आतंकवाद बनाम मानवीयता

shalini sriशालिनी श्रीवास्तव,
आए दिन घट रहे आतंकी घटनाओं से न सिर्फ अपना मुल्क बल्कि पूरा विश्व चिंतित है। साल के शुरुआत में ही दिल्ली के पठानकोट में घटित आतंकी घटना यह साबित करता है कि आतंकवादी वारदातों को रोकना इस साल की एक बड़ी चुनौती रहेगी। जिस तरह से आतंकी अपने नापाक कारनामों को अंजाम देते आये है उससे साफ होता है कि भविष्य में उनके इरादें और भी खतरनाक होंगे और उससे निपटना कहीं ज्यादा मुश्किल होगा। सोचने वाली बात है कि जिस पाकिस्तान की सरजमीं ने आतंकवाद को फलने-फूलने का मौका दिया, आज उसी की जमीं पर आतंकवादी घटनाएं घट रही है और वह खुद इस समस्या से निपटने का उपाय ढूंढ रहा है। इससे एक बात तो साफ है कि आतंकियों का न तो कोई मुल्क है न धर्म। ये पूरी मानवता के दुश्मन है गंभीर बात यह है की जैसे- जैसे हम साधन संपन्न और असंवेदनशील हो रहे है वैसे- वैसे ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही है। ऐसा नहीं है कि पहले यानि साधनविहीन दुनिया में सब कुछ ठीक था, तब भी छोटे स्तरों पर घटनाएं होती थी और वह अपने स्तर की बड़ी घटना कहलाती थी जैसे चोरी- डकैती वगैरह। फिर उससे बड़ी घटना नक्सली और अलगाववादियों की भी थी। शायद उसी का वृहद रूप आतंकवाद को कहा जा सकता है। इन सभी घटनाओं को अंजाम देने वाले यानि रचयिता की मानसिकता पर नजर डालें तो साफ नजर आता है कि ये सभी समाज के नियम के खिलाफ चलने वाले एमानवता विहीन, सामाजिक रूप से विक्षप्त और संवेदनहीन होते हैं।

एक बात तो तय है कि जैसे- जैसे समाज की रूपरेखा बदली है। भौतिक संसाधनों के प्रति लगाव बढ़ा है, वैसे- वैसे लोगों में स्वार्थ और असंवेदनशीलता भी बढ़ी है। शायद यह भी एक वजह है कि हम कुछ युवाओं को आतंकवादी बनने से रोक नहीं पा रहे है, बहला फुसलाकर किसी चीज का झांसा देकर, ब्रेनवाश करके लोगों को गुमराह करना एक बात है लेकिन समाज और सिस्टम से नाराज होकर खुद गलत रास्ता अख्तियार करना दूसरी बात है। पिछले कुछ अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि कुछ युवा पैसा, शोहरत और अलग तरह के काम करने की वजह से भी आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे हैं, अगर ऐसा है तो अब हमे यह बात मान लेनी चाहिए कि कही न कहीं मानवीय मूल्यों में ह्रास हो चुका है। नैतिकता से हमारा नाता टूटता जा रहा है, यकीनन आतंकवाद जैसी भयानक लड़ाई लडऩे के लिए सभी देशों के पास व्यापक रणनीति होनी चाहिए,लेकिन यह भी बात उतनी ही सच है कि इससे सिर्फ आतंकवादी खत्म होंगे न की आतंकवाद।
कुछ देशों की रजनीति में शामिल है कि आतंकवादी एवं आतंकी ठिकानो को खत्म कर दो, आतंकवाद खत्म हो जायेगा। लेकिन यह सिर्फ आतंक से लडऩे का पहला कदम होगा। अगर वास्तविकता में आतंकवाद को खत्म करना है तो हमें अपने मानवीय मूल्यों को बढ़ाना ही होगा, साथ ही भौतिक निर्भरता एवं सुख पर प्रचलित दृष्टिकोण को बदलना होगा।

लेखिका,
पूर्व रिसर्च एसोसिएट, केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान