घाटे के जरिये निवेश की तरकीब

Startupअश्विनी महाजन। पिछले कुछ समय से ई-कामर्स ने जीवन में काफी सुविधा प्रदान की है। इंटरनेट द्वारा किसी वेब पोर्टल के माध्यम से जब किसी वस्तु अथवा सेवा की खरीद की जाती है तो इस प्रकार की खरीद-फरोख्त को ई-कॉमर्स कहते हैं। रेल टिकट बनवाना हो या हवाई यात्रा का टिकट, ई-कॉमर्स के माध्यम से मिनटों में सब काम हो जाता है। यहां तक कि किसी दूसरे शहर में होटल बुकिंग भी चुटकी भर में हो जाती है। कोई भी किताब खरीदनी हो या मोबाइल हैंड सेट, इलैक्ट्रॉनिक्स साजो-सामान या कोई और उपभोग का सामान, कम्प्यूटर या स्मार्ट फोन द्वारा ई-कामर्स वेबसाइट खोलकर खरीदा जा सकता है। खरीदारी के भुगतान में भी कई विकल्प मिलते हैं, क्रेडिट या डेबिट कार्ड से भी भुगतान हो सकता है, या ऐसा न करना हो तो डिलिवरी पर भी भुगतान हो सकता है।
देश में 2000 से ज्यादा ई-कॉमर्स पोर्टल हैं, लेकिन कुछ ही ऐसे पोर्टल हैं, जिनका व्यवसाय ज्यादा चलता है। फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, मयंत्रा, होमशॉप-18, एमेजॉन, ईबे, ओला, उबर, मेक माई ट्रिप और ऐसे कई निजी पोर्टल हैं, जिनका व्यवसाय लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा रेलवे बुकिंग में आईआरसीटीसी, विमानन कंपनियों आदि के भी अपने-अपने ई-कॉमर्स पोर्टल काम कर रहे हैं। इसके अलावा बिजली, पानी, टेलीफोन इत्यादि के बिलों का भुगतान भी इंटरनेट के माध्यम से हो जाता है, जो एक तरह से ई-कॉमर्स ही है। ई-कॉमर्स में कुछ समय पहले तक यातायात (रेलवे और विमानन) का योगदान लगभग 70 प्रतिशत था।
जहां तक खुदरा बिक्री का प्रश्न है, ई-कॉमर्स का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2014 में लगभग 5.3 अरब डॉलर की बिक्री ई-कॉमर्स से हुई थी, जो 2015 में 7.7 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है और 2018 तक उसके 17.5 अरब डॉलर पहुंचने का अनुमान है। अभी तक हर साल इसकी ग्रोथ 50 प्रतिशत के आसपास हो रही है। अभी तक ई-कॉमर्स द्वारा खुदरा बिक्री कुल खुदरा बिक्री से 2 से 3 प्रतिशत है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि जिस तरह से इंटरनेट का उपयोग बढ़ रहा है और जिस तेजी से ई-कॉमर्स कंपनियां बाजार में उतर रही हैं, ई-कॉमर्स का व्यापार कुल जीडीपी के 5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। गौरतलब है कि आज देश में 11 करोड़ लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं और यह संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इनके माध्यम से ई-कॉमर्स वेबसाइटों/एप से खरीद-फरोख्त हो सकती है।
चिंता का विषय यह है कि बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां तरह-तरह के गलत तरीके अपनाकर अपना व्यापार बढ़ाने की कवायद में परंपरागत दुकानदारों को ही प्रतिस्पर्द्धा से बाहर नहीं कर रहीं, बल्कि अन्य छोटी ई-कॉमर्स कंपनियों को भी प्रतिस्पर्द्धा से बाहर कर रही हैं। इन कंपनियों का तरीका यह है कि वे उपभोक्ताओं को बड़े-बड़े डिस्काउंट देकर लुभाती हैं। परंपरागत दुकानों पर जहां छपे हुए अधिकतम खुदरा मूल्य पर ज्यादा से ज्यादा 10 प्रतिशत का ही डिस्काउंट मिलता है, ये कंपनियां 30 से 50 प्रतिशत का डिस्काउंट दे रही हैं।
