प्रधानी चुनाव से भाग रहे राजनीतिक दल

panchayat chunav 1विशेष संवाददाता,
लखनऊ। प्रदेश जिला पंचायत चुनाव में संगठन की थाह लेने वाले राजनीति दल अब शुरू हो रहे प्रधानी चुनाव से दूर भागते दिखाई दे रहे हैं। राजनीतिक दलों को प्रधानी का चुनाव घाटे का सौदा लग रहा है। राजनीतिक दलों के रणनीतिकारों की मानें तो मिशन 2017 विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टियां सतर्क हैं और उन्हें लग रहा है कि प्रधानी के चुनाव में उतरने से निचले स्तर पर गुटबाजी बढ़ेगी। जिससे चुनाव से पहले ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। जिला पंचायत चुनाव में उप्र में दबदबा रखने वाली समाजवादी पार्टी भी दूर रहेगी। मंत्रियों, विधायकों व समस्त जिलाध्यक्षों को किसी को चुनाव न लड़ाने की हिदायत दी गई है। सपा के रणनीतिकार बताते हैं कि प्रधानी के चुनाव में ही सबसे ज्यादा गोलबंदी होती है और उसका खामियाजा वर्ष 2017 में होने वाले चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। इसलिए मंत्रियों व विधायकों को प्रधानी चुनाव में प्रचार से दूर रहने की स त हिदायत दी गई है। जिला पंचायत चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस जयापुर और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बेंती गांव को गोद लिया था वहां भी पार्टी अपने उ मीदवार नहीं जिता पाई। इसके बाद अब प्रधानी के चुनाव में भाजपा भी फूंक-फू ंक कर कदम रख रही है। पार्टी सूत्रों की मानें तो गुटबाजी की वजह से ही जिला पंचायत चुनाव में पार्टी को हार मिली इसके बाद अब प्रदेश नेतृत्व को यह लगता है कि प्रधानी का चुनाव पार्टी चिन्ह पर लडऩे से आपसी प्रतिद्वंदिता के साथ ही गुटबाजी भी बढ़ेगी। इससे बचने के लिए ही पार्टी ने अब प्रधानी के चुनाव से दूर रहने का ही निर्णय लिया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने कहा पंचायत चुनाव से पहले ही यह फैसला किया गया था कि पार्टी केवल जिला पंचायत चुनाव ही लड़ेगी। आम सहमति से यह तय किया गया था कि ग्रामसभा के चुनाव में पार्टी नहीं उतरेगी।
उम्मीद थी कि बिहार चुनाव में संजीवनी पा चुकी कांग्रेस अब उप्र में हो रहे प्रधानी के चुनाव में भी उतरेगी। जिला पंचायत चुनाव में हालांकि पार्टी को जबर्दस्त हार मिली थी और उसके बाद पार्टी को नए सिरे से सोचने को मजबूर होना पड़ा था। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस को अमेठी में भी बुरी तरह से हार गई थी जिसके बाद यह फैसला लिया गया कि पार्टी अब प्रधानी के चुनाव से दूर रहकर संगठनात्क कार्यों पर ही फोकस करेगी। पार्टी की कोशिश विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को और दुरुस्त करना है। पार्टी को डर है कि कहीं प्रधानी के चुनाव में उतरने से निचले स्तर पर गुटबाजी बढ़ी तो मिशन 2017 से पहले ही पार्टी को परेशानी झेलनी पड़ सकती है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने से कहा पार्टी गांवों में समरसता बरकरार रहने की पक्षधर हमेशा से रही है। पार्टी कभी प्रधानी के चुनाव में नही उतरी है। इस बार भी पार्टी इससे दूर रहेगी।
बहुजन समाज पार्टी आमतौर पर लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव पर ही फ ोकस करती है लेकिन इस बार उसने जिला पंचायत चुनाव में भी उ मीदवारों को समर्थन देने का फैसला किया था। जिला पंचायत चुनाव में बसपा को मिली जीत ने पार्टी को निचले स्तर पर फि र से संजीवनी देने का काम किया है। बसपा ने जिला पंचायत चुनाव में मिली शानदार जीत के बावजूद खुद को प्रधानी चुनाव से दूर रखने का फैसला किया है। पार्टी के एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष की मानें तो खुद मायावती ने सभी समन्वयकों व पदाधिकारियों को प्रधानी चुनाव से दूर रहने का स त निर्देश दिया है। राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव डा. मसूद अहमद भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि प्रधानी का चुनाव ग्राम सभा का चुनाव होता है। कोई भी पार्टी इस चुनाव में लडऩे का खतरा मोल नहीं ले सकती। उन्होंने साफ शब्दों में कहा जिला पंचायत चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन प्रधानी के चुनाव में पार्टी नहीं उतरती है। गुटबाजी का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए कोई भी राजनीतिक दल इससे दूरी बनाए रहता है।