आर्थिक सूत्र का संदेश है लक्ष्मी पूजन

diwali pooja

फीचर डेस्क। भारतीय सनातन संस्कृति में पर्व और त्योहार की निरंतरता नितांत वैज्ञानिक और उद्देश्यपरक है, दीपपर्व भी इसका अपवाद नहीं है। दीपपर्व पर माटी का दीप जलाकर लक्ष्मी, गणेश, कुबेर के पूजन की परंपरा आदिकाल से है। दरअसल चौदह वर्षों के वनवास के बाद राम के अयोध्या आगमन पर दीप जलाकर खुशियां मनाने की परंपरा से दीपपर्व जुड़ा है लेकिन लक्ष्मी का पूजन भी किया जाता है क्योंकि इसी दिन समुद्र मंथन से लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। समय के साथ पर्व-पूजन के मायने भले ही बदल गए हों लेकिन लक्ष्मी पूजन का आधार सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि आर्थिक सूत्र का परिचायक भी है।
कर्म की अधिष्ठात्री हैं मां लक्ष्मी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. गिरिजाशंकर शास्त्री कहते हैं, लक्ष्मी कर्म की अधिष्ठात्री हैं, जहां कर्म की प्रधानता होती हैं, वहां लक्ष्मी निवास करती हैं। शास्त्र कहते हैं, जो अनंत प्रकार से परिश्रम करके थककर चूर हो गया हो लक्ष्मी उसी का वरण करती हैं। श्रीसूक्तं के सभी मंत्र लक्ष्मी यानी असली धन अन्न को समर्पित हैं। क्षुधा का निवारण करती हैं लक्ष्मी। गरुण पुराण कहता है जो आलसी न हो, क्रिया की विधि को जानता हो, किसी व्यसन में न लगा होने के साथ कृतज्ञ और दृढ़मैत्री वाला होए लक्ष्मी स्वयं उसके घर का रास्ता खोजती हैं। लक्ष्मीए समुद्र मंथन से निकलीं सो उनकी बेटी हुईं। समुद्र का अर्थ जो मुद्रा के सहित है। मुद्राए लक्ष्मी का पर्याय है। समुद्र मंथन का अर्थए कर्म का मंथन भी है। लक्ष्मी पूजन को इन्हीं अर्थों में देखा जाना चाहिए। एक बात और उनका पूजन बुद्धि, विवेक के देव गणेश के साथ किया जाता है ताकि लक्ष्मी के आने पर व्यक्ति मदमत्त न होकर विवेक से काम ले। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की प्रोफेसर निशा श्रीवास्तव कहती हैं, लक्ष्मी पूजन की परंपरा भले ही आध्यात्मिक हो लेकिन इसका आधार कर्मशीलता से है। लक्ष्मी के लिए व्यक्ति को संबंधित आचरण भी करने होंगे। सिर्फ पूजन नहीं सम्यक व्यवहार से ही लक्ष्मी आएंगी। साहित्यकार यश मालवीय कहते हैं, लक्ष्मी, सीता का ही पर्याय हैं। रामराज्य की स्थापना से पूर्व स्वयं राम ने भी लक्ष्मी का पूजन किया था। महादेवी वर्मा के लिए तो दीया ही लक्ष्मी का रूप थाए जिसे वह उजाले यानी समृद्धि के रूप में देखती, पूजती थीं।