न लक्ष्मी आई न बाकी देवता

aarti raniआरती रानी प्रजापति। हमारे समाज (हिन्दू समाज) में विभिन्न देवी-देवताओं को पूजा जाता है। यहां कभी नौ-देवियों की पूजा होती है तो कभी हनुमान, राम, लक्ष्मी, काली, अग्नि, गोबर गणेश, शिवलिंग आराधे जाते हैं। दीवाली के दिनों में लक्ष्मी के स्वागत के लिए अमीर से लेकर गरीब तक के तबकों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। गरीब भी अपने टूटे-फूटे घर को साज-सजावट के साथ तैयार करता है। उसके पास साल-भर की जितनी बचत होती है वह इस आस में लगा देता है कि लक्ष्मी उल्लू पर बैठकर उसके घर आयेंगी। लक्ष्मी जी किसी के घर आती हैं या नहीं पर इस त्यौहार में गरीब की जमापूंजी खर्च हो जाती है। हां यदि इसे व्यवसाय के स्तर पर देखें तो दीवाली के दिनों में व्यापारी चाहे वह छोटा विक्रेता हो या बड़ा जरुर कुछ कमाई कर लेते हैं। घर की साफ-सफाई, रंगाई से शुरू हुए इस त्यौहार का अंत किलो तेल/घी के महंगे दिए, खूब महंगी आतिशबाजी और दम घोंटू वातावरण के साथ होता है। अब ऐसे माहौल में लक्ष्मी जी जो स्वर्ग में रहती हैं (यदि स्वर्ग है तो) इस धरती पर आ कर क्या करेंगी जहां उन्हें साफ हवा ही न मिले क्या उन्हें सांस की तकलीफ नहीं होती होगी?
एक और हिन्दूओं का त्यौहार है जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। दीवाली के बाद की एकादशी को मनाए जाने वाले इस दिन को देवता के जागने के रूप में लिया जाया है। शाम के समय छोटी-सी पूजा होती है जिसका रिवाज भी सबका अपना-अपना है। रतजगा किया जाता है, देवताओं के गीत गाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता जागते हैं। इस दिन से हिन्दू समाज में विवाह प्रारम्भ होते हैं। वैसे तो हिन्दू समाज में भगवान को मानकर ही विवाह किए जाते हैं पर सोचिए कि विवाह व अन्य शुभ कार्यों के लिए देवताओं को विशेष रूप से जगना पड़ता है। अब यह भी नहीं पता कि इस दिन तक उनकी नींद पूरी होती भी है या नहीं। कितनी पूरी होती है इसका भी कोई अंदाजा नहीं होता बस एकादशी आई तो जगा दिया और तो और यह भी नहीं पता कि किस देवता को जगाना है। मसलन हिन्दू सभ्यता के अनुसार 33 करोड़ देवी-देवता होते हैं। उनमें से किस-किस को जगाना है किन को नहीं यह कैसे तय होगा। यदि कोई और देवता जाग जाए तो? या सारे ही देवता एक साथ जागते होंगे। अगर सभी सो रहे थे तो दीवाली पर लक्ष्मी कैसे आ सकती है क्या उनकी नींद जल्दी या अपने आप खुल जाती है? शादी के लिए इतने महत्वपूर्ण देवताओं को जगाया जाता है जबकि शादी तो अन्य तरीकों से भी की जा सकती है जिसमें उतना खर्च भी नहीं होगा। लेकिन समाज उसी चमकदमक की शादी को तवज्जो देता है। हिन्दू समाज में जहां शादी के लिए इतनी मेहनत की जाते है कि शादी के कार्ड से लेकर दूल्हे की सवारी तक में भगवान के चिन्ह रखे जाते हैं वहां शादी किस वजह से टूटती है यह सोचने का विषय है। यदि भगवान जिनके किए ही सब होता है शादी में बुलाए जाते हैं, शादी उनकी देख-रेख में होती है तो वो शादी के वर यानी पुरुष को थोड़ी मानवीयता क्यों नहीं सिखाते हैं? क्यों शादी के बाद अक्सर वह जोड़ा भी जो एक-दूसरे को बेहद पसंद करता था लड़ाई-झगड़े की भेंट चढ़ जाता है। ऐसा क्या होता है कि शादी में देवता आए हो जैसा कि लोग मानते हैं तब भी कई बारात दहेज़ के कारण लौट जाती हैं। क्या सब कुछ पलक झपकाते ही खडा कर देने वाले देवता अपना पर्स स्वर्ग लोक में भूल कर आते हैं? जब विवाह के समय देवता उपस्थित होते हैं तो लाख यातनाओं के बाद लिए गए तलाक में भी क्या देवता शामिल होते होंगे? क्या हिन्दू मान्यता के अनुसार शादी का समय देवउठनी एकादशी के बाद और तलाक का देवों के सोने के (जो जागा है वो सोएगा भी) बाद शुरू होता है? इन तमाम सवालों को खोजने की जरुरत कभी-कभी महसूस होती है। दीवाली और देवउठनी दोनों ही दिन घर की चौखट पर पैर बनाए जाते हैं जो लक्ष्मी व अन्य देवों के आगमन का प्रतीक होते हैं पर देश की व्यवस्था, व्यथा, दशा, हर साल मरते गरीब, भूखे किसान, अपहरण, रेप, तेज़ाब, दहेज़, भ्रूण-हत्या, घरेलू-हिंसा, तलाक इत्यादि घटनाओं को देखते हुए लगता है कि न लक्ष्मी आई न बाकी देवता।

लेखिका- जेएनयू की शोध छात्रा हैं।