के लिए भेज दी गई तब भी आप इसी सभ्यता को हर साल मंच पर लोगों के सामने करवाते हैं। वास्तव में इसलिए कि आप आज भी यह डर हमारे मन में बैठाने का प्रयास करा रहे हैं कि अपनी जिद की तो अंजाम वही होगा तो सीता का हुआ। और अंत तक सीता आपकी संस्कृति की भेंट चढ़ती जाती है। तब क्यों नहीं आप आवाज उठाते क्यों नहीं आपके भीतर बहुत हुआ नारी पर अत्याचार का वाक्य याद आता?
रावण ने दूसरी स्त्री पर बुरी नजर डाली तो कृष्ण ने क्या किया? क्या वह सब गोपियाँ कृष्ण की मां, बहन या बेटी थी? वह भी किसी की पत्नी, बेटी, बहन थी किसी घर की बहु थी तब आपको अपनी संस्कृति क्यों नहीं याद आती? अब आप यह कहेंगे की कृष्ण से प्रेम था किसी लड़के से नहीं तो सोच लीजिये कि हम भी किसी कृष्ण से प्रेम करने जा रही हैं। तब आप नहीं मानेंगे जब आप आज नहीं मान सकते तो क्यों उस कृष्ण को आप देवता मान बैठे हैं जिसने औरत के मन का मजाक बनाया। जिसके लिए सिर्फ निधि वन और उसकी तमाम देह-क्रियायं ही उचित थी।
आपकी संस्कृति में तुलसी की पूजा की जाती है उसे मां माना जाता है। उसका शालिग्राम नाम के एक पत्थर से ब्याहा जाता है जिसके पीछे एक कहानी है। तुलसी अपने पूर्व जन्म में वृंदा नाम की एक असुर पत्नी थी जिसके पति को यह वरदान दिया गया था कि जब तक उसकी पत्नी शीलवान है उसका वध नहीं किया जा सकता। तब आपके उसी कृष्ण ने राम की तरह वृंदा के पति को धोखे से मारने की योजना बनाई। राम ने बाली को छुप कर मारा और कृष्ण ने वृंदा के साथ उसके पति का रूप लेकर सहवास किया7 जिससे वरदान के अनुसार वह विधवा हुई। आपकी इस धोखे वाली संस्कृति पर आप क्यों नहीं कुछ कहना चाहते या आप सिर्फ महिलाओं को अपनी बंद मानसिकता की संस्कृति का हवाला देने के लिए हैं
आपकी संस्कृति कन्याओं का पूजन करना जानती है फिर जब उन्हीं कन्याओं के साथ हैवानियत होती है तो आप क्यों चुप रहते हैं। क्या आपने संस्कृति का नारा लगाने से पहले सोचा था उस बच्ची के बारे में जो इसका शिकार हुई और आप कुछ न कर पाए। आप लोग अक्सर महिलाओं के पहनावे पर अपनी राय देते हैं क्या उस बच्ची के लिए भी यह ही कहेंगे आप? आपको नहीं लगता जिस संस्कृति का आप हवाला देते हैं उसकी जड़ें हमारी आहों से भरी हैं। आप कभी देख पायेंगे हमें एक मादा देह से इतर? आपको एक बात स्पष्ट करना चाहूंगी हम महिलायें देवी नहीं मानव होना चाहती हैं। आप भले ही इसे संस्कृति का नाम दे पर यह सत्ता की स्थापना है जिससे हमारी लड़ाई है और रहेगी।

लेखक- जेएनयू में एमफिल की छात्रा हैं