भारतीय शिक्षा पद्धति: गरीबों के हाथ खाली के खाली

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आरती रानी प्रजापति। भारतीय शिक्षा पद्धति एकदम अजीब है। यहां पब्लिक स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के पास इतने काम हैं कि वह करते नहीं थकते दूसरी और सरकारी स्कूलों में 8 वीं कक्षा तक बच्चों को पास करने का प्रावधान हैं। गरीब मां-बाप यह जानते हुए भी कि सरकारी तंत्र के कारण आज शिक्षा की क्या दशा है अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं। मैं यह भी नहीं कह रही कि सभी सरकारी स्कूल पढाई के मामले में कम है पर अधिकतर ऐसे हैं यह कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। भारत जैसे गरीब देश में ऐसे कई शहर हैं जहां शिक्षा की हालात बहुत नाजुक है ऐसे में केवल वो ही बच्चे पढ़ पाते हैं जो वास्तव में पढऩा चाहते हैं। इसी समाज में ऐसे कई बच्चे भी हैं जो पढऩा तो चाहते हैं पर घर की आर्थिक मजबूरियां उन्हें ऐसा नहीं करने देती। सरकारी स्कूलों में पढ़कर यह बच्चे किसी तरह अपने भविष्य को संवारने की कोशिश में लगे हैं। गांव में कोई व्यवस्था नहीं है तो भी दूर-दराज जगहों पर स्थित स्कूलों में शिक्षा लेने जाते हैं। मां-बाप यह सोचकर भेजते हैं कि हमने जो अनपढ़ रह कर भोगा वह हमारी संतान न सहे इसलिए आज हर बारहवीं और दसवीं के परिक्षा-परिणाम में ऐसे कई चेहरे सामने आते हैं जिनके बारे में पढ़ कर उन्हें सलाम करने को जी चाहता है उनके संघर्ष, सपने समाज की दिशा को बदलने का काम करते हैं। समाज के यह बच्चे जब पढ़ते हैं तो कोई फूले बनता है तो कोई संविधान निर्माता या अन्य कोई ऐसे बच्चे पढ़कर आपकी बनाई नीतियों पर सवाल खड़ा करते हैं। आपके विरुद्ध आवाज उठाते हैं एक लाइन में कहूं तो सत्ता की नींद को हराम करते हैं। इसलिए सरकार का एक अनूठा कदम ऐसे बच्चों को रोकने का कि उच्च शिक्षा पद्धति में मिलने वाली छात्रवृत्ति को रोक दिया जाए। बच्चे जो कई सपने लेकर उच्च शिक्षा लेने आते हैं उन्हें कुचल दो ताकि न सांप होगा न यह विरोध प्रदर्शन होगा। सरकार की यह नीति है कि शोध-छात्रों को मिलने वाली नॉन-नेट फेलोशिप को बंद किया जाए। कई विरोध, छात्रों द्वारा धरना-प्रदर्शन, पुलिस की लाठी खाने के बावजूद छात्र सरकार की इस बात को मानने को कतई सहमत नहीं है कि यह छात्रव्रृति नये सत्र से मैरिट और आर्थिक दशा के आधार पर दी जाए। यानि आप छात्रों को बहलाने के लिए कह तो रहे हैं कि आपकी फेलोशिप बंद नहीं हुई है पर आप वास्तव में उसे बंद कर ही रहे हैं। क्या आप नहीं जानते कि इस समाज में गरीबी रेखा के नीचे कितने लोग हैं, और जितने हैं भी उन तक भी आपकी कोई सुविधा नहीं पहुंचती। पैसा खिलाने की सामथ्र्य रखने वाले लोगों ने गरीबों का हक राशन में भी छीन लिया है। लोग पैसा देकर गरीबी रेखा का कार्ड बनवा लेते हैं जिससे जरुरतमंद तक आपकी सुविधाएं नहीं पहुंचती। ऐसे में आप कैसे तय कर पाएंगे कि कोई छात्र गरीब है तो उसे 5000 या 8000 मिलने चाहिए। रही बात मैरिट कि तो जनाब आप ही बताये कि जो गरीब अपने बच्चे को पेन-पेन्सिल, कागज़ तक नहीं मुहैया करवा पाता, जिसका बच्चा सड़क की रोशनी में, लोगों के बरतन-कपड़ें, झाडू-पोछा करके जिनकी मां, बाप या वो खुद अपने पढऩे का साधन जुटा रहा है उससे आप उम्मीद कर रहे हैं कि वो आपकी घटिया मैरिट को सह पायेगा? गरीब को मौका तो दीजिये वो आपको उससे ज्यादा मैरिट ला कर दिखा सकता है पर आप उसके सारे दरवाजे बंद करने में लगे हैं। पहले गरीब स्थिति न होते हुए भी अपने बच्चे को पढऩे भेजता था यह सोच कर कि कम से कम एक बच्चे को मुझे खिलाना नहीं पडेगा यह खुद अपना खर्च निकाल लेगा। पढ़ लेगा, हम तो पीस गए यह न पिसेगा उस व्यवस्था में जिसमें मूल से ज्यादा ब्याज होता है। जिसमें लड़की को किसी बूढ़े से बेच दिया जाता है ताकि घर में लोग जिंदा रह सके। जहां रोज भूखमरी है, लोग-किसान आत्महत्या कर रहे हैं तू जिदा रहेगा चाहे वह लड़की हो या लड़का। एक गरीब जो कभी स्कूल के दरवाजे तक नहीं गया वो भी चाहता है कि उसका बच्चा पढ़े और जितना चाहे उतना पढ़े क्योंकि हमें छात्रवृत्ति मिल रही थी यदि यह न होगी तो क्यों भूखमरी को झेलता किसान अपने बेटे या बेटी को रिसर्च करवाएगा? जबकि घर में जरूरत है पैसे की, लोग बिना इलाज के मर रहे हैं वो रिसर्च के लिए किताबें खरीदेगा? नहीं कभी नहीं। और वास्तव में ऐसे फरमान निकालने के पीछे आपका यह ही उद्देश्य है कि गरीब जनता न पढ़े। आपके साहूकार, सलाहकार, चमचे पढ़े और कोई न उच्च शिक्षा तक पहुच पाए क्योंकि गरीब का शिक्षित होना अमीर की व्यवस्था को ठेस पहुंचाना है। गरीबी से निकलने की कोशिश करना है। आप ऐसे फरमान निकाल कर देश को उसी वर्ण व्यवस्था में धकेलना चाहते हैं क्योंकि पढ़ कर हम अपने-अपने समुदायों के कामों से अलग काम कर रहे हैं जो कि आपको पसंद नहीं। इसलिए आप हमारे एकमात्र हथियार (शिक्षा) को हम से छीनना चाहते हैं। आप बात करते हैं बेटी को बचाने-पढ़ाने की? क्या आपके फेलोशिप बंद करने से लड़कियों को ज्यादा पढऩे को मिलेगा? नहीं उनकी पढाई ही बीच में रोक दी जाएगी। आज के आधुनिक समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो भारतीय सभ्यता के नाम पर लड़कियों को घर में बंद करवाना चाहते हैं। जिनकी नजर में लड़की को क्यों पढ़ाया जाए जब उसे चूल्हा-चौका ही संभलाना है तो। छात्रवृत्ति से लड़कियों के पढऩे के प्रतिशत में इजाफा होता है। वो जितना चाहे पढऩे को सोच सकती हैं क्योंकि इस 5000-8000 से उन्हें पढऩे की ताकत मिलाती है अपने शोध को करने की आर्थिक सहायता मिलती है और आप चाहते हैं कि सब चीजें बंद हो जाए ताकि आपकी सभ्यता को कोई ठेस न पहुचें सब तुलसीदास के वर्णवादी सपने को पूरा करें? आप ऐसे सपने न देखें सरकार जब तक इस देश का संवेदनशील युवा और सभी वह लोग जो आपकी कुनीतियों को समझते हैं जिंदा हैं आपके सपने कभी पूरा नहीं हो सकते। हां चूरा-चूरा जरुर होंगे।

लेखक- शोध-छात्रा जेएनयू