जाहिर है कि ये कंपनियां उदारतावश ऐसा नहीं कर रही हैं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत ऐसा हो रहा है। हालांकि इन कंपनियों के खातों की जानकारी खुले तौर पर नहीं है, लेकिन जानकारों का मानना है कि इसी साल इन कंपनियों का नुकसान हजारों करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है और अगले साल इसमें और इजाफा होगा। सबसे ज्यादा नुकसान सबसे बड़ी कंपनियों जैसे फ्लिपकार्ट, स्नैपडील इत्यादि को हो रहा है। पिछले साल ई-कॉमर्स से कुल बिक्री 6 अरब डॉलर थी, जो 2020 तक बढ़कर 60 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है, यानी उसी अनुपात में इन कंपनियों के नुकसान भी बढऩे वाले हैं।
नुकसान उठाकर माल बेचने के संदर्भ में इन कंपनियों का तर्क यह है कि दीर्घकाल में वे इन नुकसानों की भरपाई कर लेंगी, क्योंकि अभी माल सस्ता बेचकर वे ऐसे उपभोक्ताओं का एक डाटा बैंक तैयार कर रही हैं, जिनसे भविष्य में और संभावनाएं बन सकती हैं। इस प्रक्रिया को वे ‘एक्वेजिश्न टूल्सÓ का नाम देते हैं। चूंकि ये कंपनियां नए बाजार तालाश रही हैं, डिस्काउंट देकर घाटा उठाना उनके लिए निवेश सरीखा है।
देखने में ऐसा लगता है कि इस प्रक्रिया से उपभोक्ताओं को लाभ हो रहा है और उन्हें सस्ता सामान मिल रहा है। यह भी कहा जाता है कि क्योंकि इन कंपनियों को व्यापार में कम खर्चा करना पड़ता है, दीर्घकाल में भी उपभोक्ताओं को परंपरागत दुकानों की तुलना में ई-कॉमर्स के माध्यम से सस्ता सामान मिल सकता है। लेकिन ई-कॉमर्स कंपनियों की यह रणनीति अनैतिक है क्योंकि ये कंपनियां अपनी क्षमता के आधार पर नहीं, बल्कि अपने संसाधनों के आधार पर अनैतिक तरीके अपनाकर पहले से स्थापित व्यापारियों, दुकानदारों और छोटे ई-कॉमर्स उद्यमों को व्यापार से बाहर कर रही हैं।
स्पष्ट है कि अपनी आर्थिक शक्ति के आधार पर ये कंपनियां न केवल परंपरागत व्यापार को चौपट कर रही हैं, बल्कि ई-कॉमर्स में नए उद्यमियों के रास्ते में भी एक बड़ी बाधा हैं। नए उद्यमियों के पास पूंजी के नाते सीमित संसाधन होते हैं और वे अपना नुकसान करते हुए व्यापार नहीं कर सकते। बड़ी कंपनियां, बड़े संसाधनों के कारण प्रारंभ में नुकसान उठाते हुए व्यापार पर कब्जा करना चाहती हैं, जो स्टार्ट-अप उद्यमों के लिए मौत का पैगाम है। खेद का विषय है कि भारत का प्रतियोगिता आयोग यह देखते हुए भी कि इन कंपनियों द्वारा अनैतिक तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है, कुछ कानूनी अड़चनों के कारण इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। हाल ही में जब पुस्तक विक्रेताओं ने इन कंपनियों के खिलाफ यह कहकर शिकायत दर्ज कराई कि वे गलत तरीके से डिस्काउंट देकर किताबें बेच रही हैं, तो उनकी शिकायत पर इसलिए गौर नहीं हो सका क्योंकि कोई ई-कॉमर्स कंपनी ही किसी ई-कॉमर्स कंपनी के खिलाफ ही शिकायत दर्ज करा सकती है। सरकार का कहना है कि वह ई-कॉमर्स कंपनियों के कामकाज के लिए नियम बनाने वाली है। हालांकि बिजनेस से उपभोक्ता ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश प्रतिबंधित है, फिर भी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां यह कहकर बिजनेस कर रही हैं कि वे स्वयं ई-कॉमर्स नहीं कर रहीं, बल्कि घरेलू उत्पादकों को ई-कॉमर्स प्लेटफार्म उपलब्ध करा रही हैं। मजेदार बात यह है कि नियमों में इस कमी का लाभ उठाकर ये अपने व्यापार को बढ़ा रही हैं और भविष्य में सरकार द्वारा ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश को अनुमति मिलने की प्रतीक्षा कर रही हैं। कुछ कंपनियां जिन्होंने अभी तक स्टाक रखने का प्रावधान नहीं रखा हुआ, इस तैयारी में हैं कि वे अपना स्टॉक भी रखना शुरू करेंगी। देश में खुदरा व्यापार में इस प्रकार की असमान प्रतिस्पर्द्धा से बचने का एक मात्र तरीका यह है कि इन विदेशी कंपनियों को प्रतिबंधित किया जाए, ताकि ई-कॉमर्स में नए भारतीय स्टार्ट-अप्स को विकास का पूरा मौका मिले।