सिंघल बिना अयोध्या: सूना हो गया कारसेवकपुरम

ayodhya karsevakpuram

लखनऊ। अयोध्या के कारसेवकपुरम और रामसेवकपुरम में मंगलवार को सन्नाटा छा गया। अयोध्या के बीचों बीच से गुजरने वाले हाई वे से कारसेवकपुरम को जाने वाली सड़क पर आने जाने वाले चेहरे मौन रहे। देश में हिन्दू धर्म स्थलों की आजादी के सबसे बड़े आंदोलनकारी अशोक सिंघल के देह त्याग ने राम की नगरी के लोगों को झकझोर दिया है। सवाल भी उठ रहें है कि अशोक सिंघल के बाद राम मंदिर आंदोलन की दिशा क्या होगी। कौन आंदोलन को आगे ले जाएगा। राम भक्तों के सामने भी यह सवाल अहम है।
सिंघल का अयोध्या का अंतिम दौरा इसी साल जून में हुआ था। वे 14 जून से 29 जून तक 15 दिन अयोध्या के कारसेवकपुर में रहे। 16 जून 2015 को यहां राममंदिर न्यास की मणिराम छावनी में हुई अहम बैठक में अशोक सिंहल ने कहा था कि राममंदिर का मामला सुप्रीम कोर्ट में है, हम कोर्ट का सम्मान करते हैं। कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, जिससे संविधान की मर्यादा पर असर पड़े। मंदिर निर्माण के लिए पत्थर की कमी का जिक्र करते हुए सिंहल ने कहा कि हम देश भर से मंदिर निर्माण के लिए लोगों से पत्थर दान लेंगें। राम मंदिर के लिए विहिप अब नकद चंदा एक पैसा भी न्यास नहीं लेगा। उन्होने राम मंदिर न्यास के संस्थापक व मंत्री की हैसियत से सर्वानुमति से लिए निर्णय की जानकारी मीडिया को दी थी।
अयोध्या के राम जन्म स्थान मंदिर निर्माण को लेकर चलाए गए आंदोलनों में सिंघल अगुवा रहें है। केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी नेतृत्व की एनडीए सरकार के दौरान सिंघल अयोध्या में राम मंदिर की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए थे। स्वास्थ्य बिगड़ता देख सिंघल की फोर्स फीडिंग कराई गई थी। अटल बिहारी ने कहा था हमें उनके स्वास्थ्य की चिंता थी। अशोक सिंघल ने उस समय कहा था, एनडीए की सरकार भले ही दूसरे दलों के समर्थन से चल रही हो, लेकिन भाजपा को लोगों ने वोट तो राम मंदिर के मुद्दे पर ही दिया था। इसलिए वाजपेयी को मंदिर निर्माण के लिए पहल करनी चाहिए। अशोक सिंहल ने ही विहिप के मंच से साधू-संत व महंतों को खुल कर खड़े होने के लिए प्ररित किया। सिंघल का कहना था कि संतों को राजनीति में दखल देना चाहिए। हिंदुओं का धार्मिक अधिकार छीनने की कोशिश हो रही है, उसका मुकाबला करना चाहिए। हिंदुओं को उनके ही राम मंदिर में पूजा नहीं करने दिया जाता है। इसके लिए संत समाज को एकजुट होकर सरकार पर दबाव डालना चाहिए। यह बात हिंदू जनमानस तक फैलानी चाहिए, जिससे जब भी राजनेता हिंदू जनता के पास वोट मांगने जाएं, तो उन्हें हिंदू हितों के बारे में जवाब देना पड़े। विहिप के प्रांतीय प्रवक्ता शरद शर्मा ने बताया आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंख पिंगले ने उन्हें अयोध्या को विहिप का स्थायी शिविर तैयार करने की सलाह दी थी। अयोध्या में विहिप का आखिरी बड़ा कार्यक्रम 84 कोसी परिक्रमा था। 2002 का शिलादान कार्यक्रम मंदिर निर्माण के आंदोलन का सबसे बड़ा आयोजन था। इसी आंदोलन ने भाजपा व विहिप के नेताओं के बीच मतभेद की एक पतली रेखा खींच दी थी। वर्ष 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर अभियान शुरू किया तब अशोक सिंहल संगठन में संयुक्त महामंत्री थे।
क्या चंपतराय और तोगडिय़ा संभालेंगे विरासत
विहिप के कार्याध्यक्ष है डा. प्रवीण भाई तोगडिय़ा और अध्यक्ष है माधव रेड्डी लेकिन राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े ब्रांड थे अशोक सिंघल। सिंघल काफी समय से विहिप व आंदोलन से जुड़े संगठनों में महज संरक्षक थे। वे हिन्दु धर्म स्थलों के लिए अपनी बात कहते समय दूसरों को उकसाते नही, उनके भाषण ओजस्वी पर उदार भी होते थे। अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के साथ मथुरा का कृष्ण जन्म स्थान व काशी का ज्ञानवापी उनके एजेंडे में था। सिंघल कहते थे कि हिन्दू उदार होता है जिसका दूसरे लोगों ने दुरूपयोग किया। अयोध्या के रामभक्तों व तमाम राम सेवकों को अशोक सिंघल की जगह लेने वाले के रूप में विहिप महासचिव चंपत राय पर निगाह है। चंपत राय 1991 से अयोध्या में रह कर राम मंदिर आंदोलन से जुड़े हुए है।