ग्लोबल वार्मिंग से बचाव के लिए आम जन की भागीदारी जरूरी

sanjay tसंजय त्रिपाठी। विश्व के समक्ष उत्पन्न विकट समस्या जलवायु परिवर्तन से बचाव के लिए पेरिस में राष्ट्रध्यक्षों की शिखर बैठक हुआ , लेकिन कोइ्र खास नतीजा सामने नहीं आया । हालांकि पिछले 23 वर्षो से लगातार ऐसे बैठकों का आयोजन किया जा रहा है , लेकिन समस्या आज भी ज्यों – की – त्यों बनी हुई है । हां , इतना जरूर हुआ है कि पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन दुनिया के समक्ष एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आया है । इस समस्या से सिर्फ राष्ट्रध्यक्षों व पर्यावरण विशेषज्ञों के विचार मंथन से ही नीजात नहीं पाया जा सकता , बल्कि जब तक आम जन को जागरूक नहीं किया जायेगा ,और उनकी भागीदारी नहीं होगी तब तक इसका समाधान नहीं हो पायेगा । विकास के लिए विश्व को मौत के मुहाने पर खड़ा करना कभी भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता।
वास्तविक में इंसान भी मकड़ी के तरह ही है , जो स्वंय अपने लिए जाला बुनती है और उसी में लिपट कर खुद ही एक दिन समाप्त भी हो जाती है । इंसान भी विकास के नाम पर और अपनी सुख – सुविघाओं के लिए अपने चारों तरफ विनाश का समान इक_ा कर रहा है । यह ठीक है कि अभी अपनी गलती हमें दिखाई नहीं दे रही है , लेकिन इसका आहट हमें सुनाई देने लगी है । भले ही हम इसे महसुश करें या न करें । आप भी देखे कुछ समय से ऐसी – ऐसी घटनाएं सामने आई है जो एक सभ्य और जागरूक समाज को सोचने पर मजबुर कर दिया है । क्या आप भुज का भूकम्प और सुनामी की लहरें भूल गये है ?क्या उश्रराखण्ड की विनाश लीला और जम्मू – कश्मीर की बाढ़ का दृश्य आंखों से ओझल हो गया है ? अब क्या तमिलनाडू और चेन्नई में बाढ़ का मंजर शीघ्र ही भूला पायेगा ? इन तमाम प्रश्नों का उश्रर हमारे पास है , नहीं न । यह तो प्रकृश्रि है जो ऊंचा – नीचा नहीं देखती और यह भी नहीं देखती कि किसने उसे बनाया और किसने बिगाड़ा है । यह तो हमारी करनी की सजा हमारे लिए निश्चिय करती जा रही है । अभी तो यह शुरूआत है , इसका विकट रूप तो हमारे सामने आनेवाला है ।
जरा हम सब सोचे – हमारे लिए सबसे जरूरी है ऑक्सीजन । हमें ऑक्सीजन हवा से प्राप्त होती है । हमें सबसे पहले दूसरी और तीसरी कक्षा में बताया जाता है कि हमारे लिए सबसे जरूरी है हवा , पानी और भोजन । एक बार भेजन के बिना हम कुछ दिन जींदा रह सकते हैं , पानी के बिना भी एक – दो दिन कट जायेगा , लेकिन क्या हवा यानी ऑक्सीजन के बिना हम एक घंटा भी जींदा रह पायेगें ? कितना मुश्कील होगा जब पृथ्वी पर दिन -पर – दिन ऑक्सीन घटता जायेगा और पृथ्वी पर पाये जानेवाले इंसान और जानवर छटपटा – छटपटा कर दम तोड़ते जाएंगें । क्या उस समय का ऐसा दृश्य हम अपने आंखों से देख पायेगें ? उस समय हमारी स्थिति क्या होगी जरा एक बार इसे भी सोचे । अभी हाल में ही एक नये अघ्ययन में दावा किया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग से समुन्द्र के तापमान में कुछ डिग्री का बदलाव घरती पर ऑक्सीजन की मा़त्रा में नाटकीय ढंग से कमी ला सकता है । इससे बड़े पैमाने पर जानवरों और इंसानों की मौत होगी । ब्रिटेन की लीसेस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह अघ्ययन किया है । इसमें बताया गया है कि समुन्द्र के तापमान में लगभग छह डिग्री सेल्यिस की बृद्धि से फाइटोप्लैंक्टन से होने वाला ऑक्सीजन का उत्सर्जन बंद हो सकता है । ऐसा सन् 2100 तक हो सकता है । यूनिवर्सिटी के गणित विभाग के प्रोफेसर सर्गेई पेत्रोव्स्की ने कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग को विज्ञान और राजनीति का केंद्र बने दो दशक हो चुके हैं । इससे आने वाली विपदा के बारे में बहुत बातें कही गई । इनमें सबसे कुख्यात है वैश्विक बाढ़ , जो अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से आयेगी । यह मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है । क्योंकि घरती की कुल ऑक्सीजन का दो तिहाई सिर्फ फाइटोप्लैंक्टन से उत्सर्जित होता है । इसलिए इसकी समाप्ति वैश्विक ऑक्सीजन के लिए खतरा होगी । इससे बड़े पैमाने पर जीवन का अंत हो सकता है । उघर एक और चैकाने वाला मामला सामने आया है । ग्लोबल वार्मिंग के वजह से पिछले 40 साल में माउंट एवरेस्ट में ग्लेशियर 28 फीसदी तक सिमट गए हैं । ब्रहमपुत्र नदी का दायरा भी 28 फीसदी कम हो गया है । यह दावा चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस ने किया है ।
