मुकाबले की सोच का कवच

rape1पल्लवी सक्सेना। बलात्कार या बलात्कारी जैसा शब्द सुनकर अब अजीब नहीं लगता। कई बार तो एक स्त्री होने के बावजूद भी ऐसे विषयों को पढऩे का या इस विषय पर सोचने का भी मन नहीं करता। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि जिस तन लागे वो मन जाने लेकिन हद हो गयी है अब तो। मेरे विचार से तो बलात्कार एक मानसिक विकृति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। आप स्वयं ही देख लीजिये बलात्कार होना क्या होता है, से लेकर बलात्कार हो जाने तक सामाजिक डर में जीती एक स्त्री की यह दशा कि अब इसके आगे उसकी जिंदगी खत्म, न सिर्फ उसकी, जिसका बलात्कार हुआ है बल्कि उसके पूरे परिवार की भी जिंदगी खत्म। क्यों? इस पुरुष प्रधान समाज ने सारी बंदिशें केवल एक स्त्री के लिए ही बनाई हैं। अगर हम समाज का डर भूल जाएं तो क्या जिंदगी आसान न हो जाएगी? शायद एक पीडि़ता के लिए अपनी इस पीड़ा से उबरना थोड़ा आसान हो जाएगा।
वैसे देखा जाये मेरा मानना तो यह है कि बलात्कार करने की भावना इनसान की जिस्मानी जरूरत से ज्यादा उसके दिमाग में व्याप्त होती है। तभी तो बच्चियों से लेकर वृद्ध औरतों तक के साथ हुए इस तरह के मामले सामने आते हैं। जिसके चलते अब इस अपराध को रोकने के उपाय सोचने के बजाय अब हमें यह सोचना पड़ता है कि हम अपने बच्चों को इस अपराध से कैसे बचा सकते हैं। स्मार्ट फोन और नई-नई एप्स आ जाने से बच्चों और अभिभावकों के बीच का संवाद लगभग खत्म हो चला है। आज जरूरत इस बात की है कि बच्चे की उम्र को ध्यान में रखते हुए उसे उसकी उम्र के हिसाब से सभी तरह का ज्ञान आप खुद दीजिये, जैसे अच्छे-बुरे स्पर्श की जानकारी से लेकर एड्स जैसी खतरनाक बीमारी के विषय में भी उससे बिना हिचक बात कीजिये। इसलिए समय रहते उसे इन सब के बारे में बताइये और उसकी भी सुनिए। समय की पाबंदी और मोबाइल का सदुपयोग भी उसे बताइये कि आपातकालीन स्थिति होने पर वह क्या-क्या कर सकता है/सकती है। उसे यह एहसास भी दिलायें कि इसमें दी हुई सुविधाओं का सही इस्तेमाल करके भी किसी बड़ी दुर्घटना को होने से टाला जा सकता है।
जैसे किसी भी अंजान बस या टैक्सी में बैठने से पूर्व उसकी नंबर प्लेट का फोटो खींच कर अपने माता-पिता को भेज दें। साथ ही वह किस जगह से कितने बजे चला/चली है और अंदाजन कितने बजे तक पहुंच जाएंगे, इस बात का भी विवरण दें। फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की, यह नियम दोनों के लिए अनिवार्य होना चाहिए। उसके दोस्त कौन-कौन हैं, कहां रहते हैं और उनके माता-पिता क्या करते हैं, इत्यादि की सम्पूर्ण जानकारी भी माता-पिता के पास होनी चाहिए। बच्चों की सुरक्षा की जि़म्मेदारी भी हमारी ही है। और सबसे अहम बात अपने बच्चों को एक-दूसरे का सम्मान करना अवश्य सिखाएं, खासकर लड़कों को। तभी आगे चलकर वे सभ्य नागरिक बन पाएंगे।