क्षमा शर्मा। मेरी भतीजी आस्ट्रेलिया में रहती है। वह इन दिनों भारत में है। उसकी ढाई साल की एक बच्ची भी है। उसने एक दिन कहा कि बुआ मैं जब आ रही थी तो मुझे मेरे भारतीय और आस्ट्रेलियाई दोस्तों ने कहा कि तुम इंडिया जा ही क्यों रही हो। वहां तो सरेआम लोगों को मारा जा रहा है। तुम्हारी छोटी बच्ची है, पता नहीं उसके साथ न जाने क्या हो। मगर यहां आकर देख रही हूं कि ऐसा तो कुछ भी नहीं है। इतनी नेगेटिव पब्लिसिटी क्यों। लगभग इसी तरह की बात हाल ही में महान सितारवादक रविशंकर की बेटी अनुष्का ने कही।
हाल ही में मशहूर अभिनेता शाहरुख खान और आमिर खान भी ऐसा बयान दे चुके हैं। शाहरुख खान ने जब असहिष्णुता बढऩे की बात कही तो हाफिज सईद ने फौरन उन्हें पाकिस्तान में बसने का न्योता दे डाला। शाहरुख को फेरा का नोटिस मिला था तो उ. प्र. के आजम खां और आंध्र के असदुद्दीन ओवैसी फौरन बहस में कूद पड़े। उन्होंने कहा कि शाहरुख को मुसलमान होने के कारण तंग किया जा रहा है।
कुछ साल पहले शाहरुख की फिल्म माई नेम इज खान आई थी। इस फिल्म की रिलीज से पहले शाहरुख अमेरिका गए थे। वहां से लौटकर उन्होंने बयान दिया कि उन्हें अमेरिका के एयरपोर्ट पर खान सरनेम होने के कारण बहुत तंग किया गया। भारत में इस बात पर काफी बहस हुई। बताया गया कि फिल्म को इस विवाद से बहुत सफलता मिली। अमेरिका की इतनी निंदा की गई कि अमेरिकन एजेंसीज को बयान देना पड़ा कि शाहरुख के साथ उनके धर्म के कारण कोई अन्याय नहीं किया गया। जो सिक्योरिटी चैक सबका होता है, वही उनके साथ हुआ। शाहरुख ने शायद ही कभी क्लैरीफाई किया हो।
सलमान ने भी असहिष्णुता बढऩे की बात कही थी। जब सलमान को ब्लैक बक केस में पकड़ा गया था तो धर्मनिरपेक्षता की बातें करने वाले, अपनी मां को हिन्दू बताने वाले सलमान मुसलमान हो उठे थे। उन्होंने बयान दिया था कि उन्हें मुसलमान होने के कारण तंग किया जा रहा है। एक तरफ ये अभिनेता कहते हैं कि इन्हें मुसलमान न समझा जाए। बात भी सही है। इन्हें भारत के लोग अभिनेता ही समझते हैं। इनकी फिल्में चलती भी इसीलिए हैं कि लोग इन्हें देखते हैं। मगर मौके-बेमौके ये लोग ऐसे बयान देते हैं कि लोग परेशान हों।
आमिर ने कहा कि उनकी पत्नी बच्चे की सुरक्षा की चिंता के कारण परेशान हो उठी और देश छोडऩे के बारे में कहने लगी। आखिर देश में ऐसा कौन सा बलवा हुआ कि किरण राव को यह कहना पड़ा। कहीं ऐसा तो नहीं कि आमिर की भी कोई फिल्म आने वाली हो और पब्लिसिटी और फिर एंटी-पब्लिसिटी के लिए ऐसा किया गया हो। आमिर के बयान के बाद हिन्दू संगठनों ने जिस तरह से उनके पुतले फूंके और पाकिस्तान जाने की बात कही, उससे यही लगता है कि कहीं किसी फिल्म को हिट कराने के लिए तो ऐसा नहीं किया जा रहा।
पिछले दिनों मधुर भंडारकर की फिल्म हीरोइन आई थी, जिसमें करीना कपूर हीरोइन की भूमिका में थी। जब हीरोइन का करिअर उतार पर आता है तो सफलता के लिए क्या-क्या नहीं किया जाता। आखिर में पीआर एजेंसी की महिला, जिसकी भूमिका नीलिमा अजीम ने की थी, कहती है-तुम्हारे पास बेचने को कुछ नहीं है। तब करीना कपूर उसे अपने लैपटाप में एक वीडियो दिखाती है, जिसमें उस समय के टाप हीरो के साथ उसके बैडरूम दृश्य हैं। इसे वायरल कर दिया जाता है और इस हीरोइन की फिल्म हिट हो जाती है। इसके पास फिल्मों का ढेर लग जाता है।
सत्तर-अस्सी के दशक में फिल्म में काम करने वाले हीरो-हीरोइन के प्रेम के किस्से चटखारे लेकर कहे-सुने जाते थे। इस तरह के किस्सों के बारे में कहा जाता था कि ये दर्शक को टिकट खिड़की तक लाने की पूरी गारंटी होते हैं। मगर अब चूंकि लोग प्रेम से आगे बढ़ चुके हैं, इसलिए फिल्मों की रिलीज से पहले तरह-तरह की जुगत भिड़ाई जाती हैं। एक समय ऐसा था जब अभिनेता -अभिनेत्रियों के निजी जीवन, उनकी बीमारियों आदि को छिपाकर रखा जाता था, लेकिन अब बीमारियों को भी फिल्म हिट करने का नुस्खा माना जाने लगा है। अमिताभ के बारे में हाल ही में बताया गया कि उनका लिवर सिर्फ 25 प्रतिशत ही काम करता है। कुली फिल्म के दौरान जो दुर्घटना हुई थी, तब उन्हें खून चढ़ाया गया था। तब से उन्हें हेपेटाइटिस बी की बीमारी है।
आजकल कोई भी नेता सच को सच कहने से परहेज करता है। लोकतंत्र की यही सबसे बड़ी खामी भी है। नेताओं को हमेशा कोई सुधारात्मक कदम उठाने से भी डरना पड़ता है कि कहीं कोई नाराज न हो जाए। जो लोग देश में असहिष्णुता की बातें कर रहे हैं, वे बताएंगे कि क्यों पश्चिम बंगाल से तसलीमा को बाहर कर दिया गया। इसीलिए न कि कहीं मुसलमान नाराज न हो जाएं। तब भी वामपंथी अपनी सरकार नहीं बचा सके। तसलीमा का यही तो कुसूर था कि उन्होंने बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यक हिन्दुओं का पक्ष लिया था। वहां से उन्हें इस्लाम विरोधी कहकर निकाल दिया गया। यहां की वामपंथी सरकार ने भी कट्टरपंथियों की बनाई उनकी छवि को माना।
यदि अपने देश में हमें अल्पसंख्यकों की चिंता है तो बांग्लादेश में रह रहे अल्पसंख्यकों की चिंता करने वाली तसलीमा का क्या कसूर है। या कि वोट के लालच में गुणा-भाग करने वाले नेता कभी सच्चाई को देखना ही नहीं चाहते।