आज सारी दुनिया मान रही है कि ग्लोबल वार्मिंग हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती है और हमारी धरती खतरे में है । पेरिस में सबने इस बात को भी माना कि पूरी दुनिया के स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कटौती की जरूरत है । आज अगर दुनिया के सामने यह भयावह स्थिति पैदा हुई है तो इसके लिए सबसे बड़ा कारण दुनिया में विकसित देश बनने की मची होड़ है । हमने आगे बढऩे की लालच में प्राकृतिक संसाधनों का खुलेआम दोहन शुरू किया , जिसके चलते बाढ़ , सूखा और समुन्द्र के जल स्तर बढऩे का खतरा पैदा हुआ । हम वन और हरियाली समाप्त करते जा रहे है , पुथ्वी के अंदर से मिट्टी निकाल कर लोहा भरते जा रहे हैं । जो सदियों से बनी हुई है और जिससे प्राकृति अपना संतुलन बना कर रखती है , हम अपने स्वार्थ के लिए उसे भी तोड़ – मोड़ कर बदलने में लगे है । हम सब छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक बदलाव में लगे हैं , आखिर इसका परिणाम भी तो हमें ही भुगतना होगा । देशों के विकास के लिए और अपनी सुविधाओं के लिए हमने तेजी से शहरों को विकसित किया । चारो तरफ उधोग , कंक्रीट – पत्थरों की इमारते ,वनो का सफाया और पृथ्वी के अंदर से पानी का दोहन जिस रफ्तार से शुरू किया उसी रफ्तार से विनाश लीला भी हमारा पीछा कर रहा है । अब गांवों को विकास के कड़ी से हम जोडऩे में लगे है । गांव के लोग भी शहरी सुविधाआों को देखकर वैसे ही जीवन जीने के लालसा में मरे जा रहे है । लेकिन प्राकृतिक का नियम है कि पृथ्वी के तल से गर्म वायु जब उपर उठती है तो उसके जगह को भरने के लिए ठंडी वायु तुरंत आ जाती है । अभी प्रकृतिक का विनाशकारी रूप हमारे सामने छोटी – छोटी और कुछ क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है , क्योंकि शहरीकरण का परिणाम सबसे पहले सबसे पहले उन क्षेत्रों में दिखाई दे रहा है जहां प्राकृतिक रूप से कमी या उसकी बनावट व वातावरण में खामियां है । अभी तक पहाड़ी और समुन्द्री इलाके का क्षेत्र ही ऐसी घटनाओं का सामना ज्यादा किया है । देखा जाए तो अभी भी गांवों के प्रभाव से ही प्राकृतिक कमी वाले इलाके ही इसका शिकार हुए है ं । लेकिन ज्यादा समय तक इससे हम बच नही सकते ।
सारी दुनिया यह तो मानती है कि जो कुछ भी बिगड़ रहा है , वह सब आज के विकासशैली के होड़ का ही परिणाम है । लेकिन कोई भी देश या इंसान अपनी सुविधाओं पर अंकुश लगाने को तैयार नहीं है । दुनिया के बड़े शहर और लोग पूरी तरह सुविधाओं के चंगुल में फंसे हुए हैं । वे चाहते है कि हमारी सुविधाओं में किसी तरह की कमी न आए लेकिन लोग ज्यादा महत्वकांक्षी न हो जिससे पर्यावरण संरक्षण का बचाव भी हो सके । यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 69 करोड़ बच्चे ग्लोबल वार्मिंग से सीधे प्रभावित हैं और 53 करोड़ बच्चों को भीषण बाढ़ और तूफान से जूझना पड़ रहा है । अब गांवों के तरफ इसका असर भी पहुंच रहा है । गांवों में फूस – खपरैल का घर , गोबर की लिपाई , गाय , बैल ,भैंस आदि जानवर प्राकृतिक प्रेमी है और इनसे पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है ।
आज ऐसा दौर हमारे सामने आ गया है कि अब राष्ट्राध्यक्षों व विशेषज्ञों के विचार मंथन से ही ग्लोबल वार्मिंग के नतीजो से निपटने का उपाय नहीं खोजा जा सकता , बल्कि आम जन को भी आगे आना होगा । आम जन अपनी , समाज और देश का विकास तो करें लेकिन प्राकृतिक से छेड़छाड़ न करे , साथ ही कुछ भौतिक सुविघाओं से अपने आप को तथा दूसरों को भी महरूम रखे । तभी हम सब अपना और अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर पायेंगे ।