उड़ रहा है न्याय का मजाक

courtजिन पर कानून की सही-सही व्याख्या करने और उसे अमल में लाने की जवाबदेही है, वही कानून के साथ खिलवाड़ करने लगें तो इसे क्या कहा जाए? संसद द्वारा एक दशक पहले बनाए गए एक कानून का अदालतें ही गलत ढंग से पालन कर रही हैं। पिछले साल उन्होंने हत्या, डकैती और महिलाओं के साथ अत्याचार के 4000 से भी ज्यादा मामले अभियुक्तों और पीडि़तों के बीच समझौते कराकर निपटा दिए।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक विभिन्न अदालतों ने मर्डर के 27, हत्या की कोशिश के 55, रेप के 40 और डकैती के 27 मामले आपसी रजामंदी से सुलझा दिए। इसके अलावा औरतों के खिलाफ हिंसा से जुड़े 3584 मामले भी इसी तरह निपटा दिए गए, जिनमें 2200 पतियों की क्रूरता और 1045 स्त्री के शील पर हमले के केस थे। समझौते वाली बात ऊपरी तौर पर बड़ी आकर्षक लगती है, लेकिन इसमें न्याय से ज्यादा अन्याय का भाव निहित है।
सन 2005 में अमेरिका के एक कानून से प्रभावित होकर भारतीय संसद ने सीआरपीसी में संशोधन के जरिए यह कानून बनाया कि अदालत अभियुक्त को पीडि़त के साथ समझौते का अवसर देगी। अभियुक्त अगर पीडि़त को समुचित मुआवजा या दूसरी तरह की सहायता देकर संतुष्ट कर देता है तो अभियुक्त की सजा में कमी की जा सकती है, या माफी भी दी जा सकती है। यह कानून अदालतों के सामने लगे आपराधिक मामलों के अंबार को कम करने के मकसद से बनाया गया था।
जेलों की भीड़ कम करना भी इसका एक उद्देश्य था। लेकिन कुछ अपराधों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था, क्योंकि कानून-निर्माताओं को भय था कि अमीर और प्रभावशाली तबका इसका नाजायज फायदा उठा सकता है। उन सभी मामलों को इस कानून से अलग रखा गया था, जिनमें सात साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान हो। इसके अलावा औरतों के साथ अपराध के सभी मामलों को इससे दूर रखा गया था। पर नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों से जाहिर है कि कानून के लिए जो सीमाएं बांधी गई थीं, उन्हें न्यायाधीशों ने अपनी मर्जी से दरकिनार कर दिया।
इससे अदालतों का बोझ तो कम नहीं ही हुआ, अलबत्ता अभियुक्तों को इसका भरपूर लाभ मिल रहा है। न्यायपालिका को हमारे देश में एक पवित्र क्षेत्र माना जाता है, इसलिए उसकी अनियमितताओं पर बहुत कम बात होती है। लेकिन हकीकत यही है कि आम आदमी और कमजोर वर्ग के लिए न्याय आज भी बहुत दूर की चीज है। इंसाफ दिलाने वाला पूरा तंत्र ही हमारे देश में ताकतवर के पक्ष में सक्रिय दिखता है।
यह तबका कानून में हमेशा कोई छेद तलाशता रहता है, जिसके जरिए वह अपने हित साध सके। प्ली बारगेनिंग का यह कानून शक्तिशाली लोगों के लिए मुफीद साबित हो रहा है, क्योंकि इसके जरिए दूसरे पक्ष को थोड़े पैसे देकर या उस पर समझौते के लिए दबाव बनाकर वे साफ बच निकलते हैं। न्याय का तकाजा है कि ऐसे सारे मुकदमे दोबारा खोले जाएं और इस गड़बड़ी को आगे के लिए नजीर बनने से रोक दिया जाए।