ललित गर्ग। हर इंसान चाहता है कि वह सफल हो, सुखी हो एवं सार्थक जीवन जीएं। उसके जीवन में प्रसन्नता हो, आनंद हो। इसका प्रभावी सूत्र यही है कि हम लोगों में अच्छाई तलाशें। बुराई को नकारने की आदत डाले। संभव है हमें घर-परिवार, पड़ोस और दफ्तर में कुछ लोग पसंद नहीं करते हो। इस सच्चाई को मानकर चलिये कि लगभग प्रत्येक व्यक्ति में कुछ-न-कुछ अच्छाइयां भी होती ही हैं। हमेशा बुराइयों को ही न देखें। यदि हम उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देकर उन्हें स्वीकारें तो हमारे प्रति उनका अप्रिय व्यवहार सुधर जायेगा। इस छोटे-से बदलाव से ही हमारे जीवन में आनन्द झलकने लगेगा। इसीलिये संत तरेसा ने बहुत ही सुन्दर कहा है कि हम कभी नहीं जान पाएंगे कि एक छोटी-सी मुस्कान कितना भला कर सकती है।
संसार में जितने भी प्राणी हैं, जन्म से मृत्यु तक जाने-अनजाने आनन्द की खोज में लगे रहते हैं। एक चींटी उठते ही चीनी के दाने की तलाश में लग जाती है और मिलते ही उसे मुंह में दबाकर अपने बिल में जमा करने दौडती है। उसे ऐसा करके अपूर्व आनन्द का अनुभव होता है। उसी प्रकार हम लोग भी जीवन भर दो प्रवृत्तियों में लगे रहते हैं: अधिक से अधिक बटोरने एवं उससे आनंद पाने की कोशिश में। सुख मन की प्रवृत्ति है, शरीर की नहीं, अत: नींद में हम भले सुख-स्वप्न में डूबते-उतरते रहें, सुबह नींद खुलते ही फिर जीवन की उसी चक्की को पिसने लगते हैं। चाहे राजा हो या रंक, ये दो प्रवृत्तियां जिंदगी भर हमें दौड़ते रहने को मजबूर करती रहती हैं। जब कमाने वाले स्त्री-पुरुष देर शाम को घर लौटते हैं तो उन्हें न पड़ोस की सुध रहती है, न ही अपने ही परिवार में दो घड़ी बैठकर सुख-दुख की बात करने की। आखिर क्या कारण है कि सुख और आनन्द की चाह रखने वाला इंसान इस तरह का जीवन जीता है?
मनुष्य की हर पल आनन्द की आकांक्षा रही है और इसकी खोज के लिये वह निरन्तर प्रयासरत रहा है। किसी को पढऩे में आनन्द आता है तो किसी को खेलने में, किसी को लिखने में आनन्द आता है तो किसी को बड़ी-बड़ी बातें करने में। कोई चापलूसी करने में आनन्द लेता है तो किसी को चापलूसी करवाने में मजा आता है। मनुष्य आनन्द को पा लेता है, लेकिन वह आनन्द थोड़ी देर बाद गायब भी हो जाता है जैसे बादलों की ओट में सूर्य छिप जाता है। अक्सर यह भी देख गया है कि जितना हम आनन्द के पीछे भागते हैं, उसके लिए छटपटाते हैं आनन्द उतना ही हमसे दूर भागता हुआ दिखाई देता है। हमारी स्थिति कुछ उसी तरह की हो जाती है जैसे मरुस्थल में पानी न मिलने पर एक मृग की होती है यानी मृग-मरीचिका वाली स्थिति में पहुंच जाते हैं और विषाद से घिर जाते हैं।
क्या हम वास्तव में आनंद की खोज में हैं? अगर ऐसा है तो दूसरों को आनंद देना होगा। जगत तो एक प्रतिध्वनि मात्र है। हम जो करते हैं, वही हमारे पास वापस लौट आता है। जो दूसरों को आशीष देता है उस पर आशीषों की वर्षा होने लगती है, और जो गालियां, उस पर गालियों की, पत्थरों के उत्तर में पत्थर ही लौटते हैं, प्रेम नहीं, और जो दूसरों के लिए कांटे बोता है, उसे स्वयं के लिए भी कांटों की ही फसल काटने को तैयार रहना होगा। घृणा घृणा को आमंत्रित करती है, प्रेम प्रेम को। नफरत से नफरत ही बढ़ती है। यही शाश्वत नियम है। हमारे विचार सदैव सकारात्मक होने चाहिए। मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस का कथन खुशी के रहस्य को उद्घाटित करता है कि आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में संसार के विषय पदार्थों को कंचन व कामिनी की संज्ञा दी गई है। कंचन अर्थात धन व कामिनी अर्थात स्त्री या अन्य कोई मनभावन वस्तु, संसार के किसी भी व्यक्ति या वस्तु में आनंद नहीं है, उसे अपने ही अंदर खोजना होगा। सुख ईमानदारी की कमाई में है, गृहस्थी की सीमाओं में रह कर संतोष करने में है और पाने की तृष्णा और संग्रह में नहीं है। अच्छे लोगों के संपर्क में रहें। मित्रता अपने बराबर के मानसिक स्तर वालों से रखें ताकि वे आपको समझ सकें। विचारों का आदान-प्रदान करें। यह ध्यान रखें कि अपने विचारों को दूसरे पर थोपें नहीं, न ही विचार रखते हुए उत्तेजित हो। नकारात्मक दृष्टिकोण को जीवन में दूर रखें। सकारात्मक सोच अपनाएं। सकारात्मक सोच से खुशी और ऊर्जा मिलती है। अपनी ऊर्जा का सही उपयोग करें और सफलता की सीढिय़ा चढ़ते जाएं।
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। यदि मन स्वस्थ होगा तो सब कुछ अच्छा लगेगा। खुश रहने का सीधा संबंध मन से है। स्वस्थ रहने के लिए संतुलित व पौष्टिक भोजन लें और नियमित व्यायाम करें। आनन्दित रहना अपने आप में अच्छी स्वास्थ्य का राज़ है। यदि आपका मन खुश है तो आपको अपने आस-पास का माहौल भी आनन्दभरा प्रतीत होगा। अगर आप उदास हैं तो दूसरों की खुशी भी आपको भारी लगेगी। यह सच है कि आनन्दित रहना एक कला है।
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के सपने संजोए। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पूरी ऊर्जा और उत्साह से जुट जाएं। लक्ष्य के पथ में आए अवरोधों से घबराए नहीं। पुन: मेहनत से उन्हें प्राप्त करने में लग जाएं। अपनी पराजय का कारण स्वयं में ही ढूंढ़े, कभी भी दूसरों को दोषी न ठहराये।
कभी किसी से कुछ गलती हो जाये तो उसे माफ कर दें क्योंकि कभी हमसे भी गलती हो जाती है। यदि हम दूसरों की गलतियां ढूंढते रहेंगे तो निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा। जीवन में कभी-कभी कुछ क्षण आते हैं जब इंसान को निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे में आनन्दित रहने वाले लोग स्वयं को उस निराशा से जल्दी निकाल लेते हैं तो कुछ निराश रहते हुए उदासी का शिकार हो जाते हैं। निराश रहने से कुछ लाभ तो होता ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य, आपसी-संबंधों और कैरियर पर इसका दुष्प्रभाव अवश्य पड़ता है तो आप भी निराश न होकर आनन्दित रहें। पतंजलि का मार्मिक कथन है कि सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करूणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।
आनन्दित जीवन का रहस्य है कि अपने सगे-संबंधियों व मित्रों की उन्नति में खुश हों। ईष्र्या की भावना मन में न लाएं। जब मित्र, संबंधी आपकी मदद करें तो उनको धन्यवाद देना न भूलें। मित्रों, संबंधियों और सहकर्मियों को शुभ दिवस पर बधाई या शुभकामना देना न भूलें। इससे मन को सुकून मिलता है।
क्या कभी आपने किसी के दु:ख को अपना दु:ख समझा है? क्या आपने कभी किसी भूखे को भोजन कराया है, नंगे के बदन पर वस्त्र ओढ़ाया है या किसी प्यासे को पानी पिलाया है, किसी बीमार को उपचार कराने में मदद की है? जो प्यासा होने पर भी आपसे एक गिलास पानी मांगते हुए झिझकता हो उसे पानी पिलाकर तो देखिए आपको कितना आनन्द आयेगा। किसी भूखे को खाना खिलाकर तो देखिए आपको कितनी तृप्ति मिलती है। दीन-दुखियों की सेवा आनन्द का स्रोत है। मदर टेरेसा ने कहा है कि हम कभी नहीं जान पाएंगे कि एक छोटी सी मुस्कान कितना भला कर सकती है। भगवान जब आपको सेवा करते देखते हैं तो वे आपकी झोली में आनन्द के मोती-माणिक्य भरने के लिए उमड़ पड़ते हैं, खुशियों की गंगा प्रवाहित कर देते हैं। तभी आप सच्चे और स्थायी आनन्द की अनुभूति कर सकने के पात्र बनते हैं।
आनन्द को पाने का एक सूत्र है नियमितता एवं समयबद्धता। टाइम टेबल बनाएं। अपने रूटीन में कुछ परिवर्तन लाएं। अपने लिए आराम का समय अवश्य निकालें, दिन या सप्ताह में कुछ घंटे फूर्सत के निकाल कर कुछ रचनात्मक कार्य करें ताकि आपके मन को सुकून मिल सकें।
प्रकृति में आनन्द बिखरा पड़ा है पर उसे समेटने वाला चाहिए मन, जो हमारे पास नहीं है। भगवान ने हमारे आनन्द के लिए ही प्रकृति का निर्माण किया है। प्रकृति दोनों हाथ फैलाकर हमारा स्वागत करने के लिए बाट जोह रही है लेकिन हम हैं कि बिस्तर से उठना ही नहीं चाहते। बस हर समय चिंता करते हुए तनाव में ही जीना पसंद करते हैं। डॉक्टर ने कहा है इसलिए पार्क में टहलने चले जाते हैं। किसी तरह तीन-चार चक्कर पूरे हो जाएं तो छुट्टी मिले। क्या कभी पार्क के सौन्दर्य को निहारा है, प्रकृति की छटा पर विचार किया है? पेड़-पौधे, फूल-पत्तियां सब आपसे मिलने को बेचैन हैं, आपसे मीठी-मीठी बाते करना चाहती हैं लेकिन आपके पास तो फूरसत ही नहीं है उनसे बात करने की। वे तो आपको तनाव से मुक्त करके आनन्द प्रदान करने के लिए आतुर हैं, बेचैन हैं परन्तु आप तो सजावटी फूलों और गमलों की छटा देखकर ही खुश होना चाहते हैं। ऐसे में वास्तविक आनन्द कैसे मिलेगा? आनन्द तो प्रकृति से जुड़ाव में भरा हुआ है। आप जितना प्रकृति से दूर रहेंगे आपका आनन्द भी आपसे उतना ही दूर होता चला जाएगा, यह निश्चित जानिए।
यदि वर्तमान अच्छा और सुखद है तो आने वाला कल भी अच्छा और सुखद ही होगा। वर्तमान हमारे भविष्य की नींव के समान है। फिर भविष्य तो वैसे भी अनिश्चितताओं का पिटारा है। हम नहीं जानते कि उसमें सर्वेश्वर ने क्या भरा है हमारे लिए। इसलिए अच्छा और अभीष्ट यही होगा कि हम प्रकृति से निकटता का नाता जोड़ें और अपनी सकारात्मक सोच को विकसित करते हुए प्रभु का अवलम्बन ग्रहण करें। आप निश्चय ही आनन्द की गंगा में अवगाहन करेंगे। यही आनन्द का सही और सुन्दर मार्ग